नाख़ूनों को स्वस्थ व सुन्दर कैसे रखें Nail Beauty Care Tips In Hindi
Nail Beauty Care Tips In Hindi
स्वस्थ नाख़ून चिकने व एकरूप रंग लिये नज़र आते हैं। उम्र बढ़ने के साथ नाख़ूनों पर खड़ी उभरी रेखाएँ दिख सकती हैं अथवा नाख़ून पहले की अपेक्षा कुछ आसानी से टूट सकते हैं जिसमें घबराने अथवा समस्या वाली कोई बात नहीं है। चोट के कारण बने धब्बे तो नाख़ून बड़े होने के साथ-साथ गायब हो जाते हैं।
नाख़ून सम्बन्धी असामान्यताएँ
धब्बे, रंग फीका पड़ने अथवा नाख़ून अलग होने जैसी समस्याएँ हाथ-पैरों में नाख़ूनों के आसपास किसी चोट से उत्पन्न हो सकती हैं। इन असामान्यताओं के मूल में वायरल वाट्र्स (पेरिउंगुअल वाट्र्स), संक्रमण (ओकनकोमायकोसिस) एवं कुछ दवाइयाँ (जैसे कि कीमोथिरॅपी में दी गयीं) हो सकती हैं। कुछ चिकित्सात्मक स्थितियों में भी नाख़ूनों का रूपरंग बदल सकता है जिसकी व्याख्या कठिन हो सकती है।
Nail Beauty Care Tips In Hindi

नाख़ूनों के बिगड़ते स्वास्थ्य के लक्षण
* रंग फीका पड़ना- गहरी रेखाएँ, सफेद रेखाएँ अथवा रंगपरिवर्तन .
* आकृति में परिवर्तन .
* नाख़ूनों की मोटाई में बदलाव (मोटे अथवा पतले होने लगना) .
* शीघ्र टूट-फूट जाना .
* गड्ढेदार नाख़ून .
* नाख़ूनों के आसपास ख़ून .
* नाख़ूनों के आसपास सूजन अथवा लालिमा .
* नाख़ूनों के पास दर्द .
* नाख़ूनों का त्वचा से उधड़ना/उखड़ना/अलग होना .
नाख़ूनों को ख़राब करने वाले कुछ कारण
1. बिएएऔ’ज़ लाइन्स- नाख़ूनों में धँसाव की रेखाएँ बन सकती हैं। ऐसा कुपोषण के प्रभावस्वरूप सम्भव है। वैसे इन कारणों से भी ये बिएऔ’ज़ लाइन्स बन सकती हैंः मीज़ल्स, मम्प्स व स्कार्लेट फ़ीवर जैसे तेज बुखारयुक्त रोगों में अथवा पेरिफ़ेरल वेस्क्युलर डिसीस में अथवा प्न्यूमोनिया में अथवा अनियन्त्रित मधुमेह में अथवा जस्ते की कमी से।
2. क्लबिंग- इसमें नाख़ून मोटे होकर छोर की तरफ़ मुड़ जाते हैं। यह प्रक्रिया प्रायः वर्षों में होती है। हाथ-पैर की अँगुलियों अथवा अँगूठों का छोर बल्ब जैसा लग सकता है। ऐसी अँगुलियों को कभी-कभी ड्रमस्टिक फ़िंगर्स कह दिया जाता है क्योंकि उनकी बनावट मुनगा/सहिजन की फलियों जैसी दिखने लगती है।
यह रुधिर में कम आक्सीजन के कारण हो सकती है तथा इन रोगों से भी सम्बद्ध हो सकती हैः हृद्वाहिकीय रोग, इन्फ़्लेमेटरी बावेल रोग, यकृत-रोग, फेफड़ों के रोग एवं एैड्स।
3. कोइलोनिकिया- इसमें नाख़ूनों के कटक (रिजेज़) उठ जाते हैं एवं कलछी/झरिये/चम्मच के समान बाहर की ओर आने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति इतनी आगे बढ़ चुकी हो कि तरल की बूँद तक थामने का स्थान उसमें हो।
कोइलोनिकिया इन रोगों का चिह्न हो सकती है लौह की कमी से हुआ एनीमिया, हृदयरोग, हीमोक्रोमेटोसिस नामक एक यकृत-विकार जिससे खाने से बहुत अधिक लौह अवशोषित हो-हो जाता है, ल्युपस एरिदेमेटोसस नामक एक आटोइम्यून विकार जिससे सूजन आती है, हायपोथायराइडिज़्म, रेनाउड रोग जिसमें रक्त-परिसंचरण सिमट जाता है।
4. लिउकोनिकिया (सफेद धब्बे)- इसमें ग़ैर-एकरूप सफेद धब्बे अथवा रेखाओं को नाख़ूनों पर देखा जा सकता है। ये प्रायः किसी छोटे ट्रामा के परिणामस्वरूप होते हैं एवं स्वस्थ व्यक्तियों में हानिरहित होते हैं। कभी-कभी लिउकोनिकिया का सम्बन्ध ख़राब स्वास्थ्य अथवा पोषणात्मक कमियों से हो सकता है। संक्रमणों, कुछ दवाइयों सहित उपचयापचयी (मेटाबालिक) अथवा सर्वांगीण रोगों जैसे कारक स्थिति को बढ़ावा दे सकते हैं।
