आँखों की रोशनी बढ़ाने के 9 उपाय How To Improve Eyesight In Hindi
नेत्र ज्योति बढ़ाने के 9 उपाय How To Improve Eyesight In Hindi
हममें से आजकल कई लोग उम्र के किसी-न-किसी पड़ाव में थोड़ी अथवा अधिक मात्रा व तीव्रता में नेत्रदृष्टि सम्बन्धी कुछ समस्याओं को भुगत चुके होते या भुगत रहे होते हैं, जैसे कि दृष्टि धुँधलाना, दृष्य हिलते हुए दिखना, दूर या पास का देखने में असहजता, नेत्रों में जलन इत्यादि.
सभी स्थितियों में नेत्र शल्य चिकित्सक से जाँच करानी आवश्यक हैं परन्तु ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न होने से पहले यदि कुछ सावधानियाँ बरती जायें तो अवांछनीय स्थितियों से कुछ सीमा तक बचा अवश्य जा सकता है.

How To Improve Eyesight In Hindi
1. आँखों की जाँच कराये –
नियमित नेत्र-जाँचें करवाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक नेत्र हर प्रकार की चोट अथवा बीमारी से दूर रहे क्योंकि ऐसी अनेक विकृतियाँ हैं जो नेत्रों में विकसित होती रहती हैं परन्तु समय रहते व्यक्ति को पता नहीं पड़ पातीं क्योंकि व्यक्ति ‘मैं तो ठीक हूँ’ का पूर्वाग्रह बनाये रखता है। चश्मा अथवा दवाइओं के डर से जाँच से न भागें, हो सकता है कि अभी कड़वा घूँट पीकर भविष्य के अंधकार से बचा जा सकता हो।
एप्लेनेशन टोनामेट्री (कार्निया पर लगने वाला दबाव मापना), कार्नियल टोपोग्रॅफ़ी (कार्निया के कर्व को मापना), फ़्लुओरेसीन एंजियाग्रॅम (रेटिना में रक्त के गमन को समझना), डायलेटेड प्युपिलरी परीक्षण (प्यूपिल के फैलने की जाँच के लिये), रिफ्ऱेशन (आईग्लास प्रिस्क्रिप्शन के लिये), स्लिट-लैम्प परीक्षण (कैटेरेक्ट, ग्लुकोमा इत्यादि को परखने के लिये नेत्र के भीतर किरण-पुँज प्रवेश कराना) इत्यादि जाँचें नेत्रचिकित्सक से पूछकर करायें।
2. विटामिन वाला भोजन करे –
नैसर्गिक पदार्थों में Vitamin A (हरी भाजियाँ), सी (नींबू-संतरे) व Vitamin E (सूर्यमुखी बीज, मूँगफली) सहित जस्ता (मशरूम, फलियों) का सेवन करें, भाजी-तरकारियों में ऐसे कई Antioxidants होते हैं जो मैक्युलर डिजनरेशन से बचाते हैं, इस रोगकर स्थिति को एज-रिलेटेड मॅक्युलर डिजनरेशन भी कहा जाता है जिससे हो सकता है कि दृष्टि धुँधलाने लगे अथवा दृष्य के केन्द्र में कुछ दिखायी ही न पड़े।
तुरई इत्यादि हरी तरकारी-भाजियों के कॅराटिनाइड्स के रूप में ल्युटॅईन व ज़िएग्ज़ॅन्थिन रेटिना में पाये जाने वाले कॅरोटिनायड्स हैं। भाँति-भाँति की रंगीन सब्जियाँ व फल खायें, जैसे – गाजर, पालक, शकरकंद, खट्टे फल, ओमेगा-3 वसीय अम्लों वाले खाद्य, जैसे कि अलसी इत्यादि।
3. शारीरिक सक्रियता बढ़ायें –
चलने-दौड़ने व रस्सी कूदने सहित साईकल चलाते हुए नैसर्गिक रूप से शारीरिक सक्रियता बढ़ायें जिससे अन्य विकृतियों से दूर रहने सहित नेत्र-स्वास्थ्य बनाये रखने में भी सहायता होती है। विशेषत: टाइप 2 डायबिटीज़ मोटे व भारी लोगों में अधिक पायी जाती है जिनमें नेत्रों की पतली रक्त-वाहिकाओं में क्षति पहुँच सकती है। इस स्थिति को डायबेटिक रेटिनोपॅथी कहते हैं।
रक्तधारा में अधिक शर्करा आ जाने से धमनियों की नाज़ुक भित्तियों को चोट लग सकती है। डायबेटिक रेटिनोपेथी में रेटिना में अतिसूक्ष्म धमनियों (जो नेत्र के पीछे का प्रकाश-संवेदी क्षेत्र है) से रक्तस्राव हो सकता है एवं यह तरल बहकर नेत्र में आ सकता है जिससे दृष्टि ख़राब हो सकती है। मधुमेह के प्रकरण में रुधिर-शर्करा के स्तर की नियमित जाँचें भी करानी आवश्यक हैं।
4. ब्लड प्रेशर पर ध्यान दे –
उच्चरक्तचाप व मल्टिपल स्क्लेरोसिस इत्यादि चिकित्सात्मक स्थितियों से भी नेत्र-ज्योति प्रभावित हो सकती है। इन स्थितियों में लम्बे समय तक सूजन रह सकती है जिससे सिर से लेकर पैर तक पूरा शरीर प्रभावित होता है। उदाहरण के लिये यदि आप्टिक नर्व में सूजन आ जाये तो नेत्र ज्योति पूर्णत: खो भी सकती है।
5. प्रदूषण से बचे –
धातुओं की वेल्डिंग, धूल अथवा प्रदूषण भरी सड़क पर दुपहिया वाहन यात्रा अथवा नेत्र में चोट लग सकने वाले प्रकरणों में प्रोटेक्टिव आईवियर पहनना आवश्यक है.
