दाँतों में पीलापन के कारण व निवारण How to Get Rid of Yellow Teeth In Hindi
दाँतों में पीलापन क्या है
दाँतों में पीलेपन (Yellow Teeth) को अवांछनीय या विकृति जैसा समझा जाता है परन्तु आज हम इसके होने का विश्लेषण करेंगे कि वास्तव में है क्या एवं क्या ऐसा होना सच में अवांछनीय है ? वैसे दाँतों का रंग बदलना अथवा सफेद के बजाय अन्य रंग के दाँत होने को समग्रता में दाँतों का पीलापन कह दिया जाता है।
दाँत यदि सफ़ेद अथवा दमकने-जैसे न दिख रहे हों तो भी उन्हें पीला घोषित कर दिया जाता है। दाँतों का रंग सफेद से बदलकर चाहे जो हो लोग उसे पीलापन की संज्ञा दे डालते हैं।
हम सबको यह गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि इनेमल दाँतों की वह बाहरी कठोर सुरक्षात्मक पर्त है जो कुछ पीलापन लिये रहती है, इसे ख़राब अथवा अवांछनीय न समझें। यह पर्त दाँतों के आन्तरिक व अधिक नाज़ुक भागों डेण्टिन व पल्प को सुरक्षित रखती है।
इनेमल दांतों को टूटने से बचाने वाला बाहर से प्रथम व सबसे महत्त्वपूर्ण आवरण है। यदि इनेमल क्षतिग्रस्त हुआ तो केविटीज़, सड़न, ताप-ठण्ड के प्रति संवेदनशीलता एवं दंत-संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
नीचे इससे जुडी जानकारी शेयर की जा रही है किन्तु यदि फिर भी पीलापन किसी रोग का लक्षण अथवा वास्तव में किसी समस्या का चिह्न हो तो दंतचिकित्सक से मिलें एवं सर्वप्रथम दाँतों की मेडिकल सफाई करवायें।
उसके बाद रोग को निर्मूल करें, अन्यथा दाँतों का पीला दिखना मात्र कोई समस्या नहीं है, अतः चिकित्सक के कहने पर भी कोई सफेदी वर्द्धक कृत्रिम उपचार न करायें।
How to Get Rid of Yellow Teeth In Hindi

दाँतों में पीलेपन के कारण एवं निवारण
दाँतों का रंग सफेद के स्थान पर अन्य होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे –
बाहरी कारण – दाँतों के सम्पर्क में बाहर से कुछ आने पर, उदाहरणार्थ –
1. खाद्य-पेय – चाय-काफ़ी, कोलाज़, मदिरा, सुपारी एवं सेब-आलू इत्यादि कुछ फल-सब्जियाँ तथा तम्बाकू-प्रयोग (चबाना व धूम्रपान सहित)। बचाव हेतु सेब-आलू का सेवन कुछ कम करें एवं भोजनो उपरान्त एक घूँट पानी अवश्य पियें एवं कुल्ले-गरारे इत्यादि द्वारा मुख नित्य साफ रखें तथा सुपारी आदि अन्य सभी से पूर्णत परहेज करें।
2. डेण्टल सामग्रियाँ – डेण्टिस्ट्री में प्रयुक्त कुछ पदार्थों, जैसे कि एमाल्गम रेस्तारेशनस (विशेषतया सिल्वर सल्फ़ाइड-युक्त सामग्रियों) से दाँत धूसर-काले पड़ सकते हैं।
3. औषधियाँ – डाक्सिसायक्लीन इत्यादि टेट्रासायक्लीन प्रतिजैविकों से उन बच्चों में दाँतों का रंग फीका पड़ सकता है जिनमें दाँत अभी विकसित हो रहे हैं अर्थात् 8 वर्ष तक। उच्चरक्तचाप (High Blood Pressure) में दी जाने वाली कुछ दवाइयों सहित एण्टिप्सायकाटिक ड्रग्स के अतिरिक्त बेनाड्रिल जैसी एण्टिहिस्टेमाइन्स से बड़ों के भी दाँतों का रंग सफ़ेद हो सकता है। अतः मनमाना औषधीय सेवन न करें एवं चिकित्सक के लिखने पर ही सेवन करें, वह भी निर्धारित मात्रा व अवधि तक।