5. मी’ज़ लाइन्स- ये तिरछी सफेद रेखाएँ होती हैं। ये आर्सेनिक विषाक्तता का लक्षण हो सकती है। यदि नाख़ूनों में ऐसे निशान नज़र आ रहे हों तो चर्म रोगचिकित्सक द्वारा व्यक्ति के शरीर में आर्सेनिक की उपस्थिति परखने के लिये केष अथवा ऊतक सैम्पल्स माँगे जा सकते हैं।
6. ओनिकोलिसिस- इस स्थिति में नाख़ून की प्लेट नैल-बेड से अलग हो जाती है। इसमें सफेदी छा जाती है। संक्रमण, ट्रामा के कारण अथवा नाख़ूनों पर लगाये गये किसी उत्पाद के प्रभाववष ऐसा हुआ हो सकता है। अन्य कारणों में प्सोरायसिस व थायराइड रोग सम्मिलित हैं।
7. नाख़ूनों में गर्त बनना (पिटिंग)- इसमें नाख़ून में छोटे-छोटे धँसाव अथवा छोटे गड्ढे बन जाते हैं। प्सोरायसिस के रोगियों में ऐसा होता ही है क्योंकि प्सोरायसिस में त्वचा की स्थिति ऐसी हो ही जाती है कि जिससे त्वचा में सूखापन, लालिमा, विक्षोभ (इर्रिटेषन) आने लगता है। कुछ सर्वांगीण रोगों से भी ऐसा हो सकता है।
8. टेरी’ज़ नैल्स- इसमें हर नाख़ून के छोर पर डार्क बैण्ड दिखता है। यह स्थिति बुढ़ापे के अतिरिक्त कन्जेस्टिव हार्ट फ़ैल्योर, मधुमेह व यकृतरोग से भी आ सकती है।
9. नीले नाख़ून- नाख़ून नीले लगने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि चाँदी-विषाक्तता; मलेरिया-रोधी दवाइयाँ; हृदय की धड़कन को सामान्य करने वाली दवाइयाँ; रेडियेटर्स साफ़ करने में प्रयुक्त आग्ज़ेलिक अम्ल के कारण मिकेनिक्स के हाथों के नाख़ून नीले पड़ना.
मेटल क्लीनर्स, पैण्ट रिमूवर्स के पेषे में होने के कारण, एचआईवी-संक्रमित होनेमात्र से एवं इसे नियन्त्रण में रखने के लिये सेवन कराये गये एण्टिवायरल ड्रग्स से; सायनोसिस में लालरक्त कोशिकाओ में आक्सीजन की कमी अथवा अभाव होने से नाख़ूनों व होंठों में नीला-बैंगनी रंग नज़र आ सकता है।
ठण्डे माहौल में रहने अथवा असामान्य रूप से अधिक हीमोग्लोबिन होने से भी सायनोसिस हो सकता है। अस्थमा आदि स्थितियों से भी सायनोसिस हो सकता है जब शरीर में लालरक्त कोशिकाओ के आक्सिजिनेशन में बाधा पड़ती है। सायनोसिस अन्य चिकित्सात्मक स्थितियों का संकेत भी हो सकता है।
10. ग्रीन नैल सिण्ड्रोम- यह कई कारणों से सम्भव, जैसे कि जीवाण्विक संक्रमण से। प्स्यूडोमोनास जीवाणु कार्यस्थल से अथवा स्विमिंग पूल अथवा नदी-तालाब में नहाने से प्रवेष कर सकता है। रसायनों के निर्माण अथवा प्रयोग वाले कारखानों में कार्यरत् मजदूरों में भी ग्रीन नैल सिण्ड्रोम हो सकता है, दस्ताने इत्यादि सुरक्षात्मक साधनों द्वारा कुछ राहत सम्भव।
11. यल्लो नैल सिण्ड्राम- इसमें नाख़ून मोटे हो जाते हैं एवं सामान्य जितनी तीव्रता से नहीं बढ़ते। कभी-कभी नाख़ूनों में क्यूटिकल नहीं रहती एवं ये नैलबेड से दूर हो सकते हैं। यह स्थिति इन विकृतियों के कारण आ सकती हैः आन्तरिक मेलिग्नेन्सीज़; लिम्फ़ेडेमाः हाथों की सूजन; प्ल्युरल इफ़्यूषन्सः फेफड़ों व चेस्ट-केविटी के बीच तरल-जमाव; क्रानिक ब्रोंकाइटिस अथवा साइनुसाइटिस जैसी श्वसनात्मक बीमारियाँ; र्ह्युमेटायड आथ्र्राइटिस।
नाख़ूनों की देखरेख
*. नाख़ूनों को न चबायें, न ही उनसे कोई वस्तु कुरेदें।
*. अपने आप समय-समय पर नाख़ूनों को काटते रहें। हो सके तो कुछ देर पहले हाथों को ठीक से धोने के बाद नाख़ून काटें ताकि कुछ कोमल हो चुके नाख़ून सरलता से व ठीक से कट सकें। बाद में भी हाथ अवश्य धोयें।
*. नेलपालिश इत्यादि रसायन नाख़ूनों पर न लगायें।
नाख़ूनों को साफ़ बनाये रखने वाले उपचार
नाख़ूनों का कुरूप दिखना कोई समस्या नहीं है इसलिये इसके उपचार की बात ही नहीं आती परन्तु ये किसी रोग के लक्षण यदि हैं तो उस रोग का उपचार आवश्यक होगा, आवश्यकतानुसार रक्तादि जाँचें कराते हुए सम्बन्धित रोग विशेषज्ञों से मिलें.
