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घुटने के दर्द के कारण व उपचार Knee Pain Causes Treatments Tests In Hindi
Knee Pain Causes Treatments Tests In Hindi
घुटने में दर्द एक पेशीय-कंकाली दर्द है जो विश्व के कई नागरिक अनुभव करते हैं। यहाँ इस आलेख में घुटने के दर्द के लक्षणों, जाँचों, कारणों, घरेलु उपचार, चिकित्सात्मक उपचार सहित सावधानियों का उल्लेख किया जा रहा है।
Knee Pain Causes Treatments Tests In Hindi


घुटने के दर्द के लक्षण –
1. घुटने में दर्द
2. सूजन
3. कठोरता
चिकित्सात्मक आवष्यकता कब ? दर्द यदि असहनीय हो अथवा घुटने के विश्राम से भी जिसमें आराम न मिले अथवा घुटने के दर्द से नींद खुल जाती हो अथवा घुटने से कुछ रिस रहा हो अथवा घाव बड़ा हो अथवा छेदयुक्त घाव लगे अथवा आप यदि खून पतला करने वाला ब्लड-थिनर (जैसे कि वारफ़ॅरिन अथवा काउमेडिन) ले रहे हों.
आपको कोई हीमोफ़ीलिया जैसा रक्तस्रावी विकार हो अथवा आयु अथवा अन्य कारण से धमनियों में ख़राबी के कारण घुटनों में दर्द रहने लगा हो तो तुरंत आर्थोपेइडिक विशेषज्ञ से मिलें जो पेषीय-कंकाल तन्त्र का विशेषज्ञ होता है|
अन्यथा गम्भीर हानियाँ उठानी पड़ सकती हैं, जैसे कि पैर की धमनियों में ख़राबी को यदि दूर न किया गया तो इन अनुपचारित धमनी-चोटों से पैर के निचले हिस्से में रक्त-आपूर्ति व्यवधानित हो सकती है.
यदि स्थिति इतनी बिगड़ने के बावजूद समुचित चिकित्सात्मक उपचार शीघ्र न कराया तो अंग-विच्छेद (उस भाग को काटकर निकालना) करना अनिवार्य हो सकता है, तन्त्रिकात्मक चोट के प्रकरण में आशंका है कि घुटने से नीचे का पैर का भाग जीवित तो रहे परन्तु उसमें संवेदना न रही हो अथवा ज़ोर न बचा हो।
घुटने के दर्द की जाँच –
सर्वप्रथम विस्तृत अतीत-अवलोकन (जैसे साथ में बुखार रहता अथवा आता-जाता रहता अथवा पैर के निचले भाग में सुन्नता आयी,समस्या एक घुटने में अथवा दोनों में है इत्यादि) एवं शारीरिक परीक्षण किया जाता है, फिर सम्भावनानुसार एक्स-रेज़, सीटी-स्कैन अथवा अन्य जाँचें सुझायी जा सकती हैंः-
1. एक्सरे में अस्थिभंग, आथ्र्राइटिस, हड्डियों का खिसकना अथवा असामान्य बड़े अथवा छोटे जायण्ट स्पेसेज़ को देखा जाना सम्भव है।
2. आवश्यका पड़ी तो सिटी – स्कैन कराया जाता है जो कि त्रिविमीय (three dimensional) एक्स-रे जैसा है जिसमें अस्थिभंग अथवा रूप-असामान्यता (डिफ़ार्मिटी) को ब़ारीक़ी से परखा जा सकता है।
3. एमआरआई – अस्थिभंग के मामले में एक्स-रेज़ व सीटी-स्कैन उत्कृष्ट रहते हैं परन्तु घुटने की कोमल ऊतक-संरचनाओं (जैसे कि लिगामेण्ट्स, टेण्डन्स एवं मेनिस्की) को परखने में संतोषप्रद नहीं होतीं.