4. माउथ रिन्सेज़ एवं वाशेज – क्लोर्हेक्सिडीन व सॅटाइलपिरिडिनियम क्लोराइड युक्त माउथ रिन्सेज़ व वाशेज़ से दाँतों पर धब्बे पड़ सकते हैं।
5. परिवेश – पेयजल में अत्यधिक फ़्लुओराइड होने अथवा फ़्लुओराइडयुक्त मंजनों अथवा अन्य पदार्थों का प्रयोग करने से दाँतों का रंग अलग हो सकता है। पेयजल की जाँच करायें।
6. अभिघात (ट्रामा) – वाहनयात्रा के समय अथवा घर में चलते-फिरते कहीं गिर पड़ने के कारण दाँतों को पहुँची चोट से उन बच्चों का इनेमल-निर्माण विघ्नित हो सकता है जो छोटे हों। इसी प्रकार बड़ों के दाँत भी अभिघात से रंग बदल सकते हैं। वाहन-यात्रा के समय Helmet एवं चैपहिया में Seat Belt प्रयोग करें-करायें।
7. दाँतों की अस्वच्छता – ठीक से मंजन न करने सहित मौखिक साफ-सफाई में लापरवाही बरतने से प्लेक (दाँतों में जमा होने वाला एक चिपचिपा पदार्थ जो जीवाणुओं के पनपने का केन्द्र बन सकता है) एकत्र हो सकता है एवं रंग बनाने वाले अन्य पदार्थ भी जमे रह सकते हैं।
8. दाँतों को रगड़ना – कई व्यक्तियों को अब भी ऐसा लगता है कि दाँतों को रगड़-रगड़कर ब्रश करने से ही वे साफ हो सकते हैं अथवा जितना रगड़ेंगे वे उतने चमकेंगे जबकि वास्तविकता यह है कि रगड़न से दाँतों को लाभ से अधिक हानियाँ हो सकती हैं क्योंकि इनेमल नामक पीली-सी पर्त दाँतों को कई सूक्ष्मजीवों व अन्य हानिप्रद पदार्थों से बचाये रखती है जिसे आप जितना रगड़ेंगे दंत स्वास्थ्य को उतना जोख़िम ग्रस्त करेंगे।
अंदरूनी कारण – दाँतों से आन्तरिक रूप से सम्बन्धित अथवा शरीर के भीतर से उत्पन्न कोई कारण, उदाहरणार्थ –
1. आयुसम्बन्धी – आयु के किसी पड़ाव पर पहुँचने के बाद दाँतों के रंग में परिवर्तन सम्भव है क्योंकि दाँतों की बाहरी इनेमल पर्त आयु के साथ घटती व टूटती जाती है जिससे दाँतों का नैसर्गिक रंग सामने आने लगता है जिसमें ज़रा पीलापन रहता है।
2. आनुवंशिकी – कुछ लोगों में नैसर्गिक रूप से मोटा इनेमल होता है जिससे इसके कारण दाँत पीले लग सकते हैं।
3. रोग – दाँतों की कठोर सतह इनेमल को एवं इनेमल के आन्तरिक ओर डेण्टिन को कई रोग प्रभावित कर सकते हैं। इस प्रकार दाँतों का रंग सफेद के बजाय कुछ और लग सकता है। सिर व गर्दन से सम्बन्धित विकिरण-उपचार एवं कीमोथिरेपी से दाँतों का रंग ग़ैर-सफेद हो सकता है। गर्भवतियों में कई संक्रमणों से भी दाँत बदरंग लग सकते हैं तथा गर्भस्थ के भविष्य में उगने वाले दाँतों का इनेमल-निर्माण व रंग भी प्रभावित हो सकता है।
दांतों के रंग के अनुसार सम्भावित कारण
