सिरदर्द के प्रकार एवं उपचार Headache Types Symptoms Treatment In Hindi
Headache Types Symptoms Treatment In Hindi
सिरदर्द (Headache) में मुण्ड अथवा सिर के किसी भाग में कुछ धधकने भड़कने, दबने, तनने, चिटकने तिड़कने जैसी अनुभूति हो सकती है जो लगातार अथवा रुक-रुककर हो सकती है। यदि माइग्रैन (Migraine) वाला सिरदर्द हुआ तो मितली व उल्टी की सम्भावना बढ़ जाती है।
माइग्रैन सम्पूर्ण विश्लेषण अवश्य पढ़ें। यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि पीड़ा की उत्पत्ति करोटि (खोपड़ी) अथवा मस्तिष्क को घेरे रखने वाले ऊतकों व संरचनाओं से हुई होती है क्योंकि मस्तिष्क में स्वयं ऐसी कोई तन्त्रिका ही नहीं होती जो पीड़ा का संवेदन ला सके अर्थात् इसमें पीड़ा-तन्तु (पैन-फ़ाइबर्स) नहीं होते।
करोटि, साइनुसेज़, नेत्र व कान को घेरी हुई पेशियों, अस्थियों को घेरे ऊतक की पतली पर्त सहित मस्तिष्क व मेरु-रज्जु की सतह को घेरे पतले ऊतकों, धमनियों, शिराओं व तन्त्रिकाओं में सूजन या विक्षोभ से सिरदर्द हो सकता है। यह दर्द हल्की चुभन से लेकर तेज, धधकन युक्त, लगातार अथवा अन्तराली किसी भी कलेवर में हो सकता है।
Headache Types Symptoms Treatment In Hindi

सिरदर्द के विविध प्रकार –
वास्तव में सिरदर्दों को अनेक आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है, सिरदर्द के प्रभावों (Headache), प्रकारों व लक्षणों में परस्पर समानता हो सकती है इस कारण अपने मन से अथवा कुछ लक्षणों को आपस में स्वयं जोड़कर किसी निष्कर्ष को न निकाल बैठें, समग्रता में वर्गीकरण इस प्रकार है.
प्राथमिक सिरदर्द : तनाव, माइग्रैन व क्लस्टर हेडेक
द्वितीयक सिरदर्द : यह किसी चोट अथवा बीमारी का लक्षण हो सकता है; जैसे कि साइनुसस में संक्रमण होने अथवा दबाव बढ़ने के कारण द्वितीयक सिरदर्द हो सकता है जिसे कि साइनस हेडेक कहते हैं
विशिष्ट सिरदर्द : जैसे क्रेनियल न्यूरेल्जिया, फ़ेषियल दर्द इत्यादि सिरदर्द बना रहे अथवा वापस लौट आये अथवा तेज हो जैसा भी हो चिकित्सक से मिलें।
ज्वर, गर्दन में अकड़न, कमज़ोरी, शरीर के एक पाष्र्व में संवेदन में परिवर्तन, नेत्रदृष्टि में बदलाव, उल्टी अथवा व्यवहार में परिवर्तन के साथ हुए सिरदर्द को एक चिकित्सात्मक स्थिति के रूप में समझ सकते हैं।
सिरदर्द के सत्रह प्रकार –
1. प्राथमिक तनाव सिरदर्द जो एपिसोडिक हैं
2. प्राथमिक तनाव सिरदर्द जो क्रानिक हैं
3. प्राथमिक पेशि-संकुचन सिरदर्द
4. प्राथमिक माइग्रैन सिरदर्द आरायुक्त
5. प्राथमिक माइग्रैन सिरदर्द आराविहीन
6. प्राथमिक क्लस्टर सिरदर्द
7. प्राथमिक पॅराग्ज़िज़्मल हेमिक्रेनिया (क्लस्टर सिरदर्द का एक प्रकार)
8. प्राथमिक खाँसी सिरदर्द
9. प्राइमरी स्टेबिंग हेडेक
10. यौनसम्बन्ध से जुड़ा प्राथमिक सिरदर्द
11. प्राथमिक वज्रपात (बिजली कड़कने जैसा) सिरदर्द
12. हिप्निक हेडेक (ऐसा सिरदर्द जो व्यक्ति को नींद से जगाये)
13. हेमिक्रेनिया कण्टिन्युआ (ऐसे सिरदर्द तो एक ही पाष्र्व पर लगातार बने रहते हैंः दायें अथवा बायें पाष्र्व पर, ये एकप्राशवीय होते हैं)
14. नये दैनिक बने रहने वाले सिरदर्द (क्रानिक सिरदर्द का एक प्रकार)
15. अतिश्रम से सिरदर्द
16. ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया एवं अन्य क्रेनियल नर्व सूजन, संक्रमण, दाँत, नाक, नेत्र अथवा कर्ण, साइनुसेस, चेहरे व अन्य संरचनाओं की अस्थियों से जुड़ी संरचनात्मक अथवा प्रकार्यात्मक(फ़ंक्ष्नल) समस्याएँ व व्यसन
सिर दर्द कैसे होता है ?
