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पेट के विभिन्न अंगों से जुड़ी बीमारियाँ Stomach All Diseases And Symptoms In Hindi
Stomach All Diseases And Symptoms In Hindi
पेट वास्तव में कोई एक भाग नहीं बल्कि कई अंगों का एक बहुत बड़ा समूह है। छाती से श्रोणि (पेल्विस) तक फैले उदर (पेट) में आमाशय (स्टमक) के अतिरिक्त यकृत, प्लीहा (स्प्लीन), अग्न्याशय (पैंक्रियाज़), वृक्क, क्षुद्रान्त्र (छोटी आँत), बृहदान्त्र (बड़ी आँत), मलाशय (रेक्टम) इत्यादि अंगों की उपस्थिति होती है।
समूचे शरीर के अधिकांश रोगों की जड़ पेट में ही हुआ करती है। Injection से निकाला गया दूध पीने, रसायन डालकर तैयार फसलें खाने एवं कृत्रिम दिनचर्या जीने से पेट के विभिन्न अंगों में विभिन्न विकृतियाँ अब और आसानी से घर कर जाती हैं।
पेट से जुड़ी विविध बीमारियाँः पेट यदि स्वस्थ न रखा जाये जो बहुत सारी बीमारियों की जड़ बन जाता है, जैसे दस्त(डायरिया), पित्ताष्मरी(पित्त की थैली की पथरी), गेस्ट्रोइसोफ़ेगल रिफ़्लक्स डिसीस, एपेण्डिसाइटिस, कोष्ठबद्धता (मलबद्धता कब्ज़), अर्ष-भगंदर इत्यादि।
बिना जाँच कराये जनसामान्य के लिये यह जानना सम्भव नहीं हो पाता कि समस्या कहाँ है क्योंकि दर्द के केन्द्र से वस्तुस्थिति का भान नहीं हो पाता एवं वमन, जी मिचलाना, त्वचा का रंग बदलना, गैस-समस्या इत्यादि कई लक्षण कई पेट रोगों में समान नज़र आ सकते हैं। यहाँ पेट के भीतर के कुछ अंगों से विशेष रूप से जुड़े रोगों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है.
Stomach All Diseases And Symptoms In Hindi

1. यकृतरोग : हिपॅटाइटिस A.B.C. इन तीन विषाणुओं से यकृतशोथ हो जाता हैतथा मद्य तो मानव तन-मन का शत्रु है ही, दर्दनिवारक के नाम पर बिना Prescription की दवाओं से विष जमने से फ़ैटी लीवर डिसीस And यकृत के ऊतकों का क्षय अथवा यकृत-कैन्सर भी सम्भव है। वैसे तो यकृत का आकार कई अन्य कारणों से भी बढ़ा हुआ हो सकता है।
2. अग्न्याशय-रोग : इस अंग में सूजन, कैंसर, गाँठ मोटापे, चोट, संक्रमण, मद्य इत्यादि से होते देखी गयीं हैं।
3. प्लीहावृद्धि : प्लीहा (स्प्लीन) का आकार बढ़ने के कई कारण सम्भव हैं, जैसे मलेरिया, ल्यूकेमिया, सिरोसिस, प्लीहा अथवा आसपास के किसी अंग में अर्बुद (ट्यूमर), कोई विषाण्विक, जीवाणिक अथवा परजीवी संक्रमण।
4. वृक्करोग : क्रोनिक गुर्दारोग (जो प्रायः उच्चरक्तचाप से होता है व समय के साथ ठीक नहीं होता), वृक्काष्मरी (पथरी), वृक्क के भीतर की अतिसूक्ष्म कोशिकाओं ग्लोमेरुलई में संक्रमण, ड्रग्स इत्यादि कारणों से होने वाली सूजन, पालिस्स्टिक किड्नी डिसीस, मूत्रपथ-संक्रमण, वृक्करोगों की जाँच ग्लोमेरुलर फ़िल्टरेशन रेट, अल्ट्रासाउण्ड, किड्नी-बायोप्सी, मूत्र परीक्षण, रुधिर-क्रियेटिनिन टेस्ट इत्यादि के माध्यम से की जाती है।
5. बृहदान्त्र रोग : बड़ी आँत व मलाशय का कैन्सर, इन दोनों के अल्सर इत्यादि।
6. मलाशय-रोग : भगंदर-अर्ष इत्यादि रोगों में मलाशय की माँसपेशियों में अतिरिक्त माँसल उभार अथवा दरार पड़ने से रक्तस्राव सम्भव।
कारण व निवारण :
