डायपर रेश के लक्षण कारण व बचाव के तरीके Diaper Rash Causes Symptoms Treatment In Hindi
Diaper Rash Causes Symptoms Treatment In Hindi
डायपर रेश है क्या ?
वास्तव में छोटे बच्चों का शरीर सूखा रखने के लिये जाँघिया, पुंतरिया अथवा अधोअन्तः वस्त्र के रूप में डायपर अथवा कोई अन्य कपड़ा पहनाया जाता है (लगभग ठीक ऐसा ही मासिक स्राव के समय स्त्रियों अथवा ऐसे बुज़ुर्गों द्वारा पहना जाता है जिन्हें मूत्रोत्सर्ग का संयम नहीं रहता)।
इस कपड़े की बनावट अथवा इसमें गीलेपन के कारण त्वचा की सतह पर चकत्ते या अन्य प्रकार का कोई संक्रमण आदि होने को डायपर रेश कह दिया जाता है जिसमें त्वचा में सूजन आ जाती है एवं नितम्ब इत्यादि भागों पर तेज लाल त्वचा (Red Skin) के घेरे नज़र आने लगते हैं। आइए बढ़ें डायपर रेश (Diaper Rash) के 3 लक्षणों 7 कारणों व बचाव के 19 उपायों को..
Diaper Rash Causes Symptoms Treatment In Hindi

डायपर रेश के लक्षण –
1. त्वचा में चिह्न – नितम्बों, मूत्रांग व जाँघ में लाल व नाजु़क हो चुकी त्वचा।
2. बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन – वह असहज या चिड़चिड़ा लग सकता है, विशेष तौर पर नितम्बों पर स्पर्श होने पर असामान्य प्रतिक्रिया कर सकता है अथवा रुन्दन सम्भव।
3. यहाँ प्रदर्शित घरेलु समाधान से लाभ न हो अथवा स्थिति पुरानी हो अथवा तनिक भी गम्भीर लगे अथवा रक्तस्राव अथवा खुजली अथवा तरल निकलने अथवा जलन अथवा दर्द अथवा मल-मूत्र उत्सर्ग के समय किसी प्रकार की असामान्यता अथवा परेशानी अथवा बुखार जैसे लक्षण हों तो तत्काल शिशुरोग अथवा त्वचारोग विशेषज्ञ से मिलें।
डायपर रेश के कारण –
1. Diapar समय पर न बदलना (बच्चा यदि रात को माता की जानकारी में आये बिना मूत्रोत्सर्ग कर चुका है तो घण्टों तक गीलेपन के कारण अथवा ऐसा सोचकर कि यह तो डायपर है अपने आप सोख लेगा ऐसा मान लेने से भी समस्या आ सकती है क्योंकि डायपर की सतह चाहे सूखी लगे परन्तु बच्चे का भार पड़ने पर वह दबेगी व गीलापन उसे अनुभव होगा)
2. त्वचा की संवेदनशीलता – जैसे कि मल अथवा मूत्र से इरिटेशन हो सकता है यदि तुरंत बच्चे के कपड़े न बदले जाते हों अथवा उन्हें ठीक से न धोया-सुखाया गया हो अथवा उनमें कुछ गीलापन रह गया हो तो। बच्चों की नाज़ुक त्वचा मल के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती है एवं दस्त इत्यादि संक्रमणों की आशंका भी उत्पन्न हो सकती है।
3. डायपर घिसने से त्वचा के शल्क जैसे निकलना – विशेष रूप से एकदम नये अथवा सिंथेटिक डायपर से खुरचने अथवा कसे कपड़े के कारण त्वचा रगड़ सकती है।
