हार्टबर्न एसिड रिफ़्लक्स व जीईआरडी में अन्तर Differences Between Heartburn Acid Reflux And GERD In Hindi
Differences Between Heartburn Acid Reflux And GERD In Hindi
साधारणतया हार्टबर्न, एसिड रिफ़्लक्स व जीईआरडी इन तीनों को पर्याय मान लिया जाता है जबकि हार्टबर्न एसिड रिफ़्लक्स व जीईआरडी का एक लक्षण है. इन समस्त स्थितियों के कारणों, प्रभावों लक्षणों व उपचारों में अत्यधिक समानता हो सकती है, अतः प्रत्येक कारण, प्रभाव, उपचार को अन्य का कारण, प्रभाव, उपचार मानकर पढ़ें।
इस आलेख में इस जटिल विषय को सरल करने के लिये रोग की पहचान एवं निराकरण के प्रयास किये जा रहे हैं, सर्वप्रथम यह जान लें कि हार्टबर्न वास्तव में हृदय नहीं बल्कि सीने की जलन है जो स्वयं में एसिड रिफ़्लक्स का लक्षण है एवं एसिड रिफ़्लक्स की और गम्भीर स्थिति जीईआरडी है.
Differences Between Heartburn Acid Reflux And GERD In Hindi

एसिड रिफ़्लक्स क्या है ?
यह सौम्य से लेकर गम्भीरता तक की एक व्यापक चिकित्सात्मक स्थिति है। लाअर इसोफ़ेगियल स्फ़िंग्क्टर नामक एक वर्तुल (सक्र्युलर) पेशी ग्रासनली को आमाशय से जोड़ती है। यह पेशी आहार आमाशय में जाने के बाद ग्रासनली को कस लेती है। यदि यह पेशी दुर्बल हो अथवा सुचारु रूप से कस न सके तो आमाशय का अम्ल उलटी दिशा में ग्रासनली में जा सकता है। इस स्थिति को एसिड रिफ़्लक्स कहते हैं।
एसिड रिफ़्लक्स के लक्षण
हार्टबर्न, खाँसी, ख़राब गला, गले के पिछले भाग में कड़वा स्वाद, मुख में खट्टा स्वाद, जलन व दबाव जो उरोस्थि (छाती की बाहरी हड्डी) तक फैलता लगना सम्भव। सोफ़्ट ड्रिंक्स, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, चाय-काफ़ी कम करें एवं मद्य व धूम्रपान सर्वथा त्यागें। चिकित्सक के लिखित प्रिस्क्रिब्षन के बिना रक्तचाप की दवाएँ, पेशी-रिलेक्सेसर, आइबुप्रोफ़ेन, एस्पिरिन न लें।
एसिड रिफ़्लक्स से जुड़ी समस्याओं की जाँचें
बैरियम स्वेलो (इसोफ़ेग्राम) द्वारा अल्सर व ग्रासनली के संकुचन को परखा जाता है, इसमें बैरियम घोल पिलाने के बाद एक्स-रे किया जाता है.
इसोफ़ेजियल मेनोमेट्री में ग्रासनली के कार्य व गति सहित लाअर इसोफ़केजियल स्फ़िंक्टर को परखा जाता है, क्षाराम्लस्तर (पीएच) निगरानी में ग्रासनली में अम्ल की मात्रा पर नज़र रखी जाती है जिसमें चिकित्सक द्वारा एक उपकरण ग्रासनली में प्रवेश कराकर एक-दो दिवसों के लिये वहीं छोड़ दिया जाता है ताकि ग्रासनली में अम्ल की मात्रा को मापा जा सके.
एण्डोस्कोपी में ग्रासनली अथवा आमाशय में समस्याएँ जाँची जाती हैं, इसमें एनेस्थेसिया को गले में छिड़कने के बाद कैमरा युक्त एक लम्बी-लचीली प्रकाश युक्त नली गले के माध्यम से भीतर प्रवेश करायी जाती है, एण्डोस्कोपी के दौरान बायोप्सी में ऊतक का सैम्पल लिया जा सकता है ताकि संक्रमण अथवा अन्य असामान्यताओं के लिये सूक्ष्म दर्शीय अध्ययन किया जा सके।
एसिड रिफ़्लक्स की शल्यक्रिआमाशय या में दो प्रकार के विकल्प आज़माये जा सकते हैं.
(अ) एलआईएनएक्स उपकरण के रूप में एक वलय (रिंग) को ग्रासनली (मुख को आमाशय से जोड़ने वाली नली) के निचले छोर के बाहर लगा दिया जाता है. इस वलय में टाइटेनियम वायर्स द्वारा जुड़े मैग्नेटिक टाइटेनियम बीड्स होते हैं, यह उपकरण आमाशय के अंशो को ग्रासनली में चढ़ने से रोकता है।
यह उपकरण उन लोगों को नहीं लगाया जा सकता जो किन्हीं धातुओं से एलर्जिक हों तथा यदि यह उपकरण लगवाया हो तो उसे निकलवाये बिना किसी प्रकार का एमआरआई टेस्ट नहीं कराना है.