वैसे हेलमेट में यदि आगे की ओर काँच लगा हो तो वाहन-चालन के दौरान नेत्रों को भी बचाने में वही पर्याप्त होगा किन्तु अनेक प्रोटेक्टिव गोगल्स को एक प्रकार के पालिकार्बोनेट से बनाया जाता है जो कि प्लास्टिक के अन्य रूपों से 10 गुना कठोर होता है।
तेजधूप के प्रति यदि नेत्रों में चुभन होती हो तो सनग्लासेज़ लगाये जाते हैं। सन्ग्लासेज़ (Sun Glasses) द्वारा कॅटेरैक्ट, मॅक्युलर डिजनरेशन एवं प्टेरिगियम (नेत्र के सफेद भाग पर ऊतक की वृद्धि) जैसी समस्याओं से कुछ बचाव सम्भव हो सकता है। संवेदनशील नेत्रों वाले लोगों द्वारा चैड़े फैलाव वाली घनी टोपी पहनने से भी धूप की हानि से नेत्रों को काफ़ी सीमा तक बचाया जा सकता है।
6. नेत्रों को मसलें नहीं –
धूल इत्यादि यदि नेत्र में चली आयी हो तो नेत्रों को खुजलाने अथवा कुरेदने जैसा न करें, सामान्य साफ़ पानी से धोयें, लेन्स इत्यादि लगाते समय भी ये सब सावधानियाँ बरतनी हैं तथा समस्या आने पर नेत्ररोगविषेषज्ञ से मिलें, मन से कोई आई ड्राप डालने से बचें, अन्यथा यदि समस्या बढ़ी तो उसके लिये मुख्य रूप से आप ज़िम्मेदार होंगे।
7. कंप्यूटर की लिमिट कर दे –
Computer पर कार्य करते समय 15-20 मिनट्स के अन्तरालों पर उठें, चले-फिरें, हरियाली व आकाश की ओर देखें, कभी-कभी आवश्यकतानुसार सामान्य शीतल जल से नेत्रों को धोयें। अन्य इलेक्ट्रानिक गजेट्स भी यथासम्भव न्यूनतम प्रयोग करें। कम्प्यूटर पर कार्य करते समय स्क्रीन पर बल्ब का प्रकाश सीधा न पड़ रहा हो जैसी बातें भी ध्यान रखें।
8. धूम्रपान व मद्यपान छोड़ें –
हृदय, बाल, त्वचा, दाँत व फेफड़ों सहित नेत्रों के भी लिये धूम्रपान हानिप्रद सिद्ध होता है। धूम्रपान नहीं छोड़ा तो मोतियाबिन्द व आयु सम्बन्धी मॅक्युलर डिजनरेशन की आशंका बनी रहेगी। धूम्रपानरहित तम्बाकूसेवन अथवा तम्बाकूरहित धूम्रपान दोनों ही स्थितियां भी नेत्र स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होती हैं। मद्यपान से सीधे तौर पर नेत्रदृष्टि में यदि कोई प्रभाव न भी दिख रहा हो तो भी धीरे-धीरे इससे दिखना कम होने के लक्षण देखे गये हैं।
9. पारिवारिक आनुवंशिक अतीत खँगालें –
काला मोतिया – ग्लूकोमा, रेटिनल डिजनरेशन, आयु सम्बन्धी मॅक्युलर डिजनरेशन, आप्टिकल एट्राफ़ी जैसी स्थितियाँ वंशानुगत हो सकती हैं, अतः घर-कुटुम्ब की मेडिकल रिपोट्र्स भी सँभालकर रखें।
अन्य सावधानियाँ भी आवश्यक हैं। लेन्स व हाथों की स्वच्छता भी नेत्रस्वास्थ्य के लिये आवश्यक है, काण्टैक्ट लेन्सेज़ (Contact Lenses) को निर्धारित पदार्थों से विसंक्रमित करते रहें एवं हाथों को भी नियमित रूप से धोयें.
अन्यथा धूल व विभिन्न संक्रमणों से नेत्रों के ग्रसित होने की आशंका बनी रह सकती है। काण्टैक्ट लेन्स निर्माता अथवा चिकित्सक के कहे अनुसार समय-समय पर अपने-आप बदलते रहना आवश्यक है.
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तो ये थी हमारी पोस्ट – आँखों की रोशनी बढ़ाने के उपाय,How To Improve Eyesight In Hindi, aankho ki roshni kaise badhaye . आशा करते हैं की आपको पोस्ट पसंद आई होगी और Aankho Ki Roshani ka upchar की पूरी जानकारी आपको मिल गयी होगी. Thanks For Giving Your Valueable Time.
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