1. तले-भुने, नमक-मिर्च मसालेदार खाद्यों (जैसे चिप्स, नमकीन) अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड्स (जैसे कि जंक, फ़ास्ट फ़ूड) एवं सोफ़्ट व कोल्ड ड्रिंक्स से दूर रहें तथा भोजन में कम रेशे व कम पानी लेते हों तो इन दोनों को बढ़ायें।
जंक’ का शाब्दिक अर्थ ‘कचड़ा’ होता है। जंक फ़ूड खाने वाले पेट को कूड़ा घर बना लेते हैं। जिस प्रकार मौखिक बात में नमक-मिर्च लगाकर कहने से हिंसा व बुराई फैलती है उसी प्रकार खाने में नमक-मिर्च से पेट में गैस व अन्य अपच सम्बन्धी शिकायतें पनपती हैं।
2. यथासम्भव भारतीय शैली के शौचालय का प्रयोग करें ताकि पेट ठीक से साफ़ हो सके।
3. यदि दुग्धोत्पाद बहुत लेने से पेट-समस्या हो तो इन्हें कम करें।
4. बीच-बीच में उठते-फिरते रहें, शारीरिक सक्रियता बढ़ायें। प्रतिदिन अनेक बार साईकल चलायें, रस्सी कूदें।
5. खाली पेट चाय-काफ़ी न पियें, न ही अनावश्यक रूप से भूखे रहें, इधर-उधर कुछ भी चबाने के बजाय सादा-सामान्य भोजन यथासम्भव समय पर कर लें। खाने के तुरंत बाद पानी एक-दो घूँट से अधिक न पीयें, आधे घण्टे बाद पी सकते हैं।
6. यदि वृक्क अथवा गवीनी (यूरेटर) में अष्मरी हो तो Vitamin – C युक्त खट्टे फल व कैल्षियम से समृद्ध दूध इत्यादि की मात्रा कम कर दें।
7. मलवेग न रोकें, तुरंत पेट खाली करके आयें।
8. कैल्शियम अथवा एल्युमीनियमयुक्त एण्टएसिड अथवा ठोस मल को पतला करने वाले लॅक्सेटिव का सेवन बिन चिकित्सक के परामर्ष से न करें, अन्यथा आँतों की गतियाँ असामान्य हो सकती हैं। एण्टिडिप्रेसेण्ट, लौह की गोली, दर्दनिवारक भी चिकित्सक की देखरेख में लें एवं वह भी सीमित अवधि तक एवं अति आवश्यक होने पर व कम मात्रा में।
9. ऐसा न करें कि पेट की समस्याओं में कभी पड़ौसी की बात सुनकर कोई चूर्ण खा लिया तो अगले महीने किसी परिचित के कहने पर एक सिरप पी लिया, पेट को औषधीय परीक्षण की प्रयोगषाला न बनने दें, अन्यथा वास्तविक रोग की पहचान कठिन हो सकती है एवं समस्या बढ़ते-बढ़ते इतनी ख़राब हो सकती है कि सामान्य दवाइयाँ असर न कर पायें।
10. नार्कोटिक्स, अल्होकल, धूम्रपान, समस्त Tabaco उत्पादों से सख़्त दूर रहना अनिवार्य है। अल्कोहल का एक प्रभाव तो पेट में यकृत का आकार बढ़ने के रूप में सामने आ सकता है एवं धूम्रपान से तो फ़ेफ़ड़ों के साथ पेट के आन्तरिक भागों का कैंसर तक हो सकता है।
11. भोजन में कृत्रिम अथवा रासायनिक पदार्थों की मात्रा को न्यूनतम करते रहें, परिरक्षकों (प्रिज़र्वेटिव्स), स्वादवर्द्धकों से जितनी सम्भव हो उतनी दूरी बरतें, आहार में कच्ची सामग्रियाँ (जैसे कि सलाद व अंकुरित अनाज) बढ़ायें.
12. बात-बात पर पेनकिलर खाने की आदत हो तो इसे दूर करें क्योंकि ये पेनकिलर्स रोग के लक्षण दर्द को दबा सकते हैं, कारण का निवारण नहीं कर सकते, दर्द किसी भी भाग में हो सम्बन्धित रोग-विशेषज्ञ के पास जायें, अन्यथा विशेष रूप से यकृत व अन्य अंगों की बड़ी-बड़ी समस्याएँ उन लोगों में बहुत पायी जा रही हैं जिनको पेनकिलर खाना छोटी-सी बात लगती है।
13. समस्या यदि ठीक न हो रही हो या फिर गम्भीर हो तो पेट व आँत रोग विशेषज्ञ चिकित्सक के पास जायें।
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