*. पीलापन – उम्र बढ़ने के साथ दाँत की सफेद इनेमल सतह क्षत-विक्षत हो सकती है जिससे दाँतों का केन्द्रीय पीला भाग अधिक दृष्यमान हो सकता है।
*. भूरा – तम्बाकू, चाय-काफ़ी व दाँत साफ़ न रखने से अथवा ब्रश रगड़-रगड़कर दाँत घिसने से होने वाले दंतक्षरण (Tooth – Decay) से दाँत भूरे हो सकते हैं। तम्बाकू सर्वथा त्यागें, चाय-काफ़ी का सेवन घटायें एवं कुछ मिनट्स बाद कुल्ले द्वारा मुख धोलें।
*. सफेद – बच्चे के दाँत विकसित होने के दौरान अत्यधिक फ़्लुओराइड से दाँतों में सफेद धब्बे आ सकते हैं जिसे फ़्लुओरोसिस कहते हैं। ऐसा तब भी हो सकता है जब पेय जल अथवा अन्य किसी मौखिक उत्पाद में फ़्लुओराइड की अत्यधिक मात्रा सेवन की जा रही हो।
*. काले – दंतक्षय अथवा टूथ पल्प नेक्रोसिस से दाँत धूसर अथवा काले पड़ सकते हैं। सुपारी चबाने से दाँतों में कालापन आ सकता है। लौह, मैंग्नीज़ अथवा औद्योगिक स्थानों में चाँदी अथवा मन से सप्लिमेण्ट्स के नाम पर ली जा रही सामग्रियों से भी दाँतों में काली रेखाएँ बन सकती हैं।
*. बैंगनी – मदिरा (Sharab) से दाँतों का रंग बैंगनी जैसा हो सकता है। मद्यपान बन्द करें।
दाँतों का पीलापन कम रखने के अन्य उपाय
*. विटामिन सी – विटामिन-सी की कमी से पेरिडाण्टाइटिस की समस्या बढ़ सकती है जिससे दाँतों व मसूढ़ों पर जीवाणुओं को बढ़ने में सहायता मिलती है एवं रंग अजीब आ सकता है, नींबू-वर्गीय फलों व अन्य विटामिन – सी समृद्ध खाद्य-पदार्थों का सेवन बढ़ायें।
*. फ्ऱूट एन्ज़ाइम्स – पपीते के पपैन एन्ज़ाइम एवं अनन्नास (पाइनएप्पल) के ब्रोमेलैन एन्ज़ाइम से दाँतों के दाग-धब्बे कम करने में सहायता मिल सकती है, इन एन्ज़ाइम्स से युक्त टूथपेस्ट भी प्रयोग किये जा सकते हैं। इन फलों का सेवन भी बढ़ा सकते हैं।
*. खोपरा व नारियल – उत्पादों का सेवन – चबाने में खोपरा एवं नारियल के तेल नारियल के तैलका प्रयोग किया जाये तो दाँतों पर प्लेक जमने की गति को धीमा किया जा सकता है।
*. हल्दी व नमक से मंजन – हल्दी व नमक (हो सके तो सैंधा नमक) के कुछ ग्रेम्स मिश्रण से दंतमंजन करें तो अँगुलियों के माध्यम से भी मंजन किया जा सकता है एवं आधुनिक काल में प्रचलित मंजन के बजाय इस प्रकार मंजन करना सभी रूपों में अधिक उपयुक्त होगा।
*. सलाद व कुछ कठोर सामग्रियों का सेवन – गाजर-मूली, गन्ने, चुकन्दर जैसी कुछ कठोर (न कि सुपारी) सामग्रियों को चबाकर खाने से दाढ़-दाँत व मसूढ़ों की मालिश हो जाती है एवं नैसर्गिक रूप से उनकी सफाई भी हो जाती है।
*. फलों की छीलन – कुछ का ऐसा कहना है कि संतरा, नींबू व केले के छिलके को दाँतों में हल्के साथ से रगड़ने से पीलेपन व दाग-धब्बों में कुछ कमी आ सकती है। इन फलों का सेवन भी बढ़ाया जा सकता है।
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