सम्पूर्ण स्वास्थ्य बेहतर रखने के 12 उपाय 12 tips to healthy living in hindi
12 tips to healthy living in hindi
स्वास्थ्य की बातें बहुत की जा रही हैं परन्तु सच्ची सेहत के लिये क्या वास्तव में करना होगा एवं क्या नहीं करना होगा इस विषय में सटीक जानकारियाँ एक साथ कहीं नज़र नहीं आतीं. इसलिये इस बार इसी सीधे विषय में बड़े मुद्दे को सारभूत जानकारियों के रूप में सँजोया जा रहा है। आहार का अर्थ खान-पान एवं विहार का अर्थ रहन-सहन होता है, समुचित आहार-विहार के साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी जोड़कर देखें तो सम्पूर्ण स्वास्थ्य की परिभाषा पूर्ण हो सकती है।
भारतीय शास्त्रों में शरीर को सजाने अथवा दिखावे के बजाय प्रभु प्राप्ति तक उसे स्वस्थ रखने पर बल दिया गया है जिसे इसलिये स्वस्थ रखना है ताकि देव-सुदुर्लभ मानव-काया को प्रभु में लगाया जा सके। आइए जानें कि सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिये क्या करना है व क्या नहीं करना है.
12 tips to healthy living in hindi

1. मन के बिना तन के स्वास्थ्य की परिभाषा पूर्ण नहीं हो सकती. अच्छे विचारों का आसरा व द्वेष व स्वार्थ आदि दुर्विचारों से दूरी बरतते हुए मन को सकारात्मक कर्मों में लगाये रखते हुए निर्मल रखा जा सकता है। सुसंगति को अपनाना एवं मोबाइल से दूरी जरुरी है.
2. शुद्ध शाकाहार का सेवन करें, जिन्हें लगता है कि कुछ पोषकों के लिये अण्डा इत्यादि जरुरी है उन्हें यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि वास्तव में शाकाहार वर्षो से मानव-शरीर का सम्पूर्ण पोषण करता आया है. अब तो मशरूम, सोयाबीन, चने एवं सूखे मेवे सहज-सुलभ हैं जो प्रोटीन में विशेष रूप से सम्पन्न होते हैं। माँसाहार तो तामसिकता व राजसिकता बढ़ाने वाला होता है. ऐसे आहार को गीता में भी छोड़ने योग्य कहा गया है।
3. तिरंगी थाली – केवल एनीमिया से ग्रसित महिलाओं के ही लिये नहीं बल्कि समस्त स्वस्थ स्त्री-पुरुषों के लिये तिरंगी थाली अति उपयोगी है जिसमें भारतीय राष्ट्रध्वज के तीनों रंगों का मिश्रण हो – केसरिया (फल व रंगीन भाजियाँ), सफ़ेद (दूध, देसी साबुत अनाज इत्यादि) एवं हरा (हरी पत्तेदार सब्जियाँ व तरकारियाँ).
ऐसा इसलिये भी जरुरी है क्योंकि इनका मिश्रण बहुत उपयोगी है क्योंकि एक में उपस्थित कुछ पोषक शरीर में ठीक से तभी अवशोषित हो पाते हैं जब अन्य में उपस्थित पोषक भी साथ में ग्रहण किये जा रहे हों। इस प्रकार यदि हर बार थाली में सब एकसाथ खाये जायेंगे तो शरीर को संतुलित आहार सुलभ हो जायेगा एवं शरीर में यथासम्भव सभी उपलब्ध पोषक तत्त्वों का सुचारु अवषोषण हो पायेगा।
4. मिश्रण पर ज़ोर दें, जैसे कि कई दालों को एक साथ मिलाकर उबालें व बनायें तथा विभिन्न सब्जियों को परस्पर मिलाकर तैयार करें तथा दालों व सब्जियों को एक-दूसरे में मिलाकर भी पकाया जा सकता है, जैसे कि मेथी की भाजी के साथ मूँग की दाल, मिश्रित अनाजों का आटा बनवायें, खिचड़ी में भी अनाजों का मिश्रण मिलायें.