वास्तव में मस्तिष्क में पीड़ा अनुभव करने वाले तन्त्रिका-तन्तु होते ही नहीं, स्कन्धों के ऊपर, करोटि, चेहरे व गर्दन से कोई भी भाग प्रभावित होने पर मस्तक में दर्द हो सकता है। संक्रमण अथवा निर्जलीकरण सहित सर्वांगीण रुग्णत्व से सिरदर्द आ सकता है। इन्हें विषाक्त सिरदर्द कहा जाता है।
परिसंचरण अथवा रुधिर-प्रवाह में परिवर्तन अथवा अभिघात् (ट्रामा) से भी सिरदर्द हो सकता है। मस्तिष्क की रासायनिकी में परिवर्तनों से भी सिरदर्द प्रेरित हो सकता है.
जैसे कि औषधीय अभिक्रियाओं से, मादक द्रव्य व क्रियाओं के सेवन से भी। सिर दर्द को सबके लिये समान नहीं समझा जा सकता, इस कारण प्रत्येक व्यक्ति के अतीत को अलग से विश्लेषित करना जरूरी है।
तनाव वाला सिरदर्द मुख्य रूप से करोटि को ढाँकने वाली पेषियों के संकुचन से हो सकता है। करोटि को आच्छादित करने वाली पेषियाँ तनावग्रस्त होने से इनमें सूजन आ सकती है, ऐंठन आ सकती है। इसके लक्षण ये हो सकते हैंः मस्तक के पीछे से व ऊपरी गर्दन में दर्द शुरु होना एवं पट्टे जैसी कसावट अथवा दबाव।
तनावयुक्त सिरदर्द प्रायः मस्तक के दोनों पाष्र्वों में होता एवं धड़कनरहित कसावट अनुभव होती है जो सक्रियता बढ़ाने से नहीं बढ़ती। इसके साथ प्रायः मितली, उल्टी व प्रकाश-संवेदनशीलता जैसे लक्षण नहीं होते।
सिर की मालिश करने व तनाव के कारणों को दूर करने से राहत सम्भव। एस्पिरिन, आइबुप्रोफ़ेन व नेप्रोग्ज़ेन सूजनरोधी कहलाती अवष्य हैं परन्तु आमाशय के लिये विक्षोभक सिद्ध हो सकती हैं एवं आँतों में रक्तस्राव सम्भव।
सूजन दूर करने वाली अधिकांष औषधियाँ शरीर में कहीं भी रक्तस्राव को प्रेरित कर सकती हैं। एसिटामिनोफ़ेन्केन की भी कम मात्रा से भी यकृतक्षति हो सकती है।
क्लस्टर हेडेक –
ये महीनों से लेकर वर्षों की लम्बी अवधियों में सप्ताह अथवा अधिक समय में कालान्तरों में दैनिक रूप से होते हैं किन्तु सिर में दर्द नहीं होता। ये हर दिन एक ही समय पर होते हैं.
साधारणतया रात के मध्य में रोगी जग जाता है। क्लस्टर हेडेक का कारण अनिश्चित है परन्तु मस्तिष्क में हिस्टेमाइन अथवा सेरोटोनिन नामक रसायन अचानक निकलने को एक कारण माना जा सकता है।
मस्तिष्क के आधार पर अवस्थित हायपोथेलेमस शरीर की जैविक घड़ी के लिये उत्तरदायी है एवं इस प्रकार के सिरदर्द का यह स्रोत हो सकता है।
क्लस्टर हेडेक के कारणों को पारिवारिक आनुवंशिकी, निद्रा-प्रारूप में परिवर्तन सहित औषधीय प्रभावों से भी जुड़ा पाया गया है। धूम्र व मद्य का पान, चोकोलेट, माँस व नाइट्राइट्सयुक्त पदार्थों के सेवन से भी क्लस्टर हेडेक प्रेरित हो सकता है।
क्लस्टर हेडेक के लक्षण समूहों में होते हैं जो महीनों अथवा वर्षों तक की पीड़ामुक्त समयावधियों में अलग-अलग होते हैं। हो सकता है कि रोगी को कुछ सप्ताहों अथवा महीनों तक दैनिक रूप से सिरदर्द अनुभव हो एवं फिर वर्षों तक न हो।
इससे स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष बारम्बार प्रभावित होते हैं। क्लस्टर हेडेक दिन में एक-दो अथवा कभी-कभी अधिक बार हो सकता है। हर एपिसोड 30 से 90 मिनट्स का रहता है। यह कष्टदायी रहता है एवं एक नेत्र के पीछे अथवा चारों ओर हो सकता है।
नेत्र में गर्म अनुभूति सम्भव। प्रभावित नेत्र लाल, सूजनयुक्त व पानी रिसता हो सकता है। प्रभावित प्रश्रव की तरफ़ का नासाछिद्र बन्द हो सकता है अथवा बह सकता है। माइग्रैन वाले सिरदर्द की अपेक्षा क्लस्टर हेडेक में बेचैनी (अधिक बेचैनी) हो सकती है।
