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फटी एड़ियों के कारण व उपचार Cracked Heels Causes Treatment In Hindi
Cracked Heels Causes Treatment In Hindi
पाँव के तलुए के चर्म के फटने को ‘बिवाई फटना’ कहा जाता है तथा फटी त्वचा अथवा दरार युक्त चर्म वाली एड़ियों को ‘फटी एड़ियाँ’- क्रेक्ड हील कहते हैं। एड़ियों पर पूरे शरीर का भार होता है जिससे वहाँ की त्वचा रूखी व बेजान पड़ने की आशंका बढ़ती जाती है।
” जाके पैर न फटी बिवाई, का जाने वो पीर परायी ” इस कहावत से स्पष्ट हो जाता है कि एड़ियाँ फटने की समस्या कितना गम्भीर रूप धारण कर सकती है कि उस पीड़ा को अनुभव कर पाना उनके लिये कठिन है जिनकी एड़ियों में गहरी दरारें न पड़ी हों।
वैसे इस कहावत का सांकेतिक तात्पर्य यह होता है कि जो स्वयं पीड़ित न हो वह दूसरे की पीड़ा क्या समझे। वैसे इस समस्या से बच्चे व बड़े सभी समान रूप से प्रभावित हो सकते हैं परन्तु स्त्रियों में यह स्थिति अधिक देखी जाती है। अधिकांशतया यह कोई बड़ी समस्या नहीं होती किन्तु दरारें यदि गहरी हों तो संक्रमण की आशंका बढ़ती है तथा एड़ियों का फटना किसी अन्य रोग का सूचक हो सकता है जिसे निर्मूल करना अधिक आवश्यक हो जाता है।
Cracked Heels Causes Treatment In Hindi


फटती एड़ियों के कारण एवं उनका निवारण
*. पैरों की एड़ियों की त्वचा सूखी होने अथवा रहने अथवा एक मुद्रा में खड़े रहने से वहाँ की त्वचा मोटी हो जाती है जिसे कॅल्लाउसेज़ कहते हैं। चलने के दौरान यह मोटी त्वचा खिंचती है जिससे दरारें बनने लगती हैं। शीत जलवायु होने से अथवा वातावरण में नमी की कमी से भी ऐसा सम्भव। पैरों को एक के ऊपर एक न रखे रहें तथा नमी बनाये रखें, चलते-फिरते रहें।
*. खारी अथवा लवणीय भूमि पर अधिक नंगे पैर न चलें, उपयुक्त गम्बूट अथवा जूते पहनें।
*. ओपन-बेक सैण्डल्स अथवा फ़्लिप-फ़्लाप्स न पहनें, न ही पाँव के तलवों में ठीक से फ़िट न होने वाले जूते-चप्पल पहनें, अन्यथा पैरों में फटन की आशंका बनी रहेगी।
*. गर्म-गुनगुने पानी से नहाना छोड़ें, सदैव नैसर्गिक शीतल-सामान्य जल से स्नान किया करें। 4-5 दिन ऐसा करेंगे तो पानी फिर उतना ठण्डा नहीं लगेगा।
*. रूखे साबुनों का प्रयोग करने से त्वचा के नैसर्गिक तैल कम होते जाते हैं। हर्बल साबुनों का प्रयोग करें। बिना साबुन के भी यदि मुलतानी मिट्टी इत्यादि नैसर्गिक सामग्रियों से नहायेंगे तो और बेहतर।
फटी एड़ियों के चिकित्सात्मक कारण
चिकित्सामक स्थिति के प्रभावस्वरूप एड़ियाँ फटने पर सम्बन्धित विशेषज्ञ से उपचार करायें
- उच्च रक्त-शर्करा.
- मधुमेह के कारण रक्तसंचार सुचारु न होना.
- तन्त्रिका-क्षति (नर्व-डैमेज) जिससे त्वचा के सूखेपन, दरारों व दर्द तक का भान आसानी से नहीं हो पाता.
- किसी विटामिन की कमी.
- कवक संक्रमण खुजली.
- हायपोथायराइडिज़्म.
- एटापिक डर्मेटाइटिस.