(आ) फ़ुण्डोप्लिकेषन में एक कृत्रिम कपाट आमाशय के ऊपरी भाग में लगा दिया जाता है। हिएटल हर्निया को ठीक करने में भी यह उपयोगी है। पेट अथवा छाती में खुले चीरे अथवा पेट में छोटे-से चीरे द्वारा एक प्रकाश नली द्वारा यह प्रक्रिया सम्पन्न की जा सकती है।
गेस्ट्रोआयसोफ़ेगियल रिफ़्लक्स डिसीस (जीईआरडी) क्या है ?
यह एसिड रिफ़्लक्स का दीर्घकालिक (क्रानिक) व अधिक गम्भीर रूप है। सप्ताह में दो बार से अधिक एसिड रिफ़्लक्स होने अथवा ग्रासनली में जलन होने को जीईआरडी कहा जाता है। ग्रासनली को दीर्घकालिक क्षति से कैन्सर सम्भव। जीईआरडी की जटिलता से इसोफ़ेजियल स्ट्रिक्टर की स्थिति आ सकती है जिसमें आमाशय के अम्ल से ग्रसानली के निचले भाग को क्षति हो सकती है व बनने वाले ऊतक क्षत-विक्षत हो सकते हैं।
ये क्षत-विक्षत ऊतक जमते – जमते ग्रासनली के भीतर संकुचन ला सकते हैं एवं आहार निगलने में कठिनता आ सकती है। जीईआरडी के लक्षण – मुख व साँस में दुर्गन्ध, अतिरेक अम्ल से टूथ-इनेमल को क्षति, हार्टबर्न, ऐसी अनुभूति मानो आमाशय के अंश गले अथवा मुख तक आ रहे हों, सीने में दर्द, लगातार सूखी खाँसी, अस्थमा, निगलने में कठिनाई।
जीईआरडी की जाँच कई प्रकारों से की जा सकती है, जैसे कि अपर जीआई सिरीज़ में एक विशेष एक्स-रे द्वारा ग्रासनली, आमाषय व छोटी आँत के ऊपरी भाग (डुओडिनम) को देखा जाता है, इससे पेप्टिक अल्सर जैसी अन्य स्थितियों का पता लग सकता है।
उपचार में स्ट्रेट्टा प्रोसिजर में एक छोटी-सी नली ग्रासनली में ले जाकर एलईएस को नयी आकृति प्रदान करने के लिये लो-रेडियोफ्रि़क्वेन्सी हीट का प्रयोग किया जाता है।
हार्टबर्न क्या है ?
यह वास्तव में एसिड रिफ़्लक्स एवं जीईआरडी का लक्षण है। वास्तव में सीने में जलन कहना उपयुक्त रहेगा क्योंकि पाचन-तन्त्र से हृदय में वास्तव में जलन नहीं होती। सीने में महसूस जलन भी वास्तव में ग्रासनली (आयसोफ़ेगस) के कारण अनुभव होती है जिससे छाती में मंद से तेज दर्द हो सकता है। कुछ लोग इसे भ्रमवश हृदयाघात वाला दर्द समझ बैठते हैं। ग्रासनली का आस्तर आमाषय के आस्तर से अधिक नाज़ुक होता है।
अतः ग्रासनली में अम्ल से सीने में जलन जैसी अनुभूति होती है। यह दर्द तीक्ष्ण अथवा जलन अथवा कसावट के रूप में हो सकता है। कुछ लोग हार्टबर्न को गले अथवा गर्दन की ओर बढ़ती जलन के रूप में अथवा ऐसी असहजता के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जो उरोस्थि (छाती की बाहरी हड्डी) के पीछे हो। हार्टबर्न खाने के बाद भी हो सकता है। झुकने अथवा पेट के बल होने से स्थिति और बिगड़ सकती है।
हार्टबर्न काफ़ी लोगों को होता है जिसपर नियन्त्रण के लिये नैसर्गिक रूप से शारीरिक सक्रियताएँ बढ़ाते हुए वजन घटायें तथा यदि वजन कम हो तो भी सायकल चलाने, रस्सी कूदने, सीढ़ी चढ़ने, तेज चाल जैसे प्राकृतिक कार्यकलाप करें, धूम्रपान छोड़ें, वसीय, मसालेदार व अम्लीय भोजन कम करें। अदरख, मुलहठी, केला, दहीं, ग्वारपाठे का रस अपने आहार में बढ़ायें।
निष्कर्ष
हो सकता है कि अधिकांश लोग बारी-बारी अथवा रुक-रुककर हार्टबर्न व एसिड रिफ़्लक्स अनुभव करें जिसके कारण का सम्बन्ध उनकी खान-पान आदतों अथवा खाने के बाद तुरंत सो जाने से हो सकता है। जीईआरडी ऐसी ही एक दीर्घकालिक स्थिति है।