मुँगेड़े-बड़े के समान विभिन्न प्रकार की फलियों के सूखे दानों एवं विविध प्रकार के अनाजों व साबुत अथवा सामान्य दालों को घण्टों पानी में गलाकर मिश्रित रूप से उबाल-पीसकर उनसे व्यंजन तैयार करें एवं धीरे-धीरे आपको यह सब बहुत स्वादिष्ट लगने लगेगा कि आप इन स्वाद-मिश्रणों से अब तक अनजान थे. इससे बहुत सारे पोषक तत्त्व एक साथ मिल सकेंगे एवं आँत उनको आसानी से सोख पायेगी।
5. विविधता लायें – खाने-पीने की बात हो अथवा अन्य कोई भी विषय, कहीं भी पसन्द-नापसन्द के बजाय श्रेष्ठ को अपनाने पर ज़ोर दें। तामसिक व राजसिक पदार्थों को छोड़ सभी सात्त्विक पदार्थ ग्राह्य हैं जिन्हें ग्रहण करें। स्थानीय स्तर पर मौसमी रूप से उपलब्ध हर फल-सब्जी नियमित रूप से सेवन करें। यदि स्वाद पसन्द न आये तो आस-पड़ौसन की सहायता से गृहिणियाँ अलग तरीके से खाना बनाना सीखें एवं स्वादरहित लगने वाले खानों को स्वादिष्ट बना लैवें।
6. साबुत पर बल दें – मैदे की अपेक्षा आटा, बारीक छने आटे की अपेक्षा चोकर युक्त आटा, आटे की अपेक्षा रवा ,सूजी, रवा ,सूजी की अपेक्षा दलिया एवं दलिया की अपेक्षा बिल्कुल साबुत अनाज की महत्ता अधिक होती है तथा छिलके निकालने के बजाय अनाजों, सब्जियों व फलों को छिलके सहित खाने की आदत बनायें. अनेक सब्जियों इत्यादि में छिलके काफी पौष्टिक होते हैं। यदि कभी बिस्किट भी ख़रीदें तो साबुत अनाज से बने हों यह देख लें।
7. कच्चे पर ज़ोर दें – जितनी अधिक प्रोसेसिंग, जितना अधिक उबालना-बघारना उतने अधिक पोषक तत्त्वों का घाटा यह तो सबको पता हो जाना चाहिए. इसलिये जहाँ तक हो सके घर पर खाना तैयार करने एवं हर बार नया तैल उपयोग करने एवं खाद्य-सामग्री को यथासम्भव उसके नैसर्गिक रूप में खाने पर ज़ोर दें ताकि अधिकाधिक पोषक तत्त्व सरलता से सुलभ हो सकें। अंकुरित अनाजों में पोषक तत्त्व और बढ़े पाये जाते हैं जिन्हें कभी भी किसी भी रूप में खाया जा सकता है एवं सलाद के भी रूप में इनका सेवन किया जा सकता है।
8. रहन-सहन साफ़-सुथरा एवं सात्त्विक हो।
9. तथाकथित जिमिंग अथवा बाडी-बिल्डिंग के फेर में शरीर को यान्त्रिक अथवा कृत्रिम तरीकों में न गति करायें, वास्तव में नैसर्गिक रूप से सक्रिय रहें, सीढ़ी व साईकल का प्रयोग बढ़ायें, बैठे-बैठे कार्य करना जरुरी हो तो भी शारीरिक सक्रियता के बहाने ढूँढें, रस्सी कूदें। घास पर नंगे पैर चलें।
10. ब्रह्ममुहूर्त-जागरण – निशाचर जैसे देर रात तक जागना एवं धूप में उठने के बजाय प्रातःकाल शीघ्र उठें एवं शीघ्र नित्य कर्मादि करते हुए पूजन करते हुए दिन का श्रीगणेश करें। हो सकता है कि आरम्भ में यह कठिन लगे परन्तु दृढ़ता से ऐसा नियम बना लेने पर 5-6 दिन बाद यह सरल लगने लगेगा।
11. भवनों में पर्याप्त संवातन- उपयुक्त वेण्टिलेशन रखें, मच्छर , लू , ठण्ड इत्यादि से बचने की आड़ में पिंजरा न बनायें, बहती वायु का सतत प्रवाह एवं सूर्य-प्रकाश तन की नहीं बल्कि मन के स्वास्थ्य के भी लिये जरुरी है तथा घर को हानिप्रद रोगाणुओं व संक्रमणों से मुक्त रखने की भी दृष्टि से यह जरुरी है।
12. आलस्य हावी न होने दें – बाहर से घर आते से ही यदि नर्म गद्दा दिखेगा तो व्यक्ति की थकान व आलस्य से उसका घातक मिश्रण हो जाने से समय की बर्बादी व निद्रा की आषंका उत्पन्न हो जाती है. अतः गद्दे इत्यादि को रात को ही खोलें, घर आने पर कठोर भूमि अथवा सामान्य कड़क कुर्सी पर 5 मिनट्स बैठकर पानी पियें अथवा अन्य जरुरी कार्य करें एवं फिर पसीना उतरने पर सीधे हाथ-पैर व मुख धोने के लिये निकलें एवं अन्य गतिविधि में लग जायें परन्तु किसी भी स्थिति में खाली नहीं बैठना है.
एक बार बैठ गये तो मन को थकान होने लगती है एवं शरीर निष्क्रियता की दिषा में बढ़ सकता है. अतः लगातार सक्रिय रहें, बैठने से यथासम्भव बचकर चलना है। उपरोक्त नियम अपनायेंगे तो आप पायेंगे कि मन व तन दोनों आरोग्य रहेंगे एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य को आप स्वयं अनुभव कर पायेंगे, अन्य की अपेक्षा आपको थकान कम होगी, आप अधिक ऊर्जा अनुभव करेंगे, बीमारियाँ घटेंगी एवं जीवन अधिक सरल बन जायेगा.
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