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बच्चों की खाँसी के कारण सावधानियाँ व उपचार Child Cough Problem Treatment In Hindi

Posted on 2021-03-242021-03-19 By Health Lekh No Comments on बच्चों की खाँसी के कारण सावधानियाँ व उपचार Child Cough Problem Treatment In Hindi

Contents

बच्चों की खाँसी के कारण सावधानियाँ व उपचार Child Cough Problem Treatment In Hindi

Child Cough Problem Treatment In Hindi

खाँसी वास्तव में ऐसा प्रयास है जिसमें व्यक्ति किसी इरिटेण्ट, श्लेष्मा अथवा बाहरी कण को बाहर निकालने का ज़ोर लगाता है। विशेष रूप से बच्चों में इस स्थिति के आने के कई कारण हो सकते हैं जिनकी चर्चा नीचे करते हैं .

 Child Cough Problem Treatment In Hindi

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संक्रमण – फ़्लू, कोल्ड, क्राउप (ऊपरी वायुमार्ग का एक संक्रमण जिसमें बच्चा खाँसता है व प्रायः 3-4 दिन में ठीक हो जाता है)। कोल्ड व फ़्लु में हो सकता है कि दवाएँ उतने काम न आयें जितनी की घरेलु चिकित्सा, नीलगिरि के पत्ते मसलकर सूँघें, हर्बल बाम सिर, सीने पर व नाक के आसपास लगायें। विशेष रूप से क्राउप के उपचार में वायु में नमी बनाये रखें।

निचले वायुमार्ग का जीवाण्विक संक्रमण – जीवाणुओं द्वारा कभी-कभी निचले वायुमार्गों को संक्रमित किया जा सकता है एवं इससे विक्षोभ (इर्रिटेशन) व खाँसी सम्भव है। इसका कारण अज्ञात है।

एसिड रिफ़्लक्स – बच्चों के एसिड रिफ़्लक्स के लक्षणों में खाँसी, बारम्बार उल्टी या थूक बनना, मुख में ख़राब स्वाद, हार्टबर्न भी होने पर छाती में जलन सम्भव। बच्चों में एसिड रिफ़्लक्स चॉकलेट, मसालेदार, तले, वसीय पदार्थों सहित कैफ़ीन व कार्बोनेटेड ड्रिंक्स से हो सकता है। सोने के तुरंत पहले खिलाने के बजाय लगभग दो घण्टों पहले खिला लें। एक बार में ढेर सारा खिला लेने के स्थान पर थोड़ा-थोड़ा अनेक बार खिलायें।

वैसे इस बात का ख़्याल रहे कि आमाशय व ग्रासनली की अन्य कई स्थितियाँ बच्चे में खाँसी ला सकती हैं, जैसे कि हो सकता है कि लम्बे समय से चली आ रही खाँसी का यह कारण हो कि आमाशय का तरल उल्टा ऊपर चढ़कर गले में आ रहा हो जिसे रिफ़्लक्स कहते हैं एवं यह रिफ़्लक्स हार्टबर्न के बिना भी हो सकता है।

अस्थमा – इसका पता लगाना कठिन पड़ सकता है क्योंकि इसके लक्षण सभी बच्चों में एक-से नहीं दिखते परन्तु खाँसी के समय घरघराहट (रात को अधिक) कई अस्थमा-लक्षणों में एक हो सकता है। अस्थमा में अधिक परिश्रम करने पर खाँसी बढ़ जाना भी सम्भव। प्रदूषित वायु, गंदगी, फ़र्ष्ट हैण्ड व सेकण्ड हैण्ड धूम्रपान एवं रासायनिक मेक-अप से बचना आवश्यक मास्क काफ़ी प्रभावी है।

एलर्जीज़ – साइनुसाइटिस व अन्य स्थितियों में भी खाँसी प्रेरित हो सकती है क्योंकि बच्चों का श्वसन-तन्त्र अभी बाहरी वस्तुओं का उतना आदी नहीं हुआ है। इस कारण खराश युक्त गला, बहती नाक, आँख़ों में पानी जैसे लक्षण हो सकते हैं। फेफड़ा रोग विशेष से एलर्जी की जाँच कराके ही पता चल सकता है। साफ-सफाई बरतें किन्तु बच्चों को खुले में प्रकृति के करीब रहने दें।

