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अश्रुप्रवाह लैक्रिमेशन से कितनी हानि व कितने लाभ Teardrop Flow Lacrimation Loses Benefits In Hindi
Teardrop Flow Lacrimation Loses Benefits In Hindi
लैक्रिमेशन क्या है
नेत्रों से अश्रु निकलने को अश्रुपात (लैक्रिमेशन/एपिफ़ोरा) भी कहा जाता है। इस स्थिति को अन्य शब्दों में आँख़ों में पानी आना इत्यादि भी कहा जा सकता है। हाथी इत्यादि पशुओं में भी भावनात्मक रुदन की प्रक्रिया देखी गयी है। अश्रुस्रावी तन्त्र में सिक्रेटरी व उत्सर्जी अवयव होते हैं। सामान्यतया अश्रुओं के उत्पादन व अश्रुओं की निकासी के मध्य एक संतुलन रहता है।
यह संतुलन यदि किसी कारणवश प्रभावित हो जाये तो स्रावी अथवा उत्सर्जी अवयव द्वारा अश्रुस्रावण को प्रेरित किया जा सकता है। स्रावी तन्त्र में नेत्रों के पास भीतर अश्रुस्रावी ग्रंथियों (दोनों नेत्रों के पास एक-एक अश्रुस्रावी ग्रंथि) से आंसू उत्पन्न होते हैं।
लैक्रिमेशन से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द
मूलभूत लैक्रिमेशन नेत्रों में अश्रुस्रावी ग्रंथियाँ होती हैं जो नैसर्गिक रूप से अश्रु-उत्पादन करती हैं। यह मूल आंसू उत्पादन उम्र बढ़ने के साथ घट सकता है. फ़ाइब्रोसिस इत्यादि स्थितियों से भी इस पर प्रभाव पड़ता है। प्रतिक्रियात्मक लैक्रिमेशन नेत्रों के सम्पर्क में कुछ आ जाने (जैसे कि तेज अथवा गर्म अथवा ठण्डी हवा अथवा धूल-मिट्टी इत्यादि) से इस बाहरी प्रेरक के कारण विक्षोभ (इरिटेशन) होने लगता है जिससे अश्रु स्रावित होने लगते हैं।
अश्रु लाने वाले इन उद्दीपनों (स्टिम्यूलेशन्स) में चकाचौंध जैसे अन्य कारक भी सम्मिलित हैं तथा ये कारक सदा बाहरी हों ऐसा आवश्यक भी नहीं, अर्थात् ये आन्तरिक भी हो सकते हैं, जैसे कि कार्नियल अल्सर एवं मानसिक (भावनात्मक)। प्रतिक्रियात्मक अश्रुप्रवाह सूजन, एलर्जी, नेत्रगोलक में बाल स्पर्श कर जाने, नेत्र सूखने व चोट लगने से भी हो सकता है।
अल्प अश्रुप्रवाह आवश्यकता से कम अश्रुप्रवाह।
अतिअश्रुस्रावण – अश्रुस्रावी ग्रंथियों का प्राथमिक अतिअश्रुस्रावण बहुत कम ही देखा गया है। अश्रुओं के अतिस्रावण का सर्वाधिक देखा गया प्रकार फ़ेशियल नर्व पाल्सी के बाद एबॅरेण्ट नर्व रिजनरेशन है। नेज़ोलेक्रिमल डक्ट आब्स्ट्रशन से होने वाला अश्रुस्राव स्त्रियों में अधिक देखा गया है।
लैक्रिमेशन के प्रकार
अश्रुउत्पादन के चार प्रकार देखे गये हैं –
1. गस्टेटरी एपिफ़ोरा (एपेरेण्ट नर्व रिजनरेषन से आने वाले क्रोकोडाइल टियर्स)
2. रिफ़्लैक्स एपिफ़ोराआब्स्ट्रक्टिव (आक्युलर सर्फ़ेस ट्रामा अथवा स्टिम्यूलेशन से होने वाला अनुक्रियात्मक अश्रु उत्पादन)
3. आब्स्ट्रक्टिव एपिफ़ोरा (पंक्टल, कॅनालिक्युलर, लेक्रिमल सेक अथवा लेक्रिमल डक्ट आक्लुज़न)
4. हाइपरसिक्रेटरी एपिफ़ोरा (इसमें अश्रुओं का उत्पादन अतिरेक मात्रा में होने लगता है, ऐसा बहुत कम ही होता है)।
Teardrop Flow Lacrimation Loses Benefits In Hindi


अश्रुप्रवाह के लक्षण
अश्रुप्रवाह में कुछ अवधि के लिये दृष्टि में धुँधलापन आ सकता है, अश्रुकोष संक्रमित होने की स्थिति में कोई अर्द्धठोस भी बनता दिख सकता है, कॅनालिक्युलर फ़ारन बाडी से सम्पर्क हो गया हो तो म्यूकायड डिस्चार्ज हो सकता है।
लैक्रिमेशन जाँच के दौरान
1. आकस्मिक अथवा क्रमिक – अतिअश्रुप्रवाह की समस्या यदि अचानक उत्पन्न हुई हो तो यह प्रायः किसी स्थानीय तात्कालिक कारण से उपजी हुई हो सकती है।
2. अवधि – नॅज़ोलेक्रिमल डक्ट संकुचन एवं सम्बन्धित अश्रुस्रावण प्रायः धीरे-धीरे विकसित होता है।
3. सीज़्नल है कि नहीं ?
