पित्ताष्मरी के प्रकार कारण लक्षण जाँचें उपचार एवं घरेलु उपाय Gallbladder Stone Causes Precautions Treatment in Hindi
Gallbladder Stone Causes Precautions Treatment in Hindi
पित्त की पथरी को कोलेलिथियासिस भी कहा जाता है। पित्ताशय (गालब्लैडर) यकृत के नीचे स्थित एक छोटा-सा अंग है जिसमें ठोस पदार्थ के टुकड़े जमा हो जाने को पित्ताष्मरी कहते हैं। पित्ताशय करता क्या है ? पित्ताशय (पित्त के थैले) द्वारा पित्त (बाइल) का भण्डारण व विमुक्ति (रिलीज़) की जाती है, यह पित्त यकृत में बनने वाला एक तरल है जो पाचन में सहायता करता है।
पित्त में कोलेस्टेराल व बिलिरुबिन जैसे अपशिष्ट भी होते हैं जिनका निर्माण शरीर तब करता है जब लालरक्त कोशिकाओं का खण्डन किया जा रहा हो। इन सब स्थितियों में पित्ताष्मरी बन सकती है। पित्त की अष्मरी पित्तवाहिनी को अवरुद्ध न करे इसके लिये पेट के उस हिस्से में दर्द को हल्के में न लें।
पित्ताष्मरी के प्रकार
कोलेस्टेराल पथरी – ये प्रायः पीली-हरी पथरियाँ होती हैं। पित्ताष्मरी के 80 प्रतिशत मामलों में इसी प्रकार की पथरी पायी गयी।
पिग्मेण्ट स्टोन्स – ये छोटे व गहरे होते हैं। इनका निर्माण बिलिरुबिन से होता है।
Gallbladder Stone Causes Precautions Treatment in Hindi

पित्ताष्मरी के लक्षण
1. पेट के ऊपरी भाग में दर्द, अधिकांशतया दायीं ओर, पर्शुकाओं (पसलियों) के ठीक नीचे।
2. दायें कंधे अथवा पीठ में दर्द।
3. पेट में असहजता।
4. वमन (उल्टी)
5. अन्य पाचन-समस्याएँ, अपच, सीने में जलन व गैस सम्मिलित।
निम्नांकित लक्षण गम्भीर संक्रमण अथवा सूजन के संकेत हो सकते हैं.
6. पेट का ऐसा दर्द जो घण्टों रहे।
7. बुखार एवं सर्दी लगना।
8. पीली त्वचा अथवा नेत्र।
9. गहरे रंग का मूत्र एवं हल्के रंग का मल।
पित्ताष्मरी क्यों ?
पित्ताष्मरी के सटीक कारण वैज्ञानिकों को ज्ञात नहीं हो सके हैं किन्तु कुछ अनुमान नीचे व्यक्त किये जा रहे हैं..
1. पित्त में अत्यधिक कोलेस्टेराल – पाचन के लिये शरीर को पित्त की आवश्यकता होती है। यह प्रायः कोलेस्टेराल को घोल लेता है परन्तु जब यह ऐसा नहीं कर पाता तो अतिरिक्त कोलेस्टेराल पथरी का निर्माण कर सकता है।
2. पित्त में अत्यधिक बिलिरुबिन – सिरोसिस, संक्रमण अथवा रक्त-विकारों की स्थिति में ऐसा सम्भव है कि यकृत अधिक बिलिरुबिन का निर्माण करने लगे।
3. पित्ताशय ठीक से खाली न हो पा रहा हो, इससे पित्त अत्यधिक गाढ़ा हो गया हो।
जोख़िम-कारक
*. पिछली पीढ़ियों में किसी को पित्ताष्मरी रही हो।
*. स्त्री होना
*. गर्भावस्था चल रही हो
*. मधुमेह हो
*. आयु चालीस वर्ष से अधिक।
*. मोटापाग्रस्त स्थिति
*. वजन एकदम से घटने लगा हो अथवा तेजी से घटाया गया हो
*. वसा व कोलेस्टेराल की अधिकता परन्तु रेशो की कमी वाला आहार
*. शरीर को नैसर्गिक रूप से सक्रिय न रखना
*. कोई हार्मोन-रिप्लेसमेण्ट थिरेपी करायी जा रही हो
*. क्रान्स रोग जैसे कोई आन्त्रीय रोग हो
*. हीमोलायटिक एनीमिया अथवा यकृत-सिरोसिस हो
*. कोलेस्टेराल को घटाने के लिये यदि बिना चिकित्सकीय देखरेख के औषधि ली जा रही हो, जैसे कि स्टेटिन के सेवन से पित्ताष्मरी की आशंका उत्पन्न होती है
*. पर्याप्त खाना न खाना
पित्ताष्मरी जाँचें
रुधिर-परीक्षण – संक्रमण अथवा अवरोध अथवा अन्य स्थितियों के संकेतों को समझने के लिये।
अल्ट्रासाउण्ड – शरीर के भीतर की इमेजेज़ का निर्माण।
सीटी स्कैन – स्पेश्यलाइज़्ड एक्स-रे द्वारा शरीर के भीतरी अंगों, विशेषतया पित्ताशय को देखना।
मैग्नेटिक रेज़ोनेन्स कोलान्गियोपैंक्रियाटोग्रॅफ़ी (MRPC) -इसमें शरीर के भीतरी अंगों (यकृत व पित्ताशय सहित) के पिक्चर्स लेने के लिये रेडियो तरंग ऊर्जा के पल्सेज़ व चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है।
कोलेसिण्टिग्रेफी (एचआईडीऐ स्कैन) – इस जाँच में यह परखने का प्रयास किया जाता है कि पित्ताशय ठीक से निचुड़ भी रहा है कि नहीं। इसमें हानि रहित रेडियो एक्टिव पदार्थ चिकित्सक द्वारा प्रवेश कराया जाता है जो पित्ताशय तक चला जाता है। टेक्नीशियन इसकी गति को देखता है।
