पैरों में सूजन के कारण व निवारण Swelling in Feet Causes Treatment in Hindi
Swelling in Feet Causes Treatment in Hindi
मौजे कसे हुए लगने लगें अथवा पैण्ट चुस्त अथवा ग़रम लगने लगे तो यह पैरों में सूजन का एक लक्षण हो सकता है।
पैरों में सूजन के कारण
1. तरल-जमाव (एडिमा) – इस स्थिति में पैरों के ऊतकों अथवा रुधिर-वाहिकाओं द्वारा आवश्यकता अथवा सामान्य स्थिति से अधिक तरल धारित कर लिया जाता है। अत्यधिक चलने अथवा अत्यधिक बैठने रहने से ऐसा हो सकता है परन्तु यह शरीर का भार अधिक होने का अथवा शारीरिक सक्रियता कम होने का लक्षण भी हो सकता है अथवा किसी अधिक गम्भीर चिकित्सात्मक स्थिति का संकेत हो सकता है।
2. सूजन – पैरों के ऊतकों में जलन इत्यादि के कारण ऐसा सम्भव। अस्थिभंग, टेण्डन अथवा लिगामेण्ट में टूट-फूट से ऐसा हो सकता है अथवा आथ्र्राइटिस जैसी किसी अन्य अधिक गम्भीर सूजन सम्बन्धी बीमारी का संकेत भी यह हो सकता है।
उपरोक्त दो कारणों में से प्रत्येक कारण किसी अन्य कारण का परिणाम हो सकता है, जैसे कि…
तरल-जमाव क्यों ? एक अथवा दोनों पैरों में अतिरिक्त तरल जमा होने के कई कारण हो सकते हैं…
Swelling in Feet Causes Treatment in Hindi

कन्जेस्टिव हार्ट फ़ैल्योर – इसमें शरीर की रक्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये Blood Pump करने में हृदय दुर्बल पड़ रहा होता है। इस कारण तरल-जमाव (विशेषकर पैरों में) होता है। कन्जेस्टिव हार्ट फ़ैल्योर के अन्य लक्षण – साँसें ठीक से न ले पाना अथवा उथली साँसें, थकावट, खाँसी।
शिरा-समस्याएँ जैसे कि –
अ) डीप वैन थ्राम्बोसिस होने की स्थिति में पैर की शिरा में रक्त स्कन्द (ख़ून का थक्का) जम जाता है। यह टूटकर फेफड़ों तक जा सकता है जिससे पल्मोनरी एम्बोलिज़्म हो सकता है जो कि प्राणघातक हो सकता है।
आ) थ्राम्बोफ़्लेबाइटिस (सुपरफ़ीशियल थ्राम्बोफ़्लेबाइटिस) में थक्के त्वचा की सतह के निकट बनते हैं एवं टूटने की सम्भावना नहीं लगती।
डीप वैन थ्राम्बोसिस अथवा थ्राम्बोफ़्लेबाइटिस के आरम्भिक लक्षण स्वरूप एक पैर (विशेषत: पिंडली) में सूजन आती है क्योंकि उस क्षेत्र में रक्त भरने लगता है। पाँव में सूजन के अतिरिक्त ये लक्षण भी अनुभव हो सकते हैं – पैरों में दर्द अथवा नज़ाकत अथवा ऐंठन की अनुभूति, त्वचा की रंगत लाल अथवा नीली होना, त्वचा में गर्म अनुभूति।
इ) वेरिकोज़ वैन्स एवं क्रानिक वेनस इन्सफ़िषियन्सीः ये स्थिति तब आती हैं जब पैर के भीतर की शिराओं के कपाट रक्त को ऊपर हृदय की ओर ढकेलना जारी नहीं रख पाते। इसके बजाय रक्त नीचे ही रह जाता व जमा होने लगता है जिससे त्वचा में वेरिकोज़ वैन्स के नीले गुच्छे नज़र आने लगते हैं। इस कारण भी पैरों में सूजन सम्भव।
अन्य सम्भावित लक्षण – अधिक अवधि तक खड़े-बैठे रहने के बाद दर्द, त्वचा के रंग में परिवर्तन (लाल अथवा बैंगनी षिराओं का गुच्छा जैसा कुछ लगना अथवा पैरों के निचले भागों की त्वचा में भूरापन), सूखी, दरारी त्वचा, छाले व घाव, पैरों में दर्द बना रहना।
वृक्क-समस्याएँ – वृक्क अधिक समय तक सुचारु कार्य न कर पा रहे हों तो समस्याएँ आती हैं। रक्त से जल व अपषिष्ट पदार्थों को छानने में अक्षम वृक्कों के कारण शरीर में तरल एकत्र होने लगता है जिससे हाथों-पैरों में सूजन आ सकती है। साथ ही थकान, अपर्याप्त साँसें, मितली, अतिरेक प्यास, थोड़े-से में त्वचा घिस जाना एवं रक्तस्राव सम्भव।
तीव्र वृक्क-वैफल्य – इसमें वृक्क अपना कार्य अचानक बन्द कर देते हैं जिससे पैरों, टखनों व ऐड़ियों में सूजन आ सकती है किन्तु ऐसा प्रायः तब देखा गया है जब व्यक्ति अन्य समस्याओं के कारण चिकित्सालय में भर्ती होता है।