4. रासायनिक क्रियाएँ – नये कपड़ों के या रासायनिक धुलाई के बाद पहने कपड़ों से डिटर्जेण्ट, ब्लीच अथवा फ़ेब्रिक सोफ़्ट्नर के अंश बच्चे की त्वचा में जा सकते हैं तथा बिना शिशुरोग चिकित्सक के अपने मन से विभिन्न पावडर्स, तेल व लोशंस बच्चे को लगाने अथवा स्वयं मेक-अप के नाम पर विविध रसायनों से भिड़कर बच्चे को छूने से भी उसकी कोमल त्वचा असहिष्णु हो सकती है क्योंकि छोटे बच्चों की मुलायम त्वचा इतनी संवेदनशील हो सकती है कि बड़ों के लिये सामान्य लगने वाली वस्तुएँ उनके लिये असहनीय हो सकती हैं।
5. जीवाण्विक अथवा यीस्ट कवक संक्रमण – एक छोटे से क्षेत्र से फैला संक्रमण पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले सकता है। विशेष तौर पर डायपर से ढँके व धूप से दूर नम भागों की त्वचा सूक्ष्मजीवों के पनपने की सरल स्थली होती है।
6. नये खाने का समावेश – बच्चा जैसे ही सामान्य खान-पान शुरु करता है तो मुख्य तौर पर उसके मल की संरचना बदलने लगती है। इससे डायपर-रेश की सम्भावना बढ़ जाती है। बच्चे अथवा माता ने भी यदि कुछ बासा अथवा चिप्स जैसे डिब्बाबंद सामग्रियों का सेवन किया हो तो बच्चे में उसके असर दिख सकते हैं।
7. प्रतिजैविकों का मनचाहा प्रयोग – बिना सम्बन्धित रोगविशेषज्ञ के स्वयं किसी प्रतिजैविक, दर्दनिवारक इत्यादि का सेवन करने अथवा बच्चे को कराने से विशेष रूप से बच्चे को सीधी हानि हो सकती है.
जैसे कि प्रतिजैविकों (एंटिबायोक्टिस) के रूप में यदि जीवाणुरोधियों (एंटिबैक्टीरियल्स) का सेवन किया जा रहा हो तो सम्भव है कि इनसे वे जीवाणु भी नष्ट होने लगें जो शरीर में यीस्ट की बढ़त को नियन्त्रित रखते हैं, इस प्रकार यीस्ट-संक्रमण से डायपर-रेश की आशंका बहुत बढ़ सकती है। प्रतिजैविकों का प्रयोग करने से दस्त की आशंका भी बढ़ती है तथा स्तनपान करा रही माओं द्वारा प्रतिजैविक सेवन करने से भी इनके बच्चों में डायपर रेश की सम्भावना बढ़ती है।
डायपर रेश से बचाव व समाधान –
1. डायपर समय पर बदलें। साफ़ लगने पर भी उसे बदलें क्योंकि ठोस अंश उसकी त्वचा के सम्पर्क में आ रहे हो सकते हैं।
2. वायु-धूप में सुखायें, यदि बरसात अथवा तेज ठण्ड का मौसम हो तो घर में किसी कमरे में पंखा चलाकर उसमें यह कपड़ा कहीं कुर्सी इत्यादि पर लटका दें।
3. डेटाल/नीम/नीलगिरि इत्यादि के पानी से डायपर धोयें।
4. डायपर धोने में अल्कोहल अथवा अन्य भारी प्रभाव वाले रसायनों का प्रयोग तो बिल्कुल न करें। किसी रसायन का प्रयोग किया भी हो तो साफ़ पानी दिखने पर भी बारम्बार पानी बदल-बदलकर धोयें।
5. बाज़ार से डायपर लाकर तुरंत न पहनाते हुए रातभर उसे पानी-सर्फ़ में गलायें अथवा गर्म पानी में धोकर पूर्णतया सुखाकर ही प्रयोग करें। वैसे पुरुषों की पुरानी बनियानें घर में डायपर बनाने के लिये बेस्ट हो सकती हैं।
6. सुखाने के लिये यथासम्भव धूप में भीतर का भाग बाहर करके डायपर टाँगें ताकि बच्चे की त्वचा के सम्पर्क में आने वाले भाग पर सीधी धूप पड़े।