काली खाँसी – इसे व्हूपिंग कफ़ या कूकरकास या पॅर्टुसिस भी कहा जाता है। इसमें एक के बाद एक लगातार खाँसियाँ चलती हैं जिसमें साँस लेने के दौरान हू-हू जैसी आवाज़ आती है। अन्य लक्षणों में बहती नाक, छीकें, थोड़ा बुखार सम्मिलित हैं। काली खाँसी संक्रामक होती है परन्तु टीका लगवाकर इससे पीछा छुड़ाया जा सकता है। यदि यह हो ही गयी हो तो चिकित्सक कुछ प्रतिजैविक लिख सकता है। सोष्यल डिस्टेंसिंग इत्यादि का पालन करें-करवायें।

विषाण्विक संक्रमण के बाद की खाँसी – श्वसन-तन्त्र में यदि कुछ पहले विषाण्विक संक्रमण हो चुका हो तो भी खाँसी सप्ताहों तक चल सकती है। इसे ठीक करने की कोई विशिस्ट चिकित्सा नहीं होती। खाँसी दबाने की औषधियाँ शाला जाने वाले बच्चों को दी तो जाती हैं परन्तु इससे समस्या नहीं सुलझती।

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि एक- अनेक बार खाँसी होने पर अथवा धूलखेन भीतर पहुँच जाने पर खाँसने से आराम मिलने पर अथवा कुछ अजीब खा – पी या सूँघ लेने पर खाँसने को बच्चा अपनी आदत बना लेता है क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि मुझे खाँसने से आराम मिलेगा।

बच्चों की खाँसी से जुडी सावधानियाँ व उपचार

*. 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को एस्पिरिन सेवन न करायें, अन्यथा रे-सिण्ड्रॉम पनप सकता है जो कि कम सामने आने वाला किन्तु एक गम्भीर मस्तिष्क-रोग है।

*. डिकन्जेस्टेण्ट्स यदि चिकित्सक ने लिखें हो तो भी उनका सेवन 7 दिन से अधिक न करायें, अन्यथा कन्जेषन फिर से उभर सकता है।

*. कोडॅइन का सेवन भी 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को न करने दें, अन्यथा लाभ से हानि का पलड़ा भारी हो सकता है। खुली हवा वैसे तो हमेशा ही आवश्यक होती है परन्तु कोडॅइन के प्रकरण में फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी की आशंका अधिक रहती है। इसके अतिरिक्त सोने में समस्या, तन्त्रिका-पेशीय (न्यूरोमस्क्युलर) रोग इत्यादि की भी सम्भावना अधिक हो जाती है।

*. एण्टिहिस्टेमाइन्स का प्रयोग छाती से जुड़ी खाँसी में न करें, अन्यथा ब्रोंकियल स्राव होने कम हो सकते हैं जिससे हो सकता है कि चिपचिपी श्लेष्मा अधिक बनने लगे जिसे हटाना अधिक कठिन हो सकता है।

*. घरेलु उपचार के नाम पर 1 वर्ष आयु से कम के बच्चे को शहद न दें (वैसे तो शहद हिंसात्मक सामग्रियों में गिना जाता है, बड़े भी इसका सेवन क्यों करें ? मधुमक्खियाँ अपने बच्चों के लिये शहद बनाती हैं)।

*. जस्ता – अनुसंधानों में ऐसा पाया गया है कि जस्ता (जि़ंक) स्वस्थ बच्चों में कोल्ड के लक्षणों की गम्भीरता को घटा सकता है। मशरूम, फलीदार सब्जियाँ बढ़ायें ताकि जस्ता आसानी से बच्चे के शरीर में जा सके।

