पीठ दर्द के कारण लक्षण व उपाय Back Pain Symptoms Causes Upay In Hindi
Back Pain Symptoms Causes Upay In Hindi
किशोरावस्था पार करते ही पीठ-दर्द की समस्या आम हो चलती है। पीठ दर्द में दर्द प्रायः पेशियों, इण्टरवर्टिब्रॅल जाइंट्स, स्पाइनल नर्वस में होता है अथवा कभी-कभी यह बोन-आन-बोन दर्द भी हो सकता है।
पीठ दर्द के कारण (Causes of back pain) –
*. यांत्रिक अथवा अन्य चोटें भार उठाने अथवा लचक इत्यादि से, जैसे कि खेलकूद अथवा तथाकथित जिमिंग बाडी-बिल्डिंग (जो कि वास्तव में हानिप्रद ही होती है, शरीर को नैसर्गिक रूप से सक्रिय बनाना आवश्यक होता है) से पहुँचने वाली चोटें, गर्भावस्था।
*. जन्मजात् एवं अर्जित विकार सूजनसम्बन्धी अथवा डिजनरेटिव विकार – एंकालोसिंग स्पाण्डिलाइटिस (मेरु की कशेरुकाओं के मध्य संधियों में सूजन), अस्थि-छिद्रण, आस्टियोआथ्र्राइटिस, अस्थिसंक्रमण।*. संक्रामक विकार
*. ट्यूमर
*. विटामिन-डी की कमी
*. कैल्शियम की कमी अथवा अधिकता
*. टीवी. व अन्य स्क्रीन्स के सामने आड़े-तिरछे बैठे रहना
Back Pain Symptoms Causes Upay In Hindi

पीठ दर्द के गम्भीर व प्राणघातक सिद्ध हो सकने वाले कारण –
कुछ मामलों में पीठ दर्द ऐसी गम्भीर अथवा प्राणघातक स्थिति का लक्षण हो सकता है जिसके कि तात्कालिक उपचार की आवश्यकता होती है.
गर्भाशय के अतिरिक्त अन्यत्र गर्भधारण, मेरु-नाल में संक्रमण, पित्ताष्मरी, वृक्काष्मरी, वृक्क-संक्रमण, ट्यूमर इत्यादि का मन से अथवा फ़ार्मासिस्ट के कहने पर अथवा टीवी. में विज्ञापन देखकर तैल-कैप्सूल के फेर में पड़े एवं समय रहते यदि अस्थि-रोगविशेषज्ञ अथवा तन्त्रिकारोगचिकित्सक से उपचार आरम्भ न कराया तो निम्नांकित घाटे उठाने पड़ सकते हैं.
*. स्थायी नर्व-डैमेज
*. स्थायी शारीरिक अक्षमता
*. कमज़ोरी लगातार बढ़ती जाना
*. कैन्सर-प्रसार
*. संक्रमण फैलना इत्यादि।
पीठ दर्द के जितने भी कारण होते हैं उनमें से कुछ ही प्राण-घातक हो सकते हैं। मेरु-दण्ड के कुछ विकारों से मेरु-दण्ड की तन्त्रिकाओं पर दबाव पड़ सकता है। नर्व-कम्प्रेशन के गम्भीर लक्षणों में ये सम्मिलित हो सकते हैं.
हाथ-पैरों अथवा कँधों में संवेदन कम होना, संतुलन खोना, मूत्राशय अथवा मलाशय पर नियन्त्रण घटना (विशेषतः पैरों में दुर्बलता के साथ)।
शरीर के एक प्रशव में आकस्मिक कमज़ोरी अथवा सुन्नता अथवा असामान्य संवेदनों, पक्षाघात एवं चेतना के स्तर में परिवर्तनों में चिकित्सक से तुरंत सम्पर्क करना ही चाहिए।
पीठ दर्द के साथ कौन-कौन-से अन्य लक्षण आ सकते हैं (Back Pain Symptoms) ?
