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न्यूमोनिया लक्षण कारण प्रकार जाँच उपचार Pneumonia Symptoms Causes Treatment In Hindi
Pneumonia Symptoms Causes Treatment In Hindi
न्यूमोनिया – यह एक प्रकार का फेफड़ा-संक्रमण होता है जिसमें फेफड़ों के उन वायुकोषों में संक्रमण हो जाता है जिन्हें एल्वियोली (Alveoli) भी कहा जाता है जिससे उनमें तरल अथवा मवाद जम सकता है। साँस लेना मुश्किल लगने लग सकता है। रक्त (Blood) में पर्याप्त Oxizen की आपूर्ति कठिन हो जाती है।
वैसे तो किसी को भी न्यूमोनिया (Pneumonia) हो सकता है परन्तु 65 वर्ष से अधिक के बुजु़र्गों व दो वर्ष की आयु तक के छोटे बच्चों को इसकी आशंका अधिक रहती है क्योंकि इनका प्रतिरक्षा-तन्त्र (Immune system) उनसे जूझने की दिशा में पर्याप्त समर्थ नहीं होता।
न्यूमोनिया किसी भी फेफड़े में अथवा दोनों में हो सकता है। ऐसा सम्भव है कि न्यूमोनिया (Pneumonia) हो किन्तु पता न पड़े, चिकित्सा जगत् में उसे वाकिंग न्यूमोनिया (Walking pneumonia ) कहा जाता है।
न्यूमोनिया जीवाणुओं, विषाणुओं एवं कवकों से हो सकता है। यदि जीवाणुओं अथवा विषाणुओं से हुआ हो तो संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में भी फैल सकता है। धूम्रपान व मद्यपान जैसे व्यसनों से न्यूमोनिया (Pneumonia) होने का जोख़िम बढ़ जाता है।
Pneumonia Symptoms Causes Treatment In Hindi

न्यूमोनिया के लक्षण (Pneumonia Symptoms) –
न्यूमोनिया के लक्षण इसके कारण, व्यक्ति की आयु व सम्पूर्ण स्वास्थ्य के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। ये प्रायः कई दिनों में विकसित होते हैं.
*. साँस लेते अथवा खाँसते समय छाती में दर्द
*. खाँसी में श्लेष्मा (म्यूकस) या बलगम का निकलना
*. थकावट एवं कम भूख
*. ज्वर, पसीना एवं ठण्ड लगना
*. मितली, उल्टी-दस्त
*. साँस कम आना
उपरोक्त लक्षणों के अतिरिक्त व्यक्ति यदि वृद्ध है या दुर्बल प्रतिरक्षा-तन्त्र (Weak Immune system) है तो मानसिक जागृति में परिवर्तन अथवा मतिभ्रम सहित अन्य असामान्यताएँ भी दिख सकती हैं तथा हो सकता है कि देह-तापमान सामान्य से कम रह रहा हो।
हो सकता है कि नवजातों एवं शिशुओ में संक्रमण के लक्षण न दिखें। इनमें बेचैनी अथवा थकान के चिह्न हो सकते हैं व नहीं भी। वैसे जाँच तो आवश्यक हो सकती है क्यों नये कोरोना वायरस (Corona Virus) से भी न्यूमोनिया होता देखा गया है।
न्यूमोनिया के कारण (Pneumonia Couses) –
जीवाणुओं, विषाणुओं अथवा कवकों से Pneumonia हो सकता है, ये सब बस कुछ माध्यम होते हैं..
*. जीवाणिक न्यूमोनिया – स्ट्रेप्टोकोकस प्न्यूमोनियेई नामक एक जीवाणु के अतिरिक्त मायकोप्लाज़्मा प्न्यूमोनियेई, हॅमोफ़िलस इन्फ़्लुएन्ज़ॅ व लेगियोनेला प्न्यूमोफ़िला नामक जीवाणुओं से।
*. विषाण्विक न्यूमोनिया – फ़्लु वायरस यानि इन्फ़्लुएन्ज़ा, कोल्ड वायरस या कामन कोल्ड (र्हाइनोवायरस),
*. रेस्पिरेटरी सिंक्सीशियल वायरस (शिशुओ में यह न्यूमोनिया का सबसे बड़ा कारण है) से।
*. कवकात्मक न्यूमोनिया – यह न्यूमोनिया निर्बल प्रतिरक्षा-तन्त्र वालों में अधिक देखा गया है जो गंदगी में जल्दी बीमार पड़ जाते हैं। इसमें प्न्यूमोसिस्टीज़ जिरोवेसी, क्रिप्टोकोकस स्पिशीज़ व हिस्टोप्लाज़्मोसिस स्पिशीज़ के कवक संक्रमण फैलाते पाये गये हैं।
कहाँ से हुआ इस आधार पर न्यूमोनिया का वर्गीकरण –
*. वेण्टिलेटर-सम्बन्धी न्यूमोनिया – चिकित्सालय में भर्ती कुछ लोगों को इस प्रकार का न्यूमोनिया हो सकता है यदि वे वेण्टिलेटर नामक उस यंत्र के प्रयोग के दौरान संक्रमित हो गये हों जो साँस लेने में सहायता करता है.