*. विटामिन कोल्ड के उपचार व इससे बचाव में विटामिन की भूमिका स्पष्ट है; इसके नियमित सेवन से व सर्दी-ज़ुकाम में अधिक सेवन से लक्षणों की अवधि व गम्भीरता में कुछ कमी आ सकती है। संतरा, नींबू इत्यादि खट्टे फलों सहित अमरूद, पपीते, पत्तागोभी, फूलगोभी व शक्करकंद का सेवन बढ़ायें।

*. विटामिन -डीः यह विटामिन भी कोल्ड से बचाव में सहायक पाया गया है, बच्चों को धूप में भी रहने दें, दूध व नारंगी का सेवन बढ़ायें।

*. बुखार दूर करने का स्वयं प्रयास करते हुए बुखार उतारने की औषधि बिना चिकित्सकात्मक अनुमति के न दैवें।

*. नीलगिरि के पत्ते बच्चे को देकर रखें जिन्हें वह मसलकर कुछ-कुछ समय में सूँघता रहे, यह उपाय अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है;

*. ज़ुकाम दूर करने के लिये भाप वाले हरे कैप्सूल कुछ संख्या में पहले से ख़रीदकर घर में रखें ताकि किसी को भी सर्दी, गला ख़राब इत्यादि होने पर गर्म पानी में उसे डालकर मुख व नाक से उसकी भाप ली जा सके।

*. सोने से पहले बच्चे के सीने, गले व माथे पर एवं नाक के आसपास हर्बल बाम लगायें तथा उसे यदि साँस लेने में परेशानी हो तो नाक का भाग छोड़कर पूरा शरीर ढँककर सुलायें, इससे साँस आसानी से ले पायेगा, भीतर हर्बल औषधीय प्रभाव ठीक से होगा एवं इसकी गंध से मच्छर की आशंका नगण्य रहेगी तथा पसीना आना अपने आप में कई रोगों की दवासमान है ही।

*. बच्चे को अतिसीमित मात्रा में मुलहठी के रेशे , भुनी लौंग चबाने को दें तथा अदरक की गोली वाली विक्स भी ख़रीदी जा सकती है।

*. यथासम्भव हर स्थिति में बालरोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करें, विशेषतया तब जब लक्षण गम्भीर हों अथवा शीघ्र ठीक न हो रहें हों अथवा बच्चा बहुत छोटा हो अथवा सो नहीं पा रहा हो अथवा साँस लेने-छोड़ने में आवाज़ें आने लगी हों.

होंठों अथवा नाख़ूनों पर नीली रंगत दिख रही हो अथवा लगातार उल्टी हो रही हो अथवा खाँसते-खाँसते लालिमा अथवा बैंगनी रंग हो गया हो अथवा गले में कोई वस्तु वास्तव में अटक गयी हो अथवा पूरी साँस लेते समय सीने में दर्द होता हो अथवा छींकने-खाँसने में ख़ून आ रहा हो अथवा पहले सम्बन्धित टीके न लगाये गये हों अथवा शरीर का तापमान कम अथवा अधिक हो।

*. स्वयं को चिकित्सक समझने की भूल न करें. कॉमन कोल्ड, इन्फ़्लुएन्ज़ा, क्राउप, प्न्यूमोनिया, ब्रोंकाइटिस विषाणुओं द्वारा हुए हो सकते हैं एवं संक्रमणों से सूखी खाँसी सम्भव। विषाण्विक संक्रमण में बुखार, बहती अथवा अवरुद्ध नाक, छींकें, सिरदर्द, देह पर चकत्ते व पूरे बदन में दर्द इत्यादि रह सकता है।

बच्चों की खाँसी का निदान

*. छाती का अथवा साइनस का एक्स-रे
*. फेफड़ों के कार्यों का (पल्मोनरी फंक्शन) परीक्षण
*. एलर्जी-जाँचें
*. रेस्पिरेटरी सिंसाइटियल वायरस, पॅर्टुसिस व्हूपिंग कफ़ जैसे विशेष संक्रामक कारकों के लिये नाक के तरल की जाँच
*. एण्डोस्कोपी एवं ब्रोंकोस्कोपी

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