एण्डोस्कापिक रेट्रोग्रेड कोलांगियोपैंक्रियाटोग्रॅफ़ी (ERCP – इसमें चिकित्सक एण्डोस्कोप नामक एक नली मुख के माध्यम से छोटी आँत तक प्रवेश कराता है। एक रंजक (डाए) प्रवेश कराया जाता है ताकि एण्डोस्कोप में कैमरा पर पित्त-वाहिनियों को देखा जा सके।
एण्डोस्कोपिक अल्ट्रासाउण्ड – इस परीक्षण में पित्ताष्मरी को देखने के लिये अल्ट्रासाउण्ड व एण्डोस्कोपी दोनों का संयोग कर लिया जाता है।
पित्ताष्मरी का उपचार
पित्ताष्मरी के प्रकरण में ऐसा माना जाता है कि यदि लक्षण न हों तो उपचार की आवश्यकता नहीं। कुछ छोटी पित्ताष्मरियाँ शरीर में अपने आप भी ग़ायब हो जाती हैं। अन्य पथरियाँ प्रायः किसी भी उपाय से गलती नहीं हैं, दर्द बढ़ने पर कुछ Injection दिये जाते हैं एवं अन्तिम विकल्प के रूप में पित्ताशय को शल्यक्रिया द्वारा निकाल दिया जाता है किन्तु इसमें अधिक घबराने की बात नहीं क्योंकि पित्ताशय निकलवाने के बाद भी भोजन का पाचन होता रहता है।
लेपरोस्कापिक कोलेसिस्टेक्टामी – इसमें लेपरोस्कोप नामक एक सँकरी नली एक छोटे-से चीरे के माध्यम से पेट में प्रवेश करायी जाती है। इसमें प्रकाश व कैमरा होता है। एक-दो दिन में घर जा सकते हैं।
ओपन कोलेसिस्टेक्टामी – पेट में बड़ा चीरा लगाकर पित्ताशय निकाल लिया जाता है। 3-4 दिवस चिकित्सालय में भर्ती रहना पड़ सकता है।
अन्य – पित्ताष्मरी यदि पित्त-वाहिनियों में हो तो चिकित्सक द्वारा उनका पता लगाने के लिये ईआरसीपी का प्रयोग किया जा सकता है एवं शल्यक्रिया के दौरान अथवा पहले उन्हें हटाया जा सकता है। शल्यक्रिया यदि किसी चिकित्सात्मक स्थिति के कारण न करायी जा सकती हो तो पित्त की पथरी गलाने के लिये चिकित्सक कुछ औषधियाँ लिख सकता है परन्तु दस्त जैसे कुछ दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं तथा पथरियों को गलने में वर्षों लग सकते हैं तथा ऐसा भी हो सकता है कि औषधियाँ बन्द करने के बाद पथरियाँ पुनः बनने लगें।
पित्ताष्मरी की जटिलताएँ
1. पित्ताशय में सूजन (एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस) : ऐसी स्थिति तब आती है जब पथरी पित्ताशय को इस प्रकार बन्द कर देती है कि वह खाली न हो पा रहा हो। इससे लगातार दर्द व बुखार बना रहता है। पित्ताशय फट सकता है अथवा उसमें चोट लग सकती है।
2. अवरुद्ध पित्त-वाहिनियाँ – इस स्थिति में बुखार, ठण्ड लगना एवं त्वचा व नेत्रों में पीलापन (पीलिया) सम्भव है। पथरी यदि अग्न्याशय (पैंक्रियाज़) में पहुँच रही वाहिनी को अवरुद्ध कर दे तो अंग में सूजन आ सकती है जिससे अग्न्याषय-शोथ (पैंक्रियाटाइटिस) हो सकता है।
3. संक्रमित पित्त-वाहिनियाँ (एक्यूट कोलांगाइटिस) – अवरुद्ध वाहिनी के संक्रमित होने की आशंका अधिक रहती है। जीवाणु यदि रुधिरधारा में फैले तो सेप्सिस नामक ख़तरनाक स्थिति आ सकती है।
4. पित्ताशय-कैन्सर – यह कम ही होता है परन्तु पित्ताष्मरी से इस प्रकार के कैन्सर का जोख़िम बढ़ता है।
पित्ताष्मरी होने से रोकने के घरेलु उपाय
1. रेशो व अच्छे वसा में समृद्ध आहार सेवन करें, जैसे कि जैतूल का तैल।
2. रिफ़ाइण्ड काब्र्स, शुगर व unhealthy fats से यथासम्भव दूर रहें।
3. हानिप्रद कोलेस्टेराल घटायें।
4. शारीरिक सक्रियता नैसर्गिक रूप से बढ़ायें – सायकल चलायें, रस्सी कूदें, पैदल चलें, सीढ़ियाँ उतरें-चढ़ें। वजन अधिक होने पर ऐसा और आवश्यक हो जाता है, वजन तेजी से घटाने के नाम पर बेचे जाने वाले खाद्यों से दूर रहें।
5. मधुमेह, हीमोलायटिक एनीमिया अथवा यकृत-सिरोसिस हो तो उसका विधिवत उपचार करायें।
6. यदि आप स्वयं स्त्री हैं एवं पारिवारिक अतीत में किसी को पित्ताष्मरी हो चुकी हो चिकित्सक से पूछताछ करें ताकि आने वाली समस्याओं को कम किया जा सके। मन से किसी hormone का सेवन न करें।
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