7. बच्चे को पौंछने के लिये एकदम नर्म व पतले कपड़े का प्रयोग करें, हल्के हाथ से पौंछें, अन्यथा आपके द्वारा थोड़ा-सा भी ज़ोर लगाना बच्चे के लिये रगड़न-खुरचन जैसा साबित होगा। यह कपड़ा भी बारम्बार धोते रहें।
8. बच्चे को कुछ भी पहनाना हो तो सदैव ध्यान रखें कि वह जरूरत से अधिक ढीला, कोमल व सहज हो।
9. बच्चे को हर समय डायपर में न छोड़ते हुए प्रतिदिन कुछ समय खुली हवा व धूप में उसे रहने-खेलने दें ताकि त्वचा नैसर्गिक रूप से श्वास ले सके।
10. स्वयं भी अपने हाथों की स्वच्छता रखें, अन्यथा स्मरण रहे कि आपके हाथ की हल्की-सी गंदगी भी उस बच्चे पर भारी पड़ सकती है।
11. यदि लाण्ड्री में आप कपड़े धुलवाते हैं तो सुनिश्चित करें कि कम से कम डायपर्स को हानिप्रद रसायनों से न धोया गया हो तथा उसे पहले से सूचित कर दें कि आपके घर में छोटा बच्चा है अतः धोने-सुखाने में विशेष सावधानी बरतें। जहाँ तक हो सके कम से कम बच्चों के डायपर्स तो घर में ही व अलग से धोयें तो बेहतर।
12. बच्चे में गीलापन सुखाने अथवा डायपर में नमी घटाने के लिये किसी प्रकार के पावडर इत्यादि का प्रयोग न करें क्योंकि बच्चा बड़ी आसानी से साँस के माध्यम से उसे निगलेगा ही जो कि उसके फेफड़ों के लिये हानिप्रद होगा।
13. मन से किसी भी प्रकार की औषधि व सौन्दर्य प्रसाधन का प्रयोग न तो बच्चे में करें, न ही स्वयं में।
14. बच्चे व गर्भवती के आहार में स्थानीय व ताज़ा खान-पान हो; रासायनिक अथवा पैकेज़्ड नहीं।
15. कपूर व हल्दी जैसे पदार्थों मिले नैसर्गिक क्रीम्स इत्यादि का प्रयोग करें, वह भी सतर्कता व ध्यान से।
16. बच्चे की त्वचा पर नारियल तेल लगायें ताकि यीस्ट-संक्रमण की आशंका घटे।
17. ताज़ा अथवा ख़रीदकर ग्वारपाठे का जेल बच्चे की प्रभावित त्वचा पर लगायें।
18. आधी से आधी चम्मच सैंधा नमक लेकर उसे पानी में घोलकर नहाने से पहले बच्चे की प्रभावित त्वचा पर लगायें ताकि सूजन दूर हो किन्तु ध्यान रहे कि ऐसा सप्ताह में 3-4 बार से अधिक नहीं करना है एवं 5-10 मिनट्स में बच्चे को नहलाना ही है।
19. बच्चे को बड़ों जैसे रासायनिक साबुन-शैम्पू से न नहलायें, बालरोग विशेष से पूछकर एकदम बच्चे समान नाज़ुक पदार्थों से बनी सामग्रियों का ही प्रयोग करें ताकि उसे किसी प्रकार की एलर्जी भी न हो सके। ध्यान रखें कि तनिक भी जटिलता का आभास होने पर त्वचारोग अथवा बाल विशेषज्ञ के पास जायें।
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तो ये थी हमारी पोस्ट डायपर रेश के लक्षण कारण व बचाव के तरीके,Diaper Rash Causes Symptoms Treatment In Hindi, Diaper rash Ke kaaran Aur Bachav . आशा करते हैं की आपको पोस्ट पसंद आई होगी और Diaper Rash Causes Symptoms Treatment In Hindi की पूरी जानकारी आपको मिल गयी होगी. Thanks For Giving Your Valuable Time.
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