डेंगू के लक्षण व बचाव के 7 आसान तरीके Dengue Fever Sympotms Prevention In Hindi
Dengue Fever Sympotms Prevention In Hindi
जीवन के लिए पानी जरूरी है और पानी के लिए बारिश। प्रकृति की सुंदरता और संपूर्णता समुद्र ,बादल, झील ,झरना, नदी ,नाला तालाब ,कुआं के जलचक्र की परिणीति है। पृथ्वी की संपन्नता उजागर होने लगती है। वनस्पति जगत और जीव जगत एक दूसरे का पूरक बन आनंदोत्साह के साथ करीब आ जाते हैं।
जहां बारिश अन्न, हरियाली और खुशहाली का उपहार लाती है तो वहीं साथ में नदी- नालों की बाढ़ भी लाती है। जल जमाव और अति जल का परेशानी भरा प्रकोप आता है , और उन में पनपने वाले मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कवक ,पैरासाइट्स कीड़े- मकोड़े मक्खी -मच्छर भी आश्रय पा जाते हैं।
यही शीतोष्ण मौसम डेंगू ,मलेरिया, चिकनगुनिया टाइफाइड ,फाइलेरिया,पीलिया, डायरिया एवं दाद दिनाय इत्यादि के कारक जीवाणुओं, रोगाणुओं, विषाणुओं, पैरासाइट्स , प्रोटोजोआ और फंगस इत्यादि के प्रसार के लिए आदर्श परिस्थितियों का निर्माण करते हैं।
जहां पूरा संसार कोरोना वायरस से युद्ध में अपनी संपूर्ण चिकित्सीय ब्रह्मास्त्रों के साथ लगा हुआ है उसी समय बरसाती रोगों का आक्रमण जन जीवन के लिए घातक साबित हो सकता है। ऐसी अवस्था में विशेष रुप से तैयार रहना होगा और सभी विकल्पों का हर संभव उपयोग करना होगा । आज हम दरवाजे पर दस्तक दे रहे एक और वायरल रोग डेंगू और उसकी होम्योपैथिक चिकित्सा की चर्चा करेंगे।
Dengue Fever Sympotms Prevention In Hindi

डेंगू होने के कारक –
डेंगू का कारक Group B अरबोवायरस है यह उष्णतटबंधीय (ट्रापिकल एवं उपउष्णतटबंधीय (सब ट्रॉपिकल) महाद्वीपों और देशों में रहने वाले मनुष्यों को प्रभावित करता है। इसका मुख्य वाहक मनुष्य स्वयं है जिससे यह संक्रमण रक्त पीने वाले एक विशेष मच्छर की मादा एडीज इजिप्टी है ।
जो संक्रमित व्यक्ति का रक्त पीकर 8 दिन से 14 दिन के भीतर स्वयं संक्रमित हो जाती है और अपने बाकी जीवन काल में इस रोग के वायरस को दूसरे मनुष्यों तक पहुंचती रहती है ।
साफ जल में अंडे देने वाले ये मच्छर घरों के आसपास गड्ढों, छतों पर बेकार पड़े बर्तनों, गमलों और कूलर कूलर इत्यादि में बारिश के साफ जल में अपने जीवन चक्र को प्रारंभ करते हैं।
डेंगू पर विशेष –
1-वैसे क्लासिकल डेंगू सामान्य तौर पर प्राणघातक नहीं होता । किंतु दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में यही वायरस हिमोरेजिक (रक्त स्रावी) डेंगू के लक्षण उत्पन्न करता है जो जीवन के लिए काफी घातक है।
2- डेंगू को मनुष्य से मनुष्य तक पहुंचाने वाला मच्छर एडीज इजिप्टी गंदी नालियों में नहीं साफ जल में अंडे देता है और पार्कों आदि के घास में भी निवास करता है। और दिन में ही अपने शिकार की तलाश में रहता है।
3- डेंगू संक्रमितों के रक्त में प्लेटलेट काउंट बहुत तेजी से कम होने लगता है । यही संख्या डेढ़ लाख से घटकर जब 30,000 के नीचे जाने लगती है तो पीड़ित व्यक्ति की स्किन पर छोटे छोटे काले धब्बे बनने लगते हैं जो छोटी रक्तवाहिनियों के फट जाने के कारण होता है ।
प्लेटलेट काउंट कम हो जाने के कारण कारण शरीर के किसी भी कुछ भी नहीं है रंध्र से रक्त स्राव शुरू हो सकत है जो कभी-कभी मृत्यु का कारण भी बनता है ।
4- जगह ,परिस्थितियों और अलग- अलग व्यक्ति के Immunity और ससेप्टिबिलिटी के अनुसार इसके लक्षणों एवं प्रभाव में भिन्नता देखी जा सकती है।
5- डेंगू की एक एपिडेमिक से दूसरे एपिडेमिक के बीच 2 से 3 साल का अंतराल मिलता है। बाकी समय यहां वहां इक्का-दुक्का डेंगू के केस देखे जाते हैं ऐसा एपिडेमिक के समय मिलने वाली इम्यूनिटी के कारण होता है।
6- डेंगू को फैलाने वाले एक दूसरे से मिलते जुलते इस एंटीजन के 4 स्ट्रेन हैं जिसमे से किसी एक द्वारा संक्रमित होने के बाद आदमी कम से कम 1 साल के लिए इम्यूनिटी प्राप्त कर लेता है।
