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ड्राई फ्रूट्स खाने का सही समय, सूखे मेवे (ड्राई फ्रूट्स) खाने के फायदे ,Dry Fruits Health Benefits in Hindi,Dry Fruits khane ke fayde

सूखे मेवों के सेवन के स्वास्थ्यगत लाभ के फायदे

Posted on 2021-11-172021-10-27 By Health Lekh No Comments on सूखे मेवों के सेवन के स्वास्थ्यगत लाभ के फायदे

Contents

ड्राई फ्रूट्स खाने के फायदे | Dry Fruits Health Benefits in Hindi

अधिकांश सूखे मेवों में आहारीय रेशे होते हैं जिनसे हृदय-रोगों का जोख़िम घटाने में सहायता होती है। अधिकांश सूखे मेवे एण्टि-आक्सिडेण्ट्स में सम्पन्न होते हैं। बादाम तो कोलेस्टेराल रहित समझा जाता है।

अखरोट प्रोटीन का समृद्ध स्रोत होता है। सूखे मेवे खनिजों से भरपूर रहते हैं। मूँगफली, अखरोट व बादाम में कैन्सर-रोधी गुणधर्म पाये गये हैं। सूखे मेवों को नैसर्गिक रूप में प्रयोग करें, स्वाद बढ़ाने के लिये कुछ मिला देने से उनका पोषणात्मक मान घट सकता है एवं हानिप्रद प्रभाव आ सकते हैं।

Dry Fruits Health Benefits in Hindi

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Dry Fruits Health Benefits

अंजीर के फायदे

एण्टिआक्सिडेण्ट्स युक्त, कैन्सर-रोधी, सूजनरोधी, मधुमेह व ग्लुकोज़ को नियन्त्रित करने में उपयोगी। मलबद्धता दूर करने, कालेस्टॅराल स्तर घटाने, अल्जाइमर के लक्षण कम करने में सहायक एवं कैल्सियम व पोटेशियम में समृद्ध।

अखरोट के फायदे

ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड अल्फ़ा-लिनोलेनिक एसिड का मुख्य स्रोत, इस प्रकार हृदयरोगों की आशंका कम करने में उपयोगी, कुल कोलॅस्टेराल व हानिप्रद ला-डेन्सिटी लिपिड कोलेस्टेराल घटाने एवं उपयोगी हाई-डेन्सिटी लिपिड कोलॅस्टेराल बढ़ाने में उपयोगी।

यह रक्तचाप को सामान्य रखने एवं परिसंचरण तन्त्र में रुधिर के सामान्य प्रवाह को सुचारु रखने में भी उपयोगी है। सूजन-जलन कम करने में सहायता कर सकता है, सोचने-समझने की क्षमता बढ़ाने में भी इसके उपयोगी होने का अनुमान है।

अलसी के फायदे

हृदयरोग, कैन्सर, स्ट्रोक व मधुमेह के जोख़िम को कम करने में अलसी सहायक है। ओमेगा-3 एसेन्षियल फ़ैटी एसिड्स नामक उपयोगी वसाओं के कारण अलसी हृदयक स्वास्थ्य में सहायक है.

अलसी में विलयशील व अविलयशील दोनों प्रकार के रेशे पाये जाते हैं। प्रोस्टेट-कैन्सर, स्तन-कैन्सर व कोलोन-कैन्सर का जोख़िम घटाने में अलसी सहायक है।

किशमिश (सूखे अंगूर) के फायदे

यह अम्लीयता को घटाती है। रेशे, पोटेशियम, विटामिन-सी, लौह प्रचुर। इन्हें खाने के बाद रुधिर-शर्करा अथवा इन्स्युलिन-स्तर में बड़ी बढ़त नहीं होती किन्तु कृत्रिम शक्कर में लिपटी किशमिश से होगी।

किशमिश रक्तचाप को घटाने, रुधिर-शर्करा नियन्त्रण ठीक करने, जलन व रुधिर-कोलॅस्टेराल को कम करने में सहायक हो सकती है। उपरोक्त कारणों से ये टाइप-2 डायबिटीज़ व हृदय-रोग की आशंका को कम रखने में सहयोगी हो सकती हैं।

काजू के फायदे

विटामिन-बी6, के व ई सहित मैग्नीषियम, मैंग्नीज़, फ़ास्फ़ोरस एवं जस्ता में समृद्ध, रक्तचाप को घटाने एवं उपयोगी हाई-डेन्सिटी लिपिड कोलॅस्टेराल का स्तर बढ़ाने में सहायक।