4. किस समय ? प्रातःकाल अश्रुस्राव व कष्ट होने की स्थिति में रिकरेण्ट कार्नियल इरोज़न की आशंका व्यक्त की जाती है।
5. एकनेत्रीय अथवा द्विनेत्रीय ? एक नेत्र में पीड़ा होती हो तो बाहर से कोई कण भीतर अटक जाने, कार्नियल अल्सर, खुरचन, किरेटाइटिस, ग्लुकोमा अथवा आइराटिस से एक नेत्रीय अति अश्रुस्राव होने की सम्भावना अधिक रहती है।
6. निरन्तर अथवा अन्तराली
7. गम्भीरता
8. खुजली – स्विमिंग पूल में तैरने से हो रहे संक्रमण अथवा ग्लुकोमा ड्राप्स अथवा अन्य सीज़्नल एलर्जीज़ की उपस्थिति में खुजली की आशंका रहती है।
9. पलक झपकने पर जलन अथवा असहजता – यह प्रायः प्रातः होने की सम्भावना अधिक देखी गयी है जिसका सम्बन्ध हो सकता है कि ड्राए आई सिण्ड्राम (किरेटाइटिस सिक्का) से हो।
10. पारिवेषिक कारक – किसी सुपरमार्केट अथवा दुकान अथवा यांत्रिक कार्यशाला जैसी जगह पर होने पर यदि अश्रुस्राव बढ़-बढ़ जाये तो सम्भावना है कि वहाँ प्रयोग किये जाने वाले किसी स्प्रे अथवा पॉलिशिंग इत्यादि से उसे प्रतिक्रियात्मक अश्रुस्राव हो रहा हो।
11. मेकअप – रासायनिक कोस्मेटिक्स में ऐसे ढेरों पदार्थ पाये जा चुके हैं जिन्हें शरीर प्रतिजन (एण्टिजन) अथवा एलर्जेन समझता है एवं शरीर के अन्य अंगों पर प्रयोग करने पर भी अश्रु नेत्र से निकलने लगते हैं।
12. नेत्रऔषधियाँ – पिलोकार्पिन, फ़ास्फ़ोलिन आयोडाइड एवं आइडाग्ज़ुरिडीन से अश्रुस्रावी अवरोध होता पाया गया है।
13. कीमोथिरॅपी – कई कीमोथिरॅप्युटिक ड्रग्स के कारण कॅनालिक्युलर स्केरिंग होती देखी गयी है।
14. विकिरण – बेसल सेल कार्सिनोमा के लिये यदि पेरिआर्बिटल क्षेत्र में विकिरण का प्रयोग किया गया हो तो विकिरण-प्रेरित पंक्टल अथवा कॅनालिक्युलर स्केरिंग हो सकती है।
15. नासिका में लगी चोट – नाक में कभी कोई अनदेखी चोट लगी हो तो भीतर हुए किसी अज्ञात फ्ऱेक्चर के फलस्वरूप बरसों बाद नॅज़ोलेक्रिमल डक्ट पर प्रभाव पड़ने से अश्रुस्राव सम्भव
16. साइनसरोग अथवा नेज़ल शल्यक्रिया
17. पलक शल्यक्रिया
18. पूर्ववर्ती अश्रुस्रावी शल्यचिकित्सा अथवा समस्याएँ
19. इण्ट्राक्रेनियल शल्यक्रिया अथवा पॅरोटिड शल्यचिकित्सा से प्रियार फ़ैशियल नर्व डिसफंक्शन की आशंका होती है।
20. खाने, चबाने अथवा बोलने से जुड़ाव – इन तीन क्रियाओं में से किसी से अश्रुस्राव होता हो तो यह एकनेत्रीय हो सकता है एवं सेवन्थ नर्व के एबॅरेण्ट नर्व रिजनरेषन (क्रोकोडाइल टियर्स) से सम्बद्ध हो सकता है।