जीईआरडी के सम्भावित कारण ये रहे हैं – मोटापा (जिससे पेट पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है), धूम्रपान, मद्यपान, गर्भावस्था, हिएटल हर्निया (जिससे एलईएस में दबाव कम हो जाता है) अथवा एलईएस को दुर्बल करने वाली दवाओं (जैसे कि एण्टिहिस्टेमाइन्स, कैल्शियम चैनल ब्लाकर्स, दर्दनिवारक, सिडेटिव्स एवं एण्टिडिप्रेसेण्ट्स) का सेवन। जीईआरडी के उपचार – खान-पान सुधारें, नैसर्गिक रूप से शारीरिक सक्रियता बढ़ायें, मदिरा व धूम्रपान त्यागें।
जीईआरडी से राहत दिलाने के लिये अम्ल घटाने वाली औषधियाँ दी जा सकती हैं परन्तु ये सब पर प्रभावी हों ऐसा आवश्यक नहीं, अतः कुछ व्यक्तियों को एलईएस ठीक करने के लिये शल्यक्रिया आवश्यक हो सकती है।
जीईआरडी परीक्षण – 24-आवर एम्पेडेन्स-प्रोब स्टडी (इसमें नाक में एक लचीली नली डाली जाती है जिसे ग्रासनली तक ले जाया जाता है, इस नली में सेन्सर्स होते हैं जो यह जाँच सकते हैं कि क्या अम्ल पलटकर ग्रासनली में जा रहा है. अपर एण्डोस्कोपी (इसमें एक कैमरायुक्त नली मुख से होकर आमाशय में एवं छोटी आँत के कुछ भाग तक ले जायी जाती है; इन क्षेत्रों में क्षति, ट्यूमर्स, सूजन व अल्सर देखने में यह सहायक है.
प्रायः आगे की जाँच के लिये बायोप्सी में ऊतक-सैम्पल लिया जा सकता है)। जीईआरडी में आमाशय से आये अम्ल से ग्रासनली का आस्तर क्षतिग्रस्त हो सकता है जिससे रक्तस्राव, अल्सर व घाव सम्भव। अम्ल के कारण समय के सापेक्ष ग्रासनली की कोशिकाओं में परिवर्तन तक आ सकता है जिसे बरेट्स इसोफ़ेगस बोलते हैं, इस कारण एडिनोकार्सिनोमा नामक ग्रासनली-कैन्सर का जोख़िम बढ़ सकता है।
जीईआरडी में आमाशय में अम्ल की मात्रा कुछ खाद्यों-पेयों से बढ़ सकती है, जैसे कि समस्त मद्य, चोकोलेट, काफ़ी, तेलीय , मसालेदार व खारे पदार्थ, अतिवसीय पदार्थ, इनसे एसिड रिफ़्लक्स व हार्टबर्न के लक्षण आ सकते हैं। बिना दवाई के राहत मिल सकती है यदि मद्य व धूम्रपान पूर्णतया छोड़ दें व अन्य का सेवन कम करें। कसे कपड़े व बेल्ट न पहनें, एक बार में ढेर सारा खा लेने के बजाय कम-कम मात्रा में अनेक बार खायें।
खाने के बाद सीधे चलें, यदि कभी किसी कारण वश कुछ बैठना आवश्यक हो तो रीढ़ सीधी रखते हुए बैठें। अदरख, मुलहठी, केला, दहीं, ग्वारपाठे का रस अपने आहार में बढ़ायें। ग्रासनली व आमाशय को और हानि पहुँचने से रोकने के लिये अन्तिम उपचार के रूप में निस्सेन फ़ुण्डोप्लिकेषन नामक एक शल्यक्रिया करवायी जा सकती है जिसमें एलईएस में मजबूती लाने के लिये ग्रासनली के पास आमाशय के एक भाग को लपेट दिया जाता है।
जीईआरडी के कारण निद्रासम्बन्धी दुविधाएँ भी उत्पन्न होने की आशंका रहती है, जैसे कि अनिद्रा, दिन में ऊँघना, रेस्टलेस लेग सिण्ड्राम, स्लीप एप्निया (इसमें नींद में साँस कुछ समय के लिये रुक सकती है अथवा साँसें उथली हो जाती हैं, शरीर को पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिलती, साँस रुकने से जगना एवं तेजी से हाँफना सम्भव)।
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