आयुर्वेद या एलोपैथी क्या है बेहतर Which Is Better Ayurveda Or Allopathy In Hindi
Which Is Better Ayurveda Or Allopathy In Hindi
आयुर्वेद व एलोपैथी के बारे में
आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच का विवाद दशकों पुराना है। सर्वप्रथम तो यह जान लेना जरुरी है कि कई बार ऐसा होता है कि रोग 3-4 दिवसों में बिना औषधि अपने आप ठीक हो जाने वाला होता है किन्तु व्यक्ति यदि आयुर्वेद चिकित्सक के पास गया तो उसे आयुर्वेद प्रभावी एवं यदि एलोपॅथी चिकित्सक के पास गया तो उसे एलोपैथी प्रभावी लगने लगती है.
(वास्तव में इस आधार पर किसी चिकित्सा पद्धति को परखा नहीं जा सकता)। आयें, इस बार यहाँ इन दोनों चिकित्सा-पद्धतियों के सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं को एकसाथ व तुलनात्मक रूप से समझते हैं.
Which Is Better Ayurveda Or Allopathy In Hindi

आयुर्वेद एलोपेथी से बेहतर क्यों है ?
1. हानिप्रदता : आयुर्वेद में प्रायः नैसर्गिक रूप से उगने वाले पेड़-पौधों के फल-फूलों व पत्तियों इत्यादि का प्रयोग किया जाता है जो मानव-शरीर को अधिक हानि नहीं पहुँचाते.
परन्तु एलोपैथी में विशुद्ध रूप से रसायनों व सांष्लेक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है जिनके आनुशंगी प्रभाव अर्थात् साइड इफ़ेक्ट्स तो पड़ने ही हैं (कई बार ऐसा भी होता है कि इन अवांछित प्रभावों को दूर करने और औषधियाँ सेवन करनी पड़ती हैं, इस प्रकार एक दुष्चक्र बन जाता है).
उदाहरण के रूप में कई एलोपैथी दर्दनिवारक यकृत में विष के रूप में जमने चले जाते हैं एवं वर्षों तक गुप्त शत्रु जैसे छुपे रहकर भविष्य में अचानक बड़ी समस्या के रूप में प्रभाव दिखलाते हैं.
तथा बात-बात पर एलोपॅथिक प्रतिजैविक/ एण्टिबायोटिक का सेवन भी व्यक्ति के प्रतिरक्षा-तन्त्र को दुर्बल बना देता है एवं वे रोगप्रद सूक्ष्मजीव प्रतिरोधी (बेसरम) हो जाते हैं अर्थात् फिर ये व अन्य प्रतिजैविक उनपर अप्रभावी सिद्ध होने लगते हैं, मल्टि-ड्रग रेसिस्टेन्स की घातक समस्या भी एलोपॅथी की ही करनी है।
2. कारण का निवारण : आयुर्वेद में रोग के कारण के निवारण पर बल दिया जाता है जबकि एलोपॅथी में लक्षणों के आधार पर रसायनों का सेवन कराये जाने पर ज़ोर दिया जाता है.
इसलिये सम्भावना यह रहती है कि एलोपॅथी में रोग दब जायेगा अथवा भविष्य में और गम्भीर रूप में सामने आयेगा जबकि आयुर्वेद में रोग के कारण को निर्मूल करने की चेष्टा की जाती है।
3. आयुर्वेद लगभग अहिंसक : एलोपैथी के मूल में प्रायः पशु-पक्षियों पर प्रयोग किये गये होते हैं जिससे यह तुलनात्मक रूप से पशुक्रूरतापूर्ण लग सकती है जबकि आयुर्वेद में ऐसा कम देखने आता है।
4. मानवों पर परीक्षण नहीं : एलोपॅथी में चूँकि अन्य प्रजातियों पर औषधियों को परखकर देखा जाता है इस कारण मनुष्यों में भी वे उसी प्रकार अथवा समान रूप में रोगोपचारक होंगी यह संदिग्ध बना रह सकता है।
आयुर्वेद तो सहस्राब्दियों पुरानी चिकित्सापद्धति है। कई बार एलोपॅथी के रसायनों के संष्लेषण द्वारा औषधियों के निर्माण में कच्चे माल के रूप में किसी न किसी प्रकार रक्त, ग्रंथियों की कोशिकाओं इत्यादि का प्रयोग किया गया होता है।
5. व्यक्तिप्रधान : आयुर्वेद में व्यक्ति के शरीर को ध्यान में रखा जाता है जबकि एलोपॅथी में परीक्षणों के बहुमत, रसायनों व तथा आधुनिक विज्ञान को ध्यान में रखकर चिकित्सा के प्रयास आरम्भ कर दिये जाते हैं।
6. अधिकांश रोग आयुर्वेद में सहज उपचार-योग्य : प्रतिष्याय (सर्दी-ज़ुकाम), खाँसी, सामान्य दस्त-उल्टी सहित त्वचारोगों इत्यादि के सामान्य प्रकारों में आयुर्वेद अधिक उपयोगी है जिनमें रसायनों का सेवन लाभ से अधिक हानि पहुँचा सकता है।
संचार-साधनों सहित एलोपॅथिक चिकित्सकों द्वारा भी इस दिशा में प्रेरित किया जाना चाहिए कि छोटी-मोटी बीमारियों में आयुर्वेद चिकित्सकों के पास जायें जहाँ हानिरहित रीति में उपचार हो सकेगा एवं अब भी आयुर्वेद इन अधिकांश रोगों के उपचार में सक्षम है।
यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि तथाकथित झोलाछाप फ़र्ज़ी डाक्टर्स अथवा भभूती वाले बाबा अथवा तन्त्र-मन्त्र व जादू-टोने के नाम पर टोटकेबाज़ लोगों से दूरी बरतें जिनके कारण आयुर्वेद की प्रतिष्ठा बहुत धूमिल हो चुकी है।
सम्बन्धित रोग के विषेषज्ञ एवं विधिवत् षिक्षित-प्रषिक्षित चिकित्सक के ही पास जावैं जिसके पास पर्याप्त जाँच-सुविधाएँ व अन्य अपेक्षित संसाधन हों जिनसे वह आपको जाँच सके व उपयुक्त उपचार सुझा सके।
एलोपेथी आयुर्वेद से बेहतर क्यों है ?