अतः मैग्नेटिक रेज़ोनेन्स इमेजिंग के द्वारा बड़े चुम्बकों का प्रयोग करते हुए घुटने की त्रिविमीय इमेज तैयार की जाती है। इसमें अस्थियों व अस्थिभंग की इमेजेज़ नहीं आतीं किन्तु लिगामेण्ट्स व टेण्डन्स को परखने में यह अतिउपयोगी जाँच है।
4. तरल-निकासी – संक्रमण अथवा क्रिस्टेलाइन आथ्र्राइटिस (जैसे कि गाउट) की आशंका होने पर घुटने में सुई चुभोकर थोड़ा तरल निकालकर जाँच कराने की आवश्यकतानुसार अनुभव हो सकती है।
फिर उसे सूक्ष्मदर्शी में देखा जाता है कि कहीं क्रिस्टल अथवा कोई हानिप्रद जीवाणु इत्यादि तो नहीं। साथ ही साथ कुछ रक्त-जाँचें भी साथ करवायी जा सकती हैं ताकि मधुमेह, ल्युपस, र्ह्यूमेटाइड आथ्र्राटिस जैसे रोगों की जाँच हो सके।
5. आथ्र्रोस्कापी – यह जाँच शल्यक(सर्जिकल) प्रकार की है जिसमें घुटने की संधि के भीतर एक फ़ाइबर आप्टिक टेलिस्काप रख दिया जाता है।
कैमरा से आथ्र्रोस्काप जोड़ा गया होता है ताकि वीडियो-मानिटर पर रियल-टाइम इमेजेज़ दिखें। इस प्रकार घुटने में छोटे कणों को अथवा क्षतिग्रस्त मेनिस्की अथवा उपास्थि को पास से देखा जा सकता है। वीडियो-मानिटर पर देखते हुए घुटने के भीतर वहाँ से कणों को हटाया जा सकता है अथवा फटी व टूटी उपास्थि को ठीक करते हुए क्षति का उपचार करने का प्रयास किया जा सकता है।
घुटने के दर्द के कारण –
1. आकस्मिक चोट, फिर चाहे अस्थिभंग (फ्रेक्टर) हुआ हो अथवा नहीं
2. चोट लगने के बाद घुटने का अतिप्रयोग
3. संक्रमण
4. अन्य किसी कारण(जैसे कि आथ्र्राइटिस) के प्रभावस्वरूप अथवा गोनोरिया नामक यौनसंचारी रोग भी घुटने पर प्रभाव डाल सकता है, इसका सूक्ष्मजीव सामान्य त्वचा में भी गुप्त रूप से रह लेता है जिसमें घुटने के दर्द के साथ बुखार व ठण्ड लगने जैसे लक्षण साथ हो सकते हैं. कम गम्भीर संक्रमणों में बुखार आना आवश्यक भी नहीं.
गोनोरिया में पुष्टि के लिये अलग से जाँच करानी आवश्यक है. उपचार में अत्यधिक सघन प्रतिजैविक (एण्टिबायोटिक) चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है. हो सकता है कि संधियों (जोड़ों) से शल्यक निकासी करनी पड़े जिसमें संधि से यान्त्रिक चूषण करके संक्रमित तरल का स्तर घटाने का प्रयास किया जाता है।
घुटने के दर्द का घरेलु उपचार –
1. घुटनों का विश्राम ताकि स्थिति और बिगड़ने से रोकी जा सके एवं घुटने को टूट-फूट-मरम्मत का अवसर मिल सके.
2. बर्फ़ लगाने से सूजन घट सकती है, जमे पानी अथवा ठण्डे पानी से भीगी रुई को अथवा इनके पैकेट को दिन में दो-तीन बार लगाया जा सकता हैः हर बार लगभग 15-25 मिनट्स के लिये.
3. कम्प्रेशन में घुटने के चारों ओर एक मोटा कपड़ा अथवा गद्देदार पट्टा लपेटा व संतुलित रूप से कसा जाता है जो सूजन घटाने में सहायक है।
4. इलेवेशन सूजन कम करने में उपयोगी हो सकता है, पूरे पैर को ऊपर उठाकर बाँधे, रोके अथवा रखे रहने से अधिक तरल घुटनों में एकत्र नहीं हो पाता है क्योंकि वापस केन्द्रीय परिसंचरण में लौट जाता है.
बैठे व लेटे हुए पूरे पैर को इस प्रकार ऊँचा रखें कि घुटना यथासम्भव शेष शरीर से अधिक ऊँचाई पर हो अथवा कम से कम इतना हो कि पहले से कम निचली स्थिति में हो; इलेवेषन तब अधिक बेहतर कार्य करता है जब घुटना अथवा अन्य चोटिल अंग हृदय के स्तर से ऊँचाई पर थामा गया हो.
घुटने के दर्द का चिकित्सात्मक उपचार कैसे ?
स्वयं अधिक उपचारादि में न पड़कर आर्थोपेइडिक Expert से मिलें जो दर्द के असल कारण को पशियों अथवा अस्थियों में खोज निकाले। अस्थिभंग (Fracture) होने की स्थिति में विशिष्ट स्थिति में शरीर को थामे रखने अथवा शल्यक्रिया की जरूरत पड़ सकती है. संक्रमण में भी तत्काल उपचार की जरूरत होती है ताकि स्थिति नियन्त्रणीय स्थिति में लाने में सहायता हो।
घुटने के दर्द से जुडी सावधानियाँ –
1. शरीर का वजन कम रखें, शरीर के ऊपरी हिस्से का भाग घुटने से होकर ही पैरों के निचले भाग पर पड़ता है। इस प्रकार कम वजन में आस्टियोआथ्र्राइटिस की आशंका भी कम होने का अनुमान है। रस्सी कूदने, दौड़ लगाने व सायकल चलाने जैसे नैसर्गिक तरीकों से शारीरिक सक्रियता बढ़ायें।
2. योगाभ्यास – सेतुबंधासन, सुप्त पादांगुष्ठासन जैसे ऐसे आसन अपनाये जा सकते हैं जिनमें घुटनों व पैरों को मोड़ना, घुमाना अथवा खींचना पड़ता हो, सूर्य-नमस्कार जैसे योग भी अतिउपयोगी रहेंगे।
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