- जुवेनाइल प्लाण्टर डर्मेटोसिस.
- प्सोरायसिस.
- पाल्मोप्लाण्टर किरेटोडर्मा जिससे हथेलियों व एड़ियों की त्वचा असामान्य रूप से मोटी होने लगती है.
- मोटापा.
- गर्भावस्था.
- वृद्धावस्था.
एड़ियाँ फटने के साथ अन्य सम्भावित लक्षणों का समावेश –
- तहों वाली अथवा परतदार त्वचा लगना
- खुजली
- दर्द (सम्भवतः गम्भीर)
- रक्तस्राव
- लाल-सूजी त्वचा
- अल्सरेशन – त्वचा में कटने जैसी दरार आना अथवा किसी अंग की सतह पर टूटन जैसा निर्माण। अल्सर तब बनता है जब सतही कोशिकाए मृत होती अथवा झड़ती हैं। अल्सरों का सम्बन्ध कैन्सर अथवा अन्य रोगों से हो सकता है।
सम्भावित जटिलताएँ –
- एड़ी में अनुभूति घटना
- सेल्युलाइटिस नामक एक संक्रमण
- डायबेटिक फ़ूट अल्सर
- संक्रमण के लक्षणों में दर्द, गर्माहट, लालिमा एवं सूजन सम्भव।
फटती एड़ियों को दूर करने का घरेलु उपाय
* एड़ियों का फटना यदि किसी समस्या का लक्षण हो तो उस समस्या का उपचार अलग से करवाना आवश्यक है, अन्यथा ये घरेलु उपाय अपनाते हुए पैरों के तलवों की फटन मिटायी जा सकती है.
सेकराइड आइसोमॅरेट युक्त चुकन्दर को पीसकर तलवों पर मलें।
* नारियल-तैल – इसे सूखी त्वचा, एग्ज़िमा व सोरायसिस में सुझाया जाता है। नारियल के तेल में सूजन-रोधी व सूक्ष्मजीवरोधी गुणधर्म भी होने से यह रक्तस्राव व संक्रमणों से बचाने में भी महत्त्वपूर्ण है।
* जैतून का तैल ।
* केले के छिलके तलवों में रगड़कर उन्हें वहीं लगा लेना ।
* जई (ओट) के आटे को नारियल अथवा जैतून के तेल में मिलाकर पैरों के तलवों पर लगायें।
* आजकल Acupressure चप्पलें उपलब्ध हैं, उन्हें पहनें।
* जब तक फटी एड़ियाँ सामान्य न हो जायें तब तक प्रयास करें कि जूते अधिक पहनें ताकि पसीना निकलते रहे एवं भीतर प्रविष्ट गंदगियाँ बाहर आ सकें, मौजे उन्हें सोख सकें व त्वचा मुलायम हो।
एड़ियाँ फटने से जुडी सावधानियाँ
- पैर में कोई लेप अथवा मरहम लगाना हो तो सोने से पहले पैरों में लगाकर पुरानी बनियान अथवा मौजे जैसा कोई आवरण पहन लें ताकि चद्दरों आदि पर दाग न पड़ें। सुबह उठकर नहाते ही पैरों की त्वचा से गंदगी व मृत कोशिकाए दूर हो ।
- दिन में लेप आदि लगाकर मौजे पहन लें, यदि जूते भी पहनने हों तो लेप की मात्रा कम रखें क्योंकि चलते-फिरते रहने से कम मात्रा में लगाया लेप भी बेहतर तरीके से तलुओं में अवशोषित हो पायेगा।
- चप्पल-जूते एवं मौजे समय-समय पर धोते रहें ताकि पैरों की त्वचा शरीर के उत्सर्जी पदार्थों अथवा बाहरी सामग्रियों को अवशोषित न कर ले।
- घर के भीतर व बाहर बिना जूते-चप्पल नंगे पैर चलने को आदत बनायें, खुरदुरे पत्थर, सड़क, पगडण्डी, घास व गोबर लिपी भूमि पर चलने से पैरों में रक्त-संचार सहज होगा एवं एक्युप्रेशर जैसा प्रभाव पड़ेगा सो अलग।
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Nice information sir