इनक्यूबेशन पीरियड –
5 से 14 दिन तक। यह वह समय होता है जिसमें संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने के बाद मनुष्य शरीर में आया हुआ वायरस अपनी कॉलोनी को इतना बढ़ाता है कि संक्रमित व्यक्ति के अंदर विभिन्न लक्षण उत्पन्न होने लगें। लक्षण उत्पन्न होने के बाद यह रोग 1 से 10 दिन तक बना रहता है।
डेंगू से सावधानियां –
किसी रोग से भयभीत होने से ज्यादा जरूरी उससे पूरी तरह लड़ने के लिए तैयार हो जाया जाय। कुछ सावधानियां बरत कर हम डेंगू से संक्रमित होने से बच सकते हैं।
1- जैसा कि हम जानते हैं कि यह मौसम मच्छरों के प्रजनन के लिए बहुत ही सहयोगी है । इसे ध्यान में रखकर हर संभव प्रयास करना चाहिए कि बरसात का जल घर के भीतर अथवा बाहर किसी बर्तन अथवा गड्ढे में लगातार कुछ दिनों तक इकट्ठा ना रह पाए।
2- यदि घर के आस-पास जलजमाव हो रहा हो और उसका निस्तारण तुरंत संभव ना हो तो किसी प्रभावी इंसेक्टिसाइड का छिड़काव करवाना चाहिए।
3- जैसा कि हमें पता है कि यह मच्छर पाकुर ऑफिसर और घरों में भी दिन के समय निकलने में कोई परहेज नहीं करता। अतः हम ऐसे वस्त्रों का प्रयोग करें जिससे शरीर का ज्यादा हिस्सा ढका रहे ।
4- शरीर के खुले अंगों पर दिन के समय किसी अच्छे मच्छर रोधी क्रीम अथवा तेल का प्रयोग लेपन के लिए किया जा सकता है । बन तुलसी के तेल की कुछ बूंदे ही इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर देती हैं।
5- रात में मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य किया जाय ।दिन में घर, कम्युनिटी हॉल ,स्कूल ,ऑफिस इत्यादि में दिन के समय भी मॉस्किटो रिपेलर्स का प्रयोग सुनिश्चित किया जाय।
6- पौष्टिक आहार और योग व्यायाम के प्रयोग से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखा जाय।
डेंगू के लक्षण –
1- अचानक तेज बुखार चढ़ जाना । तापमान तेज कपकपी के साथ 39-4°C40.5°C(103-105°f) तक पहुंच जाता है। उसके पहले कोई लक्षण नहीं रहता।
2- तेज सर दर्द खासतौर से ललाट पर आंखों के ऊपर। पलके फूली फूली लगती हैं आंखों को छूने पर दुखन महसूस होती है।
3- आंखें लाल, चुभन युक्त और प्रकाश के प्रति असहिष्णु अर्थात प्रकाश की प्रति भय ( फोटोफोबिया)। आंखों से पानी गिरता है।
4- सर्दी जुकाम खांसी अथवा स्वसन तंत्र की कोई शिकायत नहीं रहती।
5- हाथ पैर पीठ और हड्डियों के जोड़ों में भयानक दर्द होता है। यही कारण है कि इस रोग को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं।
6- पूरे शरीर में गोली मारने जैसा दर्द होता है और साथ में त्वचा और मांसपेशियों में स्पर्श कातरता(सोरनेस) महसूस होती है ।जोड़ों के आसपास की मांसपेशियों को छूने पर उनमें दुखन होती है अर्थात टेंडरनेस बना रहता है।
7- भूख की कमी तनाव और नाक से रक्त स्राव डेंगू के सामान्य लक्षण हैं।
8- अधिकांशतः मरीज बेचैन चिंतित और तनावग्रस्त बना रहता है। अनिद्रा की भी शिकायत होती है।
9- चेहरे और हाथों की त्वचा पर लाल ब्लाचेज निकल आते हैं।
10- प्रारंभ में पल्स रेट सामान्य से तेज होता है किंतु प्रारंभ के दो-तीन दिन में तेज बुखार रहने पर भी सामान्य से कम हो जाता हैं।
11- तीन-चार दिन बाद पसीना होकर बुखार उतर जाता है। कभी-कभी बुखार उतरने के साथ पतली टट्टी भी होती है ।एक-दो दिन के लिए तापमान सामान्य बना कर सकता है । इस बीच रोगी की परेशानियां दूर हो सकती हैं अथवा दुबारा फिर दो-तीन दिन के लिए कुछ मध्यम तापमान का बुखार चढ़ता है और पसीने के साथ समाप्त हो जाता है।
12- किसी किसी एपिडेमिक में चौथे पांचवें दिन के बाद डेंगू के रैश करीब-करीब प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति में दिखाई पड़ते हैं तो किसी किसी एपिडेमिक में यह एकदम से नहीं मिलते। यह इरप्शन तेजी से खुजली के साथ हाथ पैर चेहरा और बाकी शरीर पर फैल जाता है।