दीवार पर सिर दचकने अथवा आत्मघाती प्रयास की आशंका। उपचार बहुत कठिन होता है, अलग से परीक्षण कर-करके देखना पड़ता है। क्लस्टर हेडेक पुराना न हो तो आक्सीजन की बढ़ी हुई मात्रा का सेवन कराना लाभप्रद हो सकता है।
द्वितीयक सिरदर्द :
सिरदर्द वास्तव में कई रुग्णत्वों के लक्षण स्वरूप हो सकता है। प्राथमिक सिरदर्द का कारण सिर में अथवा आसपास ही होता है परन्तु द्वितीयक सिरदर्द किसी अन्य रोग अथवा चोट अथवा असामान्य स्थिति के कारण होता है जिसके निदान-उपचार की आवश्यकता होती है।
तथाकथित उत्तेजनावर्द्धक दवाओं के थोड़े-से प्रयोग अथवा अन्य दवाइयों के प्रयोग से भी सिरदर्द उत्पन्न होते देखे गये हैं। रक्तचाप व हृद्वाहिकागत अवस्थाओं में असामान्य परिवर्तनों से भी सिरदर्द हो जाता है।
साइनुस संक्रमण, दंत-पीड़ा, ग्लूकोमा, आयराइटिस एवं नेत्र, कान, नासिका, गला-गर्दन से जुड़े प्रसंगों में भी सिरदर्द हो सकता है। द्वितीयक सिरदर्द के प्रकरण में विस्तृत विश्लेषण जरूरी है, प्रयोगशालेय व रेडियोलाजी जाँचें करायी जाती हैं।
कारण ठीक से ज्ञात न हो पाने पर भी कारण विशेष की ओर उपचार आरम्भ करना पड़ सकता है, जैसे कि बुखार, गर्दन में अकड़न व मतिभ्रम के साथ होने वाले मेनिन्जाइटिस से सिरदर्द हो सकता है।
चूँकि मेनिन्जाइटिस तत्काल प्राणघातक हो सकता है इसलिये रक्त-जाँचें करवाने से पहले प्रतिजैविक शुरु किये जा सकते हैं तथा निदान की पुष्टि के लिये लम्बर पंक्चर से प्रायः कमर में से एक तरल एकत्र किया जाता है।
दर्द का मूल कारण ब्रैन-ट्यूमर अथवा सुबाराक्नाइड हेमोरेज हो सकता है किन्तु प्रतिजैविक दिला देने से उस जोख़िम को कुछ कम करने का प्रयास किया जा सकता है जो उस समय अचानक उठाना पड़ सकता था यदि प्रतिजैविक न दिया गया होता।
द्वितीयक सिरदर्द की जाँचों में रक्त-परीक्षण, गर्दन की कम्प्यूटराइज़्ड टोमोग्रॅफ़ी (सीटी स्केन), मस्तक के मैग्नेटिक रेज़ोनेन्स इमेजिंग (एमआरआई) स्केन्स एवं लम्बर पंक्चर (स्पाइनल टॅप) सम्मिलित हैं।
सिरदर्द का उपचार –
किसी भी प्रकार के सिरदर्द की स्थिति गम्भीर होने की स्थिति में चिकित्सात्मक जाँचें एवं चिकित्सक से सम्पर्क करना आवष्यक है परन्तु यदि स्थिति साधारण हो एवं दोबारा न आये तो प्राथमिक तनाव सिरदर्द से राहत पाने निम्नांकित सरल उपाय स्वयं अपनाये जा सकते हैं.
1. पानी प्रचुर मात्रा में पीयें।
2. तनाव दूर करने हेतु योग-प्राणायाम में रुचि उपजायें।
3. हल्के हाथों से अपने सिर की मालिश करें।
4. इलेक्ट्रानिक गजेट्स का अनावश्यक प्रयोग न करें तथा रीढ़ की हड्डी यथासम्भव सीधी रखें, कमर से गर्दन व सिर तक के सब अंग सीध में हों। नेत्रों पर अनावश्यक ज़ोर न पड़ने दें एवं ध्यान रखें कि ईयरफ़ोन कान में लगाने व मोबाइल जैसी सामग्रियाँ भी सिरदर्द का मुख्य कारण हैं जो अदृष्य हानिप्रद तरंगों, गर्दन व कलाई में असामान्यता ले आने इत्यादि के भी कारण सिरदर्द को प्रेरित कर सकते हैं।
5. नमक-तैल-मिर्ची की अधिकता के अतिरिक्त डिब्बाबन्द अथवा जंक, फ़ास्ट फ़ूड व कोल्ड, सोफ़्ट ड्रिंक्स से परहेज करें। ‘अरे हो जायेगा ठीक’ मानसिकता छोड़कर नेत्र व सिर रोग विशेषज्ञ से मिलें।
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