* भंगुर अथवा भुरभुरे नाख़ून यदि हायपोथायराइडिज़्म के कारण हैं तो चिकित्सक से मिलकर इस हार्मोनल समस्या का उपचार करायें तथा यदि नाख़ूनों की यह स्थिति लौह-अल्पता के कारण है तो लौहसमृद्ध पदार्थों का सेवन बढ़ायें, जैसे कि भाजियाँ व फल। भंगुर नाख़ून आसानी से चिटकने-टूटने लगते हैं; सम्बन्धित रोग के अनुसार थकान, वजन घटना व दुष्चिंता(एन्ज़ायटी) सम्भव।
* नाज़ुक अथवा कमज़ोर नाख़ूनों के कारण में यदि नमी की अधिकता अथवा रसायनों का सम्पर्क हो तो थकान व कमज़ोरी अनुभव हो सकती है, सम्बन्धित विशेषज्ञ से सम्पर्क साधें।
* पीले नाख़ून यदि थायरायड स्थितियों, प्सोरायसिस अथवा मधुमेह से हों तो थकान, दुष्चिंता, सूजी त्वचा, अत्यधिक प्यास सम्भव; स्थिति-अनुसार चिकित्सक अथवा त्वचा रोग विशेषज्ञ से मिलें।
* काली रेखाएँ यदि प्सोरायसिस, एण्डोकार्डाइटिस अथवा नैल-मेलानोमा के कारण हों तो त्वचा में सूजन, हृदय की असामान्य धड़कन, रात को अत्यधिक पसीना, नाख़ूनों से रक्तस्राव सम्भव; परिस्थिति-अनुसार त्वचारोग हृदयरोग विशेषज्ञ अथवा कैन्सर-विशेषज्ञ से मिलें।
* यदि जस्ते(ज़िंक) की कमी से नाख़ून भुरभुरे हुए हों अथवा ओनिकोर्हेक्सिस अथवा बिएऔ’ज़ लाइन्स पड़ीं हों तो जस्तासमृद्ध गेहूँ के जवारे, जई(ओट) व साबुत अनाजों का सेवन बढ़ायें।
* यदि लौह-अल्पताजनित एनीमिया के कारण खड़े कटक(रिजेज़) हों अथवा वृक्करोग के कारण यदि तिरछे कटक पड़े हुए हों तो दुष्चिंता, भार में कमी, पैरों में सूजन, अत्यधिक मूत्रोत्सर्ग सम्भव। सम्बन्धित रोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करें। बीसों अँगुलियों-अँगूठों में तिरछे कटक होना मम्प्स, थायराइड रोग अथवा मधुमेह का चिह्न भी हो सकता है।
* नाख़ूनों की नज़ाकत यदि बायोटिन कमी से आ रही हो तो हो सकता है कि त्वचा व कोलेस्टॅराल सहित शर्करा के स्तरों में भी बदलाव हो। सम्बन्धित जाँचें करवाने के साथ बायोटिन-समृद्ध आहार सेवन करें, जैसे कि मूँगफली व सूर्यमुखी-बीज; बायोटिन शरीर में किरैटिन नामक एक प्रोटीन का निर्माण कराता है जिससे मजबूत बालों व नाख़ूनों को बढ़ावा मिलता है। चूँकि बायोटिन एक जल-विलयशील (पानी में घुलनशील विटामिन है इसलिये यह शरीर में अधिक समय तक संचित नहीं रह पाता।
* नाख़ूनों में अर्द्धचँद्र न दिखने का कारण यदि एनीमिया, कुपोषण अथवा अवसाद हो तो सम्बन्धित स्थितियों के उपचार करायें; लक्षणस्वरूप थकान, भार घटना, सिर चकराना, असामान्य भूख उठना, दृष्टि ठीक न रहना सम्भव।
* नाख़ून छिलने जैसी स्थिति यदि लौहअल्पता के कारण आयी हो तो थकान, शरीर में पीलापन अथवा हृदय की धड़कने असामान्य होने जैसे लक्षण सम्भव; मूल रोग का उपचार करायें।
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