13- किसी किसी संक्रमण में छाती और पेट के मध्य भाग एपीगैस्ट्रिक रीजन में दबाव के साथ मिचली और उल्टी के लक्षण भी पाए जाते हैं।
14-संक्रमण के तीसरे से चौथे दिन के मध्य रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या घटकर 2 से 3000 तक पहुंच जाती है।
15- किसी किसी संक्रमण में एपिडेमिक ग्लैंड बढ़े हुए पाए जाते हैं जो छूने पर दर्द युक्त होते हैं।
16- रक्त में प्लेटलेट काउंट का कम होना भी डेंगू में एक इंडिकेटिव लक्षण है जो रक्त स्रावी अर्थात हेमोरेजिक डेंगू में काफी कम स्तर तक पहुंच जाता है। एवं मरीज के जीवन के लिए घातक सिद्ध होता हैं।
डेंगू की चिकित्सा –
एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में किसी स्पेशल एंटीवायरल मेडिसिन का न होना होमियोपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को काफी महत्वपूर्ण बना देती है। होम्योपैथी में डेंगू की निश्चित और कारगर दवाएं उपलब्ध हैं जिन्होंने अब तक अपनी उपयोगिता को सफलतापूर्वक सिद्ध किया है।
बचाव के लिए होमियोपैथिक औषधियां –
1-यूपेटोरियम परप्यूरिका 200 (Eupatorium purpurica 200)
2- ट्राई नाइट्रो टेल्युवियन 200 (टी एन टी 200 )
संक्रमण काल में उपरोक्त दोनों होमियोपैथिक औषधियों को एक -एक हफ्ते के अंतर पर बारी -बारी एक -एक खुराक लेते रहना डेंगू के संक्रमण से पूर्ण सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
(इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए गिलोय का मदर टिंचर टीनेस्पोरा क्यू 6 बूंद रोज एक बार लिया जा सकता है)
डेंगू हो जाने पर होमियोपैथिक औषधियां –
डेंगू हो जाने के बाद औषधियों के चयन के मामले में होमियोपैथी बहुत ही समृद्ध है। विभिन्न लक्षणों के अनुसार होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा चुनि हुई दवाओं से डेंगू को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है। इनमें से कुछ मुख्य औषधियों निम्न वत हैं-
एकोनाइट नैपलस 30 ,आर्सेनिक एल्बम 30, यूपेटोरियम परफालिएटम 200,यूपेटोरियम परप्यूरिका 200, बेलाडोना 200, रस टॉक्स 30, डल्कामारा 30 , नक्स वॉमिका 200, चिनिनम सल्फ 30 , चिनिनम आर्स 30, चिरायता मदर टिंचर, गिलोय मदर टिंचर , पाइरोजेनियम 200, आर्निका माण्ट 30 एवं टी एन टी 30, इन दवाओं में से होमियोपैथिक चिकित्सकों द्वारा चुनी हुई औषधि लेकर डेंगू को परास्त किया जा सकता है।
अनुभूत प्रयोग –
मैंने अपने 40 साल के होमियोपैथिक चिकित्सा कार्य अवधि में सैकड़ों डेंगू के मरीजों को होमियोपैथिक दवा देकर ठीक होते हुए देखा है। टी एन टी 30 के साथ किसी अन्य लाक्षणिक आधार पर चुनी हुई दवा को देकर निश्चित और त्वरित लाभ अर्जित किया गया है।
इनमें भी मैंने टी एन टी 30 एवं आर्सेनिक अल्ब 30 परयाक्रम से दो-दो घंटे पर बारी-बारी और यूपेटोरियम परप्यूरिका 200 रात में सोते समय एक बार के प्रयोग से प्लेटलेट काउंट 50000 के नीचे आ जाने पर भी दो-तीन दिन के अंदर पूरी तरह लाभ और प्लेटलेट काउंट का डेढ़ लाख से ऊपर पहुंचना सुनिश्चित होते हुए बार-बार देखा है।
होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति में औषधि के रूप में शक्ति कृत होकर 30 अथवा 200 की शक्ति में प्रयोग करने पर प्लेटलेट्स काउंट किसी कारणवश कम हुआ हो तो अत्यंत अल्प समय में उसे सामान्य की तरफ बढ़ा देती है ।
इसके मेरे पास अनेक पैथोलॉजिकल साक्ष्य उपलब्ध हैं। विध्वंसक शक्ति का भी सार्थक प्रयोग होमियोपैथी में ही संभव है। यह औषधि होमियोपैथी को पूर्ण साइंस सिद्ध करने में 1 दिन भागीदार बनेगी।)
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एक विनती – दोस्तों, आपको यह आर्टिकल डेंगू के लक्षण व बचाव के 7 आसान तरीके , Dengue Ke Laksahn Bachav Ka Best Tarika, Dengue Fever Sympotms Prevention In Hindi कैसे लगा.. हमें कमेंट जरुर करे. इस अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरुर करे.