पेशीय-कंकाली लक्षण – नितम्बों अथवा कूल्हे में दर्द, पाँव पर नियन्त्रण न लगना, मेरु मुड़ना, हील में दर्द, पेषीय ऐंठन (मसलस्पेज्म), पेशीय दुर्बलता, गर्दन-दर्द एवं कड़ाई, कँधे, घुटने, टखने (एंकल) जायण्ट्स में दर्द व सूजन, रीढ़ में कठोरता।
तन्त्रिकाविज्ञानी लक्षण – संतुलन साधने में कठिनता, सिरदर्द (विशेषतया सिर के पीछे), भुजा, नितम्ब, कंधे, पैर में दर्द, झँझुनी, सुन्नता लाने वाली तन्त्रिका-समस्याएँ, झुनझुनी, चुभन, जलन, सरकने जैसी अनुभूतियाँ।
पीठ दर्द के साथ हो सकने वाले अन्य लक्षण.. नेत्र-सूजन अथवा युवॅइटिस, भूख खुलके न लगना, निम्नश्रेणी का बुखार।
पीठ दर्द में जाँचें (Back pain test) :
एक्स-रे – अस्थियाँ सामान्य स्थितियों में हैं अथवा नहीं ? कहीं आपको आथ्र्राइटिस तो नहीं। मेरु-रज्जु, पेशियों व तन्त्रिकाओं अथवा डिस्क्स से सम्बन्धित समस्याओं में अन्य परीक्षण भी कराने आवश्यक होंगे।
एमआरआई या City Scanes : इन स्केन्स से ऐसी Images सामने आती हैं जिनमें हॅर्नियेटेड डिस्क्स या अस्थियों, पेशियों, ऊतक, कण्डरा (टेण्डन), तन्त्रिकाओं, नाड़ियों व रुधिर-वाहिकाओं से जुड़ी समस्याएँ स्पष्ट दिख सकती हैं।
रक्त-परीक्षण – संक्रमण अथवा ऐसी किसी अन्य स्थिति जाँचने में जिससे हो सकता है कि अस्थियों में दर्द आ सकता हो।
बोन स्कन – बोन ट्यूमर्स अथवा अस्थि-छिद्रण (आस्टियोपोरोसिस) से हुए कम्प्रेशन-फ्रेक्चर्स को समझा जा सकता है।
नर्व-स्टडीज़ – इलेक्ट्रोमायोग्रॅफ़ी (EMG) में तन्त्रिकाओं द्वारा उत्पन्न वैद्युत् आवेगों एवं पेशियों की अनुक्रियाओं का मापन किया जाता है। इस जाँच में स्पाइनल केनाल की सिकुड़न (स्पाइनल स्टेनासिस) अथवा हॅर्नियेटेड डिस्क्स के कारण नर्व-कम्प्रेशन की पुष्टि हो सकती है।
पीठ दर्द उपचार (Back Pain Treatment) :
1. मर्दन (मालिश) – पेशियों व हड्डियों में तनाव अथवा खिंचाव से हो रहे दर्द को ठीक करने में मालिश काम आ सकती है।
2. एक्यूपंक्चर – शरीर के विशिष्ट बिन्दु पर त्वचा में स्टॅराइलाइज़्ड नीडल्स प्रवेश कराने से पीठदर्द में राहत होती देखी गयी है।
3. ट्रान्स्क्युटेनियस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिम्युलेशन (टीईएनएस) या इम्प्लाण्टेड नर्व स्टिम्यूलेटर्स – त्वचा से सटा बैटरी से चलने वाला टीईएनएस उपकरण पीड़ापूर्ण भाग में वैद्युत् आवेगों को भेजता है। त्वचा में स्टिम्यूलेटर लगा देने से पीड़ा-संकेतों को रोकने के लिये कुछ तन्त्रिकाओं में वैद्युत् आवेग पहुँचाये जाते हैं।
4. योग – विभिन्न मुद्राओं व आसनों के कारण शरीर की हड्डियों व पेशियों को समुचित स्थिति में लाने व असहजताओं को दूर करने में सहायता होती है; आसनों से पेशियाँ व अस्थियाँ सुदृढ़ होती हैं। आन्तरिक अंगों का मालिश होती है एवं रक्तसंचार बेहतर होता है।
5. रेडियोफ्रि़क्वेन्सी न्यूरोटामी – इसमें दर्द वाले क्षेत्र में एक महीन सुई डाली जाती है। रेडियो-तरंगें त्वचा के माध्यम से भीतर प्रवेश करती हैं। इससे आसपास की तन्त्रिकाओं को क्षति पहुँचायी जाती है ताकि मस्तिष्क को पहुँचने वाले पीड़ा-संकेतों की डिलीवरी में हस्तक्षेप हो।
6. शल्यक्रिया – संरचनात्मक विकृतियों के कारण होने वाले पीठदर्द के उपचार में शल्यक्रिया आवश्यक हो सकती है, जैसे कि स्पाइनल स्टेनासिस अथवा हॅर्नियेटेड डिस्क के मामले में।
पीठ दर्द से बचाव के उपाय (Back pain prevention measures) :
1. खड़े होते व बैठते समय रीढ़ को सीधी रखें, डेस्कटाप, दुपहिया या चैपहिया वाहन-चालन इत्यादि के समय सीट की ऊँचाई एवं टिकने की सतह एकदम सीधी व समतल हो ताकि रीढ़ से सिर तक पूरा शरीर बिलकुल सीध में हो।
2. शवासन में सोयें, अर्थात् समतल व कम नर्म सतह पर पीठ के बल शव के जैसे लेटकर हाथ-पैर एकदम सीधे करके पूर्णतः ढीले छोड़ दें। पैर से सिर तक पूरा शरीर एकसीध में रहे।
3. बाल्टियाँ व भार उठाते-रखते समय कमर को झुकाने से यथासम्भव बचते हुए घुटने मोड़कर कार्य करें, झटके न लें। भार उठाना हो तो यथासम्भव दो भाग करें (जैसे कि दोनों हाथ में बाल्टियाँ अथवा दो बार जायें) ताकि भार घटे व एक साइड पर अनावश्यक ज़ोर न पड़े।
4. मोबाइल लेपटाप के अनावश्यक प्रयोग से बचें।
5. भोजन के समय पटे पर या टब उल्टा करके ऊपर थाली रखकर एवं भूमि पर आलती-पालती मारकर बैठें।
6. बैठे रहने के कार्य अधिक हों तो बीच-बीच में उठकर अलग से चलते-फिरते रहें।
7. धूम्रपान छोड़ें अन्यथा नवीन समस्याओं के पनपने के साथ पेशियों व अस्थियों से भी सम्बन्धित पुरानी समस्याओं को बढ़ावा ही मिलेगा।
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