औषधियाँ – पाँव की सूजन कई औषधियों के अनुषंगी प्रभाव के रूप में भी हो सकती है, जैसे कि कैल्सियम चैनल ब्लाकर, दर्द व सूजन दूर करने वाली औषधियों, मधुमेहरोधी दवाइयों, एस्ट्रोजन अथवा प्रोजेस्टेरानयुक्त हार्मोनल मेडिकेशन्स, अवसादरोधी कुछ दवाओं से पैरों में सूजन हो सकती है।
गर्भावस्था – तीसरी तिमाही तक गर्भस्थ शिशु के कारण गर्भवती के पैरों की शिराओं पर दबाव बढ़ रहा होता है। इससे रुधिर का परिसंचरण धीमा पड़ जाता है एवं तरल-जमाव की आशंका होती है।
स्थिति ठीक न हो जो प्रिक्लेम्प्षिया नामक जटिलता आ सकती है जिसमें पाँवों व भुजाओं में सूजन के अतिरिक्त मूत्र में प्रोटीन निकलने, नेत्रों के आसपास गम्भीर सूजन, तेज सिरदर्द, दृष्टि में धुँधलापन होना अथवा चमकीला लगना जैसे लक्षण होते हैं।
अन्तिम तिमाही के दौरान अथवा प्रसव के तुरंत बाद पैरों में सूजन अथवा अपर्याप्त साँसों जैसी अनुभूतियाँ हों तो पेरिपार्टम कार्डियोमायोपेथी हो सकती है जो कि गर्भावस्था से सम्बन्धित एक प्रकार का हृद्वैफल्य (हार्ट-फ़ैल्योर) है।
तरल-जमाव के अतिरिक्त अन्य कारण
बिना तरल-जमाव के भी पाँवों में सूजन सम्भव है, जैसे कि..
आथ्र्राइटिस एवं अन्य संधिसमस्याएँ – गाउट (संधियों में यूरिक अम्ल क्रिस्टल्स जमने के कारण आकस्मिक पीड़ापूर्ण आघात्), क्नी बर्साइटिस (अस्थि व पेषी, त्वचा अथवा टेण्डन के मध्य गद्दे का कार्य करने वाले एक तरल-पूरित कोष बर्सा की सूजन), आस्टियोआथ्र्राइटिस (उपास्थि को ख़राब करने वाली टूट-फूट), र्ह्यूमेटायड आथ्र्राइटिस (इसमें प्रतिरक्षा-तन्त्र संधियों पर आक्रमण करने लगता है)।
पैरों में चोटें –
स्ट्रैन्स, स्प्रैन्स एवं अस्थि-भंग – गुल्फ को मोड़ते समय दर्द हो अथवा कोई हड्डी टूटी हुई हो तो पाँव में सूजन की सम्भावना होती है जो कि चोट से शरीर की सामान्य प्रतिक्रिया है। इसमें तरल व श्वेत रक्तकोषिकाएँ प्रभावित क्षेत्र में जाने लगती हैं ताकि घाव भर पाये।
सेल्युलाइटिस नामक एक गम्भीर संक्रमण में भी पैरों में सूजन होती है जिसमें स्टेफ़ाइलोकोकस व स्ट्रेप्टोकोकस जैसे जीवाणु त्वचा की दरारों के माध्यम से भीतर चले आते हैं। एड़ियों व आसपास से ऐसा होने की सम्भावना अधिक होती है जिसके लक्षण स्वरूप दर्द, गर्माहट, बुखार व लाल धब्बे सम्भव। सेल्युलाइटिस पूरे शरीर में तेजी से फैल सकता है।
पैरों में सूजन के उपचार व बचाव
*. खारे खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें.
*. कभी-कभी कम्प्रेशन स्टाकिंग्स को पहना जा सकता है.
*. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें.
*. गाड़ी चलाते समय सुरक्षित स्थान पर कुछ समय रुककर हाथ-पैरों को गतिशील करें, चलें-फिरें.
*. दिन में कई बार कुर्सी सोफ़े अथवा अन्यत्र कुछ-कुछ अवधि के लिये इस प्रकार की मुद्रा अपनायें कि पाँव हृदय से ऊपर हों, जैसे कि पीठ के बल लेटकर पैर उठाकर दीवार पर टिकाये रखते हुए.
*. पाँवों में किसी तैल द्वारा ऊपर-नीचे, घड़ी की दिशा व विपरीत दिशा में मालिश करें.
*. एक्यूप्रेशर की लकड़ी लाकर पाँव पर घुमायें तथा एक्यूप्रेशर वाली चप्पल पहनें.
*. जीन्स पैण्ट व गड़ने वाले जूते-सैण्डल्स से दूर रहें.
*. पाँव में अनावश्यक दर्द, असामान्य भारीपन अथवा साँसों में अपर्याप्तता, अत्यधिक थकान जैसी स्थिति होने अथवा हृदय, वृक्क अथवा यकृत रोग होने की आशंका होने पर सम्बन्धित Doctor से मिले.
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