21. कन्जक्टिवाइटिस अथवा म्युकाइड डिस्चार्ज – ऐसी स्थिति नेज़ोलेक्रिमल डक्ट आब्स्ट्रशन की उपस्थिति में हो सकती है। ऐसे रोगियों में अश्रुस्रावी कोष पर हल्का-सा दबाव देने पर प्रत्येक पंक्टम से श्लेष्मा (म्यूकस) का निकलना सम्भव।
22. डिस्चार्ज का प्रकार – यदि किसी प्रकार का डिस्चार्ज होता हो तो पीब अथवा मवादयुक्त डिस्चार्ज से जीवाण्विक संक्रमण की उपस्थिति की आशंका व्यक्त की जा सकती है, रुधिर साथ हो तो लॅक्रिमल सेक ट्यूमर की आशंका प्रबल है।
23. चेहरे का सम्पूर्ण परीक्षण जिसमें पलकों के झपकने व कुछ चबाने के दौरान उनमें परिवर्तन जैसे प्रभावों का अवलोकन सम्मिलित है।
24. थायराइड जाँच
25. एपिफ़ोरा के कारण के रूप में सूखे नेत्र – कई कारणों से नेत्रों में सूखापन आ सकता है एवं सूजन भी इनमें से एक है। नेत्रों में सूखेपन की जाँच आवश्यक हो सकती है, नेत्रों का सूखापन दो प्रकार का हो सकता है..
(क) अश्रुस्रावी ग्रंथि स्रावण में कमी से एक्वियस-डेफ़िशियन्सी सबटाइप.
(ख) इवेपोरेटिव ड्राई आई – वाष्पन द्वारा अश्रुओं की अत्यधिक हानि
26. विभिन्न जाँचों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है.. (स्रावी (सिक्रेटरी) जाँचें एवं उत्सर्जी (एक्स्क्रिटरी) जाँचें
लैक्रिमेशन से बचाव एवं उपचार
*. सौन्दर्य-प्रसाधन के नाम पर कोई भी पदार्थ नेत्रों के आसपास अथवा माथे पर न लगायें, सिर के लिये यदि कोई उत्पाद प्रयोग करते हों तो वह भी हर्बल ही हो.
*. मन से कोई सप्लिमेण्ट इत्यादि सेवन न करें।
*. यदि चिकित्सक ने कोई आईड्राप दिया हो तो उसे विधिवत निर्देश-पालन करते हुए व समय रहते उपयोग कर लें तथा उसका ढक्कन कसकर लगायें व उसके मुख पर अँगुली आदि का स्पर्श न होने दें।
*. नेत्रों को रगड़ने जैसे हानिप्रद प्रयास न करें, यदि नेत्रों में अकस्मात कुछ चला गया हो तो सादे पानी से धोकर साफ़ करें।
*. यदि यात्रा कर रहे हों अथवा कार्यस्थल धुएँ अथवा धूल-कण से भरा हो तो नेत्ररोग चिकित्सक से नेत्र-जाँचें अवश्य कराते रहें तथा उससे पूछकर विशेष चश्मा तैयार करवा कर पहनें।
*. रिफ़्लेक्स टियरिंग को घटाने के लिये आईलिड रिपाज़िष्निंग सर्जरी करायी जा सकती है अथवा ल्युब्रिकेशन से सर्फ़ेस-इरिटेशन के उपचार का प्रयास किया जाता है। नेत्ररोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करें.
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