1. प्रभावकारिता : आयुर्वेद की अपेक्षा एलोपॅथी को शीघ्र प्रभावकारी माना जाता है एवं कई मामलों में ऐसा होता भी है क्योंकि एलोपैथी में वे रसायन होते हैं जो सान्द्रित (कान्सण्ट्रेटेड) रूप में सीधे शरीर की प्रणालियों में पहुँच जाते हैं.
जबकि आयुर्वेद में जड़ी-बूटी इत्यादि में रोगोपचारक तत्त्व उतनी अधिक मात्रा व उतने सरल-अवशोषणीय रूप में नहीं होते एवं पाचन की लम्बी प्रक्रिया के भी दौरान इन तत्त्वों की बड़ी मात्रा पाचन-पथ में ही नष्ट हो जाती है, इस प्रकार रक्त में सीमित मात्रा पहुँच पाती है।
2. उपलब्धता : विभिन्न एलोपॅथिक औषधियाँ विष्व के बहुत सारे कारखानों में बनायी जा रही हैं जबकि आयुर्वेद में प्रयुक्त वनस्पतियाँ दुर्लभ हो चली हैं एवं खेतों में भी सीमित उत्पादन ही किया जा रहा है क्योंकि अधिकांश किसान अब भी गेहूँ-चना-धान इत्यादि फसलें ही उगाते हैं।
च्यवनप्राश इत्यादि जैसे ऐसे कई औषधीय मिश्रण हैं जिनमें पहले प्रयोग किये जाने वाले अनेक पौधे अब सरलता से नहीं दिखते जिससे उनके विकल्प के रूप में वैसे उपयोग वाले किन्तु कम रोगोपचारक पौधों को उपयोग में ले लिया जाता है जिससे समग्र औषधि उतनी अधिक उपयोगी नहीं रह जाती।
अधिक से अधिक लाभ के चक्कर में स्थानीय आदिवासी एवं व्यापारी प्रकृति के नियमों के विरुद्ध बीजों व जड़ों को अत्यधिक बीन व उखाड़ लाते हैं जिससे नैसर्गिक रूप से उनका उत्पादन लगातार घटता जा रहा है तथा एक दषक पहले प्रचुर मात्रा में मिलने वाली कई औषधियाँ अब कम आवाजाही वाले सघन वनों में भी ढूँढे नहीं दिखतीं।
3. गम्भीर रोगों में एलोपॅथी ही आसरा : गहरी चोट, शरीर की अंतःस्रावी (एण्डोक्राइन) ग्रंथियों की विकृतियों, तेज बुखार, स्थायी समझे जाने वाले रोगों में एलोपॅथी की नपी-तुली चिकित्सा-षैली ही काम आती है।
हाँ ! Ayurveda को भी एलोपॅथी के साथ-साथ सहायक चिकित्सा-प्रणाली के रूप में अपनाया जा सकता है (जैसे कि मधुमेह व कैन्सर में कुछ जड़ी-बूटियाँ रोग की तीव्रता को घटाने में उपयोगी पायी गयी हैं).
परन्तु स्मरण रखें कि दोनों चिकित्सा-पद्धतियों के चिकित्सकों को यह पूरा विवरण पता होना चाहिए कि आप किन-किन चिकित्सा-पद्धतियों को अपना रहे हैं एवं घरेलु व अन्य स्तरों पर क्या-क्या प्रयास कर रहे व करते रहे हैं।
अब तक की गयी सभी जाँचों की Reports एवं सभी के पर्चों सहित अपना चिकित्सात्मक अतीत भी एक रजिस्टर में File के रूप में मैण्टैन करके रखें। बहुत सारे रोगों के कारण व प्रभाव परस्पर जुड़े पाये जाते हैं, दशकों बाद भी आपका पुराना चिकित्सा-विवरण तात्कालिक रूप से हावी किसी रोग की जड़ को पकड़ने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
एक विनती – दोस्तों, आपको यह आर्टिकल आयुर्वेद व एलोपैथी में अंतर (Which Is Better Ayurveda Or Allopathy In Hindi) कैसे लगा.. हमें कमेंट जरुर करे. इस अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरुर करे.