*. चिकित्सालय-अर्जित न्यूमोनिया – यदि न्यूमोनिया Doctor में तो हुआ हो परन्तु वेण्टिलेटर का प्रयोग करते समय न हुआ हो तो ऐसे न्यूमोनिया को ‘हास्पिटल-एक्वायर्ड’ न्यूमोनिया कहा जाता है।
*. समुदाय-अर्जित न्यूमोनिया – अधिकांश व्यक्तियों में इसी प्रकार से न्यूमोनिया (Pneumonia) होता है, अर्थात् इसके होने में चिकित्सालय से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं होता।
*. एस्पिरेशन न्यूमोनिया – यह व्यक्ति द्वारा लार, खाद्य अथवा पेय पदार्थ साँसों द्वारा अथवा सूँघकर जीवाणुओं को फेफड़ों में खींच लेने के कारण होता है। इस प्रकार का न्यूमोनिया होने की सम्भावना तब अधिक हो सकती है यदि व्यक्ति को निगलने में समस्या आ रही हो अथवा नींद-नींद आती रहती हो।
न्यूमोनिया की जाँच (Pneumonia Test) –
न्यूमोनिया के स्रोत व कारण को परखने के लिये श्वसन-रोग Expert चिकित्सक को कुछ जानकारियाँ होनी आवश्यक हैं, जैसे कि व्यक्ति का चिकित्सात्मक अतीत- जैसे कि क्या वह धूम्रपान करता है ? वह बीमार शाला, कार्यालय, मायके/ससुराल अथवा कहाँ हुआ अथवा क्या वह कहीं की यात्रा करके आ रहा है ?
फेफड़ों से आ रही आवाज़ों को सुनकर भी फेफड़ों में न्यूमोनिया के संकेतों को समझने का प्रयास किया जा सकता है क्योंकि साँस लेते समय न्यूमोनियाग्रस्त फेफड़ों से खड़खड़ाने, बुदबुदाने अथवा घड़घड़ाने के स्वर सुनायी देते हैं। न्यूमोनिया (Pneumonia) की पुष्टि के लिये श्वसन रोग अथवा फेफड़ा विशेषज्ञ द्वारा निम्नलिखित जाँचें सुझायी जा सकती हैं..
*. जीवाण्विक संक्रमण के अंश मिल जायें इसके लिये रक्त-परीक्षण
*. फेफड़ों में संक्रमण खोजने के लिये व इसका विस्तार पता लगाने के लिये छाती का एक्स-रे (X-Rey)
*. रुधिर में ऑक्सीजन का स्तर मापने के लिये पल्स-आक्सिमिट्री
*. फेफड़ों में संक्रमण का कारक ढूँढने के लिये थूक की जाँच
न्यूमोनिया सर्दी-खाँसी-ज़ुकाम जैसे बड़े वर्ग में आने वाली बीमारी है अतः इसके लक्षण अन्य कई सम्बन्धित बीमारियों से मिलते-जुलते हैं, जैसे कि प्लास्टिक ब्रोंकाइटिस नामक एक लिम्फ़ेटिक फ़्लो विकार में श्वसन-सम्बन्धी गम्भीर स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। प्लास्टिक ब्रोंकाइटिस से ग्रसित बच्चों में वायुमार्गों में लिम्फ़-फ़्लुड बन जाता है एवं रबड़ जैसी संरचना बन जाती है जो वायुमार्गों को अवरुद्ध करती है एवं साँस लेना कठिन होता है।
इसी प्रकार न्यूमोनिया व ब्रोंकाइटिस में अन्तर करना आवश्यक है न्यूमोनिया में फेफड़े के वायुकोषो में सूजन आती है जबकि ब्रोंकाइटिस में ब्रोंकियल ट्यूब्स में सूजन आती है, ये ऐसी नलियाँ हैं जो श्वासनली से होकर फेफड़ों में जाती हैं। संक्रमणों से न्यूमोनिया व एक्यूट ब्रोंकाइटिस दोनों हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त धूम्रपान करने वालों में अथवा अन्य प्रकार से प्रदूषकों को ग्रहण करने वालों में स्थायी अथवा क्रानिक ब्रोंकाइटिस पनप सकता है।
यदि न्यूमोनिया जैसे लक्षणों का आरम्भ चिकित्सालय में हुआ हो अथवा Hospital में उसका स्रोत होने आशंका हो तो अन्य जाँचें करवायी जा सकती हैं..
*. धमनीय रक्त-गैस जाँच – धमनियों से रक्त की कुछ मात्रा लेकर उसमें ऑक्सीजन रक्त-गैसका मापन किया जाता है;
*. ब्रेंकियोस्कापी – अवरोध अथवा अन्य समस्याएँ परखने के लिये वायुमार्गों (Airways) को परखना
*. फेफड़ों की अधिक विस्तृत इमेजेज़ पाने के लिये City Scan
*. प्ल्यूरल फ़्लड कल्चर – इसमें expert द्वारा फेफड़ों के आसपास के ऊतकों से तरल की कुछ मात्रा निकाल ली जाती है ताकि उसमें उन जीवाणुओं का पता किया जा सके जिनसे न्यूमोनिया हो सकता हो
न्यूमोनिया-सम्बन्धी जटिलताएँ –
बैक्टेरिमिया – इसमें जीवाणु (Bacteria) रक्त में फैल चुके होते हैं। इससे सेप्टिक शाक अथवा अंगों का चल बसना सम्भव.
साँस लेने में अत्यधिक परेशानी – इसमें फेफड़ों के ठीक होने तक बारम्बार ब्रीदिंग मशीन (Braiding machine) का प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती है.
फ़्लड बिल्डअप – इसमें फेफड़ों व चेस्ट-केविटी के मध्य ऊतक की पर्तों के मध्य तरल-जमाव हो जाता है। इस तरल में संक्रमण भी हो सकता है।
फेफड़ों में फोड़े – फेफड़े या फेफड़ों में अथवा आसपास मवाद भर सकता है।
न्यूमोनिया के उपचार (nimoniya ka upchar) की रीति उसके कारण पर निर्भर होगी, जैसे कि..
*. जीवाण्विक न्यूमोनिया के मामले में प्रति जैविकों का सेवन कराया जाता है। ध्यान रहे कि लिखित समस्त औषधियाँ समय पर व ठीक से पूरी तरह सेवन करने हुए ख़तम करनी हैं फिर चाहे रोग में आराम ही क्यों न मिल गया हो.
*. कवकात्मक न्यूमोनिया में अतिरिक्त साफ़-सफ़ाई का ध्यान अधिक रखने के साथ एण्टि-फ़ंगल एजेण्ट्स दिये जाते हैं।
*. विषाण्विक न्यूमोनिया में प्रतिजैविक उपयोग नहीं आते, जलादि नैसर्गिक तरल सेवन अधिक से अधिक करना होता है एवं बुखार उतारने की औषधियों का सेवन करना होता है. स्थितियाँ अधिक जटिल लगीं तो रोगी को चिकित्सालय में भर्ती भी किया जा सकता है।
वैसे प्रायः विषाण्विक न्यूमोनिया बिना उपचार कराये 1 से 3 सप्ताहों में अपने आप ठीक होता देखा गया है परन्तु ‘अपने आप ठीक हो जायेगा’ सोचकर यदि बैठ गये एवं यदि वह वास्तव में ठीक नहीं हुआ तो स्थितियाँ अनियन्त्रणीय भी हो सकती हैं। न्यूमोनिया चाहे जिस भी प्रकार का हो उससे उबरने में समय लग जाता है। यह भी सम्भव है कि कुछ महीनों तक थका-थका-सा लगते रहे।
*. उपरोक्त उपचार अनिवार्यत: विधिवत् अपनाते हुए घर पर भी कुछ उपाय अपनाते हुए कष्टों को कम किया जा सकता है, जैसे कि बाज़ार में पाँच-दस रुपयों में उपलब्ध भाप लेने का हरा कैप्सूल लाकर उबले पानी में डालकर सिर पर टावेल से गंजी/तबेली में तंबू जैसा बनाकर उसकी भाप को साँसों द्वारा खींचना अथवा नीलगिरि की पत्तियों को पानी में उबालकर उसमें कपूर के बहुत बारीक एक-दो टुकड़े अथवा हर्बल विक्स/बाम डालकर भाप साँसों में लेना।
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