कोपरा (सूखा नारियल) के फायदे

हृदय, मस्तिष्क व पाचन की सुचारु कार्यप्रणाली में सहायक, रुधिर-शर्करा व प्रतिरक्षा-तन्त्र को ठीक रखने में उपयोगी। मैंग्नीज़, सेलेनियम, फ़ास्फ़ोरस, पोटेशियम, लौह व ताँबे की प्रचुर मात्रा।

खसखस के फायदे – अस्थमा, मलबद्धता, खाँसी एवं संक्रमण के कारण हुए दस्त को दूर करने में उपयोगी, कैन्सर से बचाव में सहायक।

छुहारे (सूखे खजूर) के फायदे

सूखे खजूरों में मैग्नीशियम, कैल्सियम, लौह व पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होता है। ये पालिफ़िनाल्स में भी समृद्ध होते हैं जिनसे पाचन बेहतर करने, मधुमेह-प्रबन्धन व कैन्सर से बचाव में सहायता हो सकती है.

खजूर खाने से यदि एलर्जीज़ (खुजली, नेत्रों में पानी अथवा लाल आँख़ें अथवा अन्य) अनुभव हों तो खजूर का सेवन कम करें क्योंकि इसमें सल्फ़ाइट्स की मात्रा अधिक होती है।

शर्करा अथवा मोटापे, वज़न की समस्या हो तो भी खजूर कम सेवन किया करें क्योंकि इसमें शक्कर ख़ूब होती है एवं दो सूखे खजूरों में ही 110 कैलोरीज़ मिल जाती हैं।

बादाम के फायदे

मैग्नीशियम, विटामिन-ई, लौह, कैल्सियम, मैंगनीज़, ताँबा, विटामिन-के, जस्ता, रेशे, राइबोफ़्लेविन (विटामिन-बी2) में समृद्ध, कई अध्ययनों में ऐसा पाया गया कि बादाम-सेवन से कुल कोलेस्टेराल स्तर घटे।

मानव-पेट में स्वास्थ्य के लिये उपयोगी कई सूक्ष्मजीव होते हैं, जैसे कि लेक्टोबेसिलस व बाइफ़िडोबैक्टीरिया की बढ़त को तेज करने में बादाम उपयोगी है। खनिज लवणों की खदान होने से बादाम अस्थि-स्वास्थ्य में विषेष उपयोगी है।

चार मगज़ के फायदे

कद्दू, खीरा, तरबूज व खरबूज इन चार के बीजों को ‘चार मगज़’ कहते हैं क्योंकि ये मस्तिष्क के लिये विशेष उपयोगी पाये गये हैं। ये विटामिन्स, खनिज, प्रोटीन्स, वसीय अम्लों से भरपूर होते हैं।

मखाना के फायदे

कमल-बीज प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, पोटेशियम, फ़ास्फ़ोरस, रेशे, मैग्नेशियम, लौह व जस्ता में समृद्ध होते हैं। इनमें सोडियम कम व मैग्नीशियम अधिक होने से ये हृदयरोगों, उच्चरक्तचाप, मधुमेह व मोटापे की स्थिति में विशेष उपयोगी हैं। इनमें विटामिन-बी, सी, ई व ऐ भी होता है।

आलूबुखारा के फायदे

इसमें पोटेशियम व बीटा-केरोटिन (विटामिन -ऐ) सहित विटामिन-के भी विद्यमान। आलु बुखारे से मलोत्सर्ग आवृत्ति सुधारने व स्थिरता लाने में सहायता दिखी है।

आलु बुखारे मलबद्धता से राहत दिलाने में ईसबगोल से अधिक प्रभावी देखे गये हैं। हृदयरोग व कैन्सर से बचाने में सहायक हो सकते हैं। अस्थिछिद्रण (ओस्टियोपोरोसिस) से जूझने में उपयोगी खनिज बारान भी इनमें पर्याप्त मात्रा में मिलता है। इन्हें खाने से रुधिर-शर्करा स्तर एकदम से नहीं बढ़ते।

Dry Fruits Health Benefits in Hindi

पिस्ता के फायदे

उपयोगी हाई-डेन्सिटी लिपिड कोलेस्टेराल को बढ़ाने में सहायक तथा रक्तचाप, भार व आक्सिडेटिव स्टेटस जैसे हृदयरोग-कारकों को घटाने में उपयोगी।

असंतृप्त वसीय अम्लों व पोटेशियम अधिक होने से यह इन दोनों कारणों से एण्टिआक्सिडेण्ट व सूजन-रोधी लक्षणों वाला बन जाता है। पिस्ता को कोलेस्टेराल-रहित पाया गया है। पिस्ता में पाया जाने वाला रेषा पेट के सहायक जीवाणुओं को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

कुछ अध्ययनों में ऐसा सुझाया गया है कि पिस्ता खाने से रक्त में वसा व शर्करा की मात्रा घटाने में सहायता हो सकती है तथा रुधिर-वाहिकाओं में लचीलापन बढ़ सकता है। पिस्ता में मैंगनीज़, फ़ास्फ़ोरस, ताँबे व विटामिन-बी6 की प्रचुर मात्राएँ होती हैं।

पिस्ता में वैसे तो बहुत अधिक सोडियम नहीं होता (यदि अलग से नमक न मिलाया गया हो तो) परन्तु फिर भी यदि उच्चरक्तचाप, हृदयरोग व स्ट्रोक की समस्या पहले से बढ़ी हुई हो तो पिस्ता का सेवन अधिक न करना।

पिस्ता खाने के बाद यदि पेट फूलने, मितली, पेटदर्द जैसी समस्या बार-बार आये तो भी पिस्ता का सेवन कम करें।

तिल के फायदे

सूजन दूर करने में उपयोगी, घाव शीघ्र भरने में सहायक, शर्करा को तेजी से अवशोषित होने से रोकते हुए तिल मधुमेह को नियन्त्रित रखने में भी उपयोगी है किन्तु इस फेर में अधिक तिल-सेवन कर लेने की भूल न करें, अन्यथा रुधिर-शर्करा में अत्यधिक कमी भी ठीक नहीं होती।

शल्यक्रिया के दो सप्ताह पहले तिल का सेवन बन्द करने को कहा जा सकता है ताकि शल्यक्रिया के दौरान व बाद में उसका प्रभाव शरीर के रुधिर-शर्करा स्तर पर न पड़े।

प्लेक के कारक जीवाणु को दूर करने में भी तिल उपयोगी कहा गया है। तिल में कैल्सियम रिकेट्स के उपचार में सहायता कर सकता है। उच्चरक्तचाप सामान्य करने में सहायक, निम्नरक्तचाप की स्थिति में तिल का प्रयोग कम ही करें।

तिल में बहुत अधिक रेशे होने से इसका सेवन एकदम से अधिक मात्रा में न करें, अन्यथा कुछ लोगों में देर से पचने की समस्या आ सकती है।

मूँगफली के फायदे

इसमें मोनोअनसैचुरेटेड फ़ैट्स (विशेषतया आलॅइक अम्ल) अधिक मात्रा में होने से हृदयरोगों का जोख़िम घटाते हुए मरण की आशंका को कम करने में सहायक, ये शरीर में हानिप्रद ला-डेन्सिटी लिपिड कोलेस्टॅरॅल का स्तर घटाने में सहायता करती हैं.

रेस्वेराट्राल नामक एण्टिआक्सिडेण्ट हृदयक समस्याओं, विषाण्विक संक्रमण, कैन्सर, डिजनरेटिव रोगों, स्ट्राक से दूर रखने में, रुधिर-वाहिनियों को स्वस्थ रखने व नाइट्रिक आक्साइड उत्पादन को बढ़ाने में उपयोगी, ये दोनों लक्षण स्ट्राक के जोख़िम को घटाते है तथा पी-कौमेरिक अम्ल नामक एण्टिआक्सिडेण्ट आमाशय के कैन्सर का जोख़िम घटाने में सहायक।

मूँगफली टाइप-2 डायबिटीज़, अस्थमा व एलर्जिक रोगों की सम्भावना को सिमटाने में सहायक। नियासिन की अधिकता आयुसम्बन्धी स्वास्थ्य-समस्याएँ (जैसे कि अल्ज़इमर रोग) कम करने में सहायता करती है।

मूँगफली का विटामिन-ई एक शक्तिशाली एण्टिआक्सिडेण्ट है जो एक वसा-विलयशील (चर्बी में घुलनशील) विटामिन है एवं मुक्त मूलकों से होने वाली क्षति से त्वचा को बचाता है व कोशिका-कला (सेल की झिल्ली) के रखरखाव में भी सहायक है।

मूँगफली में उपस्थित विटामिन-सी कालेजन-उत्पादन में सहायता करता है जिससे त्वचा का स्वास्थ्य बनाये रखने में सहायता होती है। फ़ास्फ़ोरस से अस्थियाँ मजबूत होती हैं व कोषिकाओं को बढ़त मिलती है। फ़ोलेट भ्रूण में कोशिकाओं व तन्त्रिकाओं की वृद्धि में सहायक है।

मूँगफली का ताँबा तन्त्रिकाओं, अस्थियों व लाल रक्त कोशिकाओं के स्वास्थ्य के लिये उपयोगी है। पेशियाँ ठीक से कार्य करें व ऊर्जा मिले इसके लिये मैग्नीषियम मूँगफली से प्रचुर परिमाण में प्राप्त हो जाता है। लाल छिलके वाली मूँगफली में पोषकों की अधिक मात्रा होती है।

खुबानी के फायदे

इनमें विटामिन-ऐ (जिसे वैज्ञानिक रेटिनाल भी कहते हैं) होता है जो कि नेत्र-स्वास्थ्य व रतौंधी में अतिउपयोगी है। विटामिन-सी को मानव-षरीर नहीं बना पाता, खुबानी से मिला विटामिन-सी ऐसा एण्टिआक्सिडेण्ट है जो शरीर को मुक्त मूलकों से हो रही क्षतियों से बचाने में सहायक है।

घाव भरने में आवश्यक कालेजन के निर्माण में भी यह विटामिन आवश्यक है। रोगप्रद जीवाणुओं व विषाणुओं से बचाकर प्रतिरक्षा-तन्त्र को सुचारु रखने में भी विटामिन-सी मुख्य भूमिका निभाता है।

खुबानी में विपुल मात्रा में मिलने वाला रेशा रुधिर-शर्करा स्तरों के नियमन में सहायक है। यह पाचन में सहायता भी करता है जिससे मलबद्धता से बचना सरल रहता है एवं पेट व आँत के समग्र स्वास्थ्य में यह सहायक है। खाने में रेशे अधिक हों तो हृद्रोग व टाइप-2 डायबिटीज़ सहित बड़ी आँत की बीमारियों से बचाव में भी सहायता हो जाती है।

खुबानी में खूब पोटेशियम होता है जो कि ऐसा वैद्युत् अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) है जो तन्त्रिकाओं के ठीक कार्य करने एवं पेषियों के संकुचन के लिये आवश्यक है।

शरीर में पोषकों को कोशिकाओं तक पहुँचाने व कोषिकीय अपशिष्ट को बाहर निकालने में भी पोटेशियम आवश्यक होता है। पोटेशियम हृद्-स्पन्दन को नियमित बनाये रखता है।

सूखे मेवों के प्रकार

  • बीज – बादाम, पिस्ता इत्यादि
  • गिरी मींगी – काजू इत्यादि
  • फल – किशमिश, खजूर इत्यादि
  • केसर को ऐसा सूखा मेवा कहा जा सकता है जो उपरोक्त में से किसी वर्ग में नहीं गिना जाता क्योंकि यह केसर-पुष्प का सुखाया गया स्टिग्मा है।

गिरी व सूखे फल में क्या अन्तर है ?

  • गिरी वास्तव में सूखे फल का एक उप-भाग है। सूखे फल को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
  • स्फुटनकारी – ये ऐसे फल हैं जिनके बीज पकने के बाद फली व छीमी में रहते हैं।
  • अस्फोटी – ये ऐसे फल होते हैं जो कठोर भित्ति में होते हैं, जैसे कि काजू व पिस्ता इत्यादि।

अतः गिरियाँ वास्तव में अस्फोटी सूखे फल हैं। वैसे तो गूदेदार फलों को मनुष्यों द्वारा सुखा लिया जाता है अथवा नैसर्गिक सूखे मेवों में हम साधारणतया अंजीर, सूखे आम, निर्जलीकृत खुबानी इत्यादि को सम्मिलित गिनते हैं, इन्हें शुष्कित अथवा सूखे फल कह दिया जाता है।

भण्डारण कैसे करें ?

सूखे मेवे आर्द्रता व कीटों के ग्रास बनने की सम्भावना बहुत रहती है, इनमें कवकों की वृद्धि शीघ्र हो जाती है। अतः इन्हें वायुरोधी पात्रों में रखें, वैक्यूम पैकेट में सील रखें व ढक्कन कसा व बन्द रखें.

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