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गर्दन-दर्द के कारण और उपचार Neck Pain Causes Symptoms Treatment In Hindi
Neck Pain Causes Symptoms Treatment In Hindi
गर्दन-दर्द लगभग सभी को कभी-कभी अथवा बारम्बार होने वाला दर्द है। गर्दन की पेषियों में खिंचाव मुख्यतः ग़लत मुद्रा से होता है; विशेष रूप से कम्प्यूटर पर कार्य करते समय अथवा मोबाइल देखते समय।
Neck Pain Causes Symptoms Treatment In Hindi


गर्दन-दर्द के लक्षण –
* अधिक समय तक मस्तक को एक स्थान पर थामे रखने (जैसे कि गाड़ी चलाने के दौरान) से बढ़ जाने वाला दर्द
* पेषियों में कसावट अथवा ऐंठन
* मस्तक अधिक सहजता से घुमाते न बनना
* सिरदर्द
* बाहुओं में झुनझुनाहट
* ज्वर
* गर्दन में कड़ाई
* गले एवं पीठ में दर्द
गर्दन-दर्द के कारण –
1. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (electronic gadget) लैपटॉप सहित विभिन्न ऐसे उपकरणो का प्रयोग पूरे शरीर की आसन-मुद्राओं को बिगाड़ देता है जिससे रीढ़ की हड्डी, गर्दन सहित कई मानसिक व तन्त्रिका-तन्त्र सम्बन्धी रोग होने की आशंका निश्चित-सी हो जाती है।
कुछ लोग सोचते हैं कि लैपटॉप आरामदेह होता है किन्तु वे समझ ही नहीं पाते कि सुविधा के हिसाब से प्रयोग की स्वतन्त्रता उनकी रीढ़ को सीधी नहीं रहने देती।
2. औस्त्रियो अर्थ्रराइट्स इसमें अस्थियों/कषेरुकाओं के मध्य उपास्थियों के गद्दे ख़राब होने लगते हैं। इससे संधियों की कार्यप्रणाली सुचारु नहीं रह पाती एवं दर्द होने लगता है।
3. पेशीय खिंचाव विशेषतया मोबाइल व कम्प्यूटर (computer) डेस्कटॉप के कारण गर्दन को मोड़े रखने अथवा बारम्बार बेतरतीब तरीके से घुमाने अथवा चलती गाड़ी में कड़क चीज़ (जैसे कि सूखे चने) चबाने से अथवा बोतल से धार बनाकर पानी पीने के लिये मुख को आकाश की तरफ़ करने से भी गर्दन में पेषीय खिंचाव उत्पन्न होता है।
4. सोने-टिकने के ग़लत आसनः तकिया लगाना सोने का सही तरीका नहीं होता, वास्तव में पीठ के बल बिना तकिये के समतल सतह पर सोना बेहतर रहेगा टिकते समय भी टिकने की सतह सीधी व समतल हो, यदि घर, विमान, ट्रैन अथवा बस आदि में टिकना हो तो एक हाथ अड़ाकर अथवा अन्य किसी प्रकार से आड़े-तिरछे न मुड़ते हुए सीट की पिछली टिकने की दीवार को पीछे झुकाकर टिकें ताकि पीठ एकदम सीधी रहे एवं गर्दन भी उसकी सीधी रेखा में हो।
सोने के सन्दर्भ में यदि करवट लेते समय ऊँची वस्तु आवश्यक लगे तो बाँह का प्रयोग किया जा सकता है एवं यदि कभी-कभी तकिया आवश्यक लगे तो उसे कोने में रखे रहने दें एवं करवट के समय ही उसका प्रयोग करें तथा वह कंधे की ऊँचाई का हो एवं अधिक नर्म अथवा अधिक कठोर न हो ताकि सोते हुए भी गर्दन रीढ़ की सीध में यथासम्भव रह सके।
5. कमज़ोर पड़ी संधियाँः शरीर की अन्य संधियों के समान गर्दन की संधियाँ भी समय के सापेक्ष निर्बल पड़ती जाती हैं।
6. चोटेंः झटके से चेहरा घुमाने अथवा अचानक मुण्डी मोड़ने से चोट लग सकती है क्योंकि गर्दन(neck) की कोमल पेषियाँ क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
7. अन्यः नर्व कम्प्रेषन, र्ह्यूमेटाइड आथ्र्राइटिस, मेनिन्जाइटिस अथवा कैन्सर (cancer) के भी कारण गर्दन-दर्द हो सकता है।
गर्दन-दर्द की गम्भीरता –
ऐसा कम ही होता है जब गर्दन-दर्द किसी गम्भीर समस्या का लक्षण हो। गर्दन में सुन्नता लगने, भुजाओं में ज़ोर न रहने अथवा हाथों में ढिलाई आने अथवा हाथ ऊपर करने पर कंधों में दर्द होने की स्थिति में अस्थि-रोगचिकित्सक (Orthopedic doctor) से मिलना आवश्यक हो सकता है।
गर्दन में यदि वाहन-दुर्घटना, घर पर गिर पड़ने इत्यादि कारणों से तेज दर्द हो अथवा हल्का दर्द बना हुआ हो तो भी चिकित्सक से मिलना आवश्यक है। किसी भी स्थिति में अथवा किसी भी कारण से गर्दन का दर्द यदि हाथों अथवा पैरों की ओर फैल रहा हो अथवा गर्दन में झुनझुनी अथवा कड़ाई अनुभव हो तो चिकित्सक से मिलें।
वैसे तो चिकित्सक द्वारा ये प्रश्न करने चाहिए परन्तु रोगी स्वयं इन प्रश्नों के उत्तर बिना पूछे स्पष्ट कर दैवें- दर्द कबसे हो रहा, कभी कोई
आन्तरिक अथवा बाह्य चोट लगी क्या, क्या करते हुए गर्दन-दर्द बढ़ जाता है, जैसे कि क्या खाँसने-छींकने के दौरान गर्दन-दर्द बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त यहाँ प्रदर्षित अथवा अन्य जिन लक्षणों का अनुभव हुआ उनके बारे में भी बतायें।
गर्दन दर्द की जाँचें –
एक्स-रे
एमआरआई
ईएमजी (इलेक्ट्रोमायोग्रॅफ़ी-
गर्दन-दर्द का रक्त-परीक्षण –
गर्दन-दर्द यदि किसी संक्रमण से होने की आशंका हो तो कम्प्लीट ब्लड काउंट विथ डिफ़रेन्षियल, इरिथ्रोसाइट सेडिमेण्टेषन रेट एवं सी-रियेक्टिव प्रोटीन को परखने के लिये रक्त जाँचा जाता है।
उपचयापचयी (मेटाबालिक) विकारों की आशंका हो तो कल्शियम, फ़ास्फ़ोरस, विटामिन – डी, पॅराथायरायड हार्मोन एवं एल्केलाइन फ़ास्फ़ेटेज़ स्तरों की जाँच की जाती है। स्पाइन के बोन-कैन्सर का एक रूप मल्टिपल मायलोमा होता है जिसे परखने के लिये यूरिन प्रोटीन इलेक्ट्रोफ़ोरेसिस व सीरम प्रोटीन इलेक्ट्रोफ़ोरेसिस किया जाता है।
नर्व-डैमेज का पता लगाना हो तो इलेक्ट्रोमायलोग्रॅफ़ी व नर्व-कण्डक्षन अध्ययन जैसे इलेक्ट्रोफ़िज़ियोलाजी परीक्षण समय पर कराने पड़ते हैं जिनसे तन्त्रिकाविज्ञानी नर्व-डैमेज की सटीक स्थिति व गम्भीरता को समझने के प्रयास करता है।
गर्दन-दर्द का उपचार –
सुयोग्य चिकित्सक के कहे अनुसार निर्धारित अवधि व लिखित मात्रा में मसल-रिलॅक्सेण्ट, फ़िज़िकल थिरॅपी/फ़िज़ियोथिरेपी, पेडेड नेक कालर अथवा गर्दन-दर्द व पेषियों की कसावट से राहत पाने हेतु सर्विकल ट्रॅक्षन, एक्यूपंक्चर, गर्दनसम्बन्धी कुछ योगासन एवं हल्के हाथों से अथवा दक्ष व्यक्ति द्वारा ग्रीवा-मर्दन (गर्दन-मालिश), नर्म गर्म गद्दे से गर्दन की सिंकाई इत्यादि।
गर्दन-दर्द से बचाव –
गर्दन-दर्द ग़लत मुद्रा-आसन एवं बढ़ती उमर से जुड़े होते हैं जिनमें से आसनों व मुद्राओं को सही करते हुए सुधार लाया जा सकता है एवं बुढ़ापे सम्बन्धी गर्दनदर्द में वे सभी सावधानियाँ अधिक बरतनी होंगी जो अन्य सभी को भी बरतनी चाहिए.
1. हो सके तो बिना तकिये के सोयें, शवासन (हाथ-पैर एकदम सीधे करके शव जैसे पीठ के बल लेटकर अर्थात् उत्तानावस्था में हाथ-पैरों को ढीला छोड़ दें एवं पूरा शरीर समतल व सीधी रेखा में रखें) में सोयें, टिकना हो तो सीधी समतल सतह पर टिकें ताकि रीढ़ की हड्डी से लेकर सिर तक एक सीधी रेखा में रहे, गाड़ियाँ चलाते समय भी सीट इत्यादि में आवश्यक परिवर्तन करें।
2. बैठते समय भी रीढ़ से सिर तक एक सीध में हों तथा कानों के नीचे दोनों कंधे सुस्पष्ट स्थिति में हों, यहाँ तक कि भोजन करते समय प्राचीन भारतीय शैली का प्रयोग करते हुए भूमि पर आती-पालती करके बैठकर एक पटे अथवा उल्टे स्टूल पर थाली रखकर खायें।
3. बैठे न रहकर बीच-बीच में उठकर आवश्यकतानुसार अँगड़ायी व जम्हाई खुलकर लें तथा चलते-फिरते रहें, नैसर्गिक वातावरण में अधिकाधिक घूमें, रहें।
4. ऊँचाई व सीध परिवर्तनः डेस्क, कुर्सी इत्यादि के प्रयोग में सावधानी बरतते हुए आवश्यकतानुसार इनमें ऊँचाई व सीध में परिवर्तन भी करायें, जैसे कि साईकल की सीट में परिवर्तन, हेल्मेट ठीक आकार व फ़िटिंग का हो, चोपहिया में सीटबेल्ट अवश्य लगायें ताकि झटका लगने पर गर्दन अधिक न झटके।
5. फ़ोन को कंधे व कान के मध्य अटकाकर बात न करें।
6. धूम्रपान रोकें – गर्दन-दर्द का जोख़िम धूम्रपान करने वालों में अधिक रहता है।
7. पीठ पर लादने वाले बस्तों की बनावट व भार सहित उन्हें पहनने